भागमभाग के दौर में बेदम समय

किसी ने सोचा था कि कभी ऐसा ही समय आयेगा कि किसी के पास समय ही नहीं रहेगा. दिन अभी भी चौबीस घंटों का है. और घंटों में मिनट भी पहले जितने ही हैं पर पता नहीं समय कहां चला गया है. किसी के पास किसी के लिये टाइम नहीं है. पहले घर के बड़े-बूढ़े कहा करते कि बच्चों के पास उनके लिये टाइम नहीं है पर अब तो बच्चे भी कहने लग गये कि बड़ों के पास बच्चों के लिये टाइम नहीं है. सब मोबाइल की गिरफ्त में हैं. मोबाइल की छाती पर झुके बैठे हैं. मेरी एक मित्र ने मुझसे आग्रह किया है—
मोबाइल मत लाना यार हम बात करेंगे.
वे पति-पत्नी अब नहीं रहे जो पांच सौ शब्द प्रति मिनट बोलने के बाद कहा करते—मेरा मुंह मत खुलवाओ. अब तो बस मोबाइल ही खुले हैं. वे भी क्या जायकेदार दिन थे जब घड़ी सिर्फ पापा के हाथ पर होती थी और समय पूरे परिवार के पास हुआ करता. सबके चेहरों पर सुकून हुआ करता. अब सबने समय को मु_ी में लेकर मोबाइल पकड़ लिया है. चेहरों पर उदासियां यूं चिपक गई हैं जैसे किसी ने गोंद लगाकर लिफाफा बंद कर दिया हो.
अगर बात टाइम की करें तो स्कूल जाने के टाइम पर जो पेट दर्द हुआ करता, उसका इलाज किसी डॉक्टर के पास नहीं है. अलार्म बन्द करने के बाद जो चैन की नींद आती है, उसका कोई मुकाबला नहीं है.