Mahashivratri 2023: साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता के रात्रि के रूप में मनाते हैं- सूर्य प्रकाश शरण
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उन्होंने ने बताया कि वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे. यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता. उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा. ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए. वही दिन महाशिवरात्रि का था. उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व इसके पीछे की कथाओं को छोड़ दें, तो यौगिक परंपराओं में इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं.
श्री शरण ने बताया कि आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है. यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है. ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है. जब मैं कहता हूँ, ‘योग’, तो मैं किसी विशेष अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा. इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है. महाशिवारात्रि की रात, व्यक्ति को इसी का अनुभव पाने का अवसर देती है.
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