Shaligram Shila: क्या है शालिग्राम शिला जिससे बनेगी अयोध्या में रामलला की प्रतिमा

Shaligram Shila: क्या है शालिग्राम शिला जिससे बनेगी अयोध्या में रामलला की प्रतिमा
shaligram shila ayodhya

डॉ. राधे श्याम द्विवेदी 
नेपाल की गंडकी नदी से मिली 6 करोड़ साल पुरानी शालिग्राम शिला से रामलला की मूर्तियों का निर्माण किया जाना संभावित है. अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर की मूर्तियों के लिए नेपाल के गंडकी नदी से शालिग्राम शिलाएं लाई जा रही हैं. गंडकी नदी एकमात्र ऐसी नदी है, जहां शालिग्राम शिलाए मिलती हैं. इन शिलाओं को एक खुले ट्रक में अयोध्या लाया जा रहा है. 6 करोड़ साल पुराने 2 विशाल शालीग्राम पत्थरों से भगवान श्रीराम के बाल स्वरूप की मूर्ति और माता सीता की मूर्ति बनाई जानी है.   श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित होने वाली प्रतिमा क़रीब 5.5 फ़ीट की बननी है जिसके नीचे 3 फ़ीट का पेडेस्ट्रीयल भी होगा. रामनवमी के लिए सूर्य की किरण रामलला की प्रतिमा के ललाट पर पड़ेगी.ये पत्थर नेपाल अयोध्या के लिए निकल चुके हैं. जहां-जहां से ये पत्थर निकल रहे हैं, वहां-वहां लोग इन्हें छूने के लिए, दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं.

26 जनवरी 2023 से शुरुवात ,जगह जगह स्वागत : -
जानकी के घर में परम्परानुसार सत्कार हुआ है. शालिग्राम शिला लाने के रूट की एक्सक्लूसिव जानकारी केअनुसार, जनकपुर से शालिग्राम शिला भारत नेपाल बॉर्डर पर जतहीं पर लाया जाएगा. उसके बाद मधुबनी, दरभंगा, मुज़फ़्फ़रपुर, गोपालगंज को पार करते हुए यूपी में प्रवेश करेगी. जगह-जगह शिला का स्वागत और अगवानी के लिए भी कार्यक्रम तय हो सकता है.शालिग्राम शिला लाने की जानकारी देते हुए श्रीराम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने बताया कि नेपाल के जनकपुर में रामजी की ससुराल है, मां जानकी के मायके की भी कुछ परम्परा है, वहां के साधु संतों की इच्छा और वहां की परम्परा है कि सत्कार और रात्रि विश्राम वहां किया जाए.शिला का 26 जनवरी 2023 को गुरुवार के दिन गलेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राभिषेक किया गया. यह पत्थर दो ट्रकों पर रखकर सोमवार 30 जनवरी के दिन अयोध्या के लिए रवाना हो चुके हैं. ये नेपाल से भारत के बिहार से होते हुए कल 31 जनवरी 2023 को गोपालगंज के रास्ते उत्तर प्रदेश में प्रवेश करेंगे. वहां से कुशीनगर और जगदीशपुर से होते हुए गोरखपुर में सायंकाल 4 बजे तक पहुंचेंगे. इन पत्थरों के गोरखपुर पहुंचने से पहले यहां कार्यकर्ता और आम जनमानस में बहुत उत्साह का माहौल है. यात्रा का गोरखपुर में प्रवेश होने पर कुसमी में शानदार ढंग से स्वागत किया जाएगा. इसके बाद गौतम गुरुंग चौराहा, मोहद्दीपुर चौराहा, विश्वविद्यालय चौराहा, यातायात चौराहा, धर्मशाला बाजार तरंग क्रॉसिंग के पास, गोरखनाथ मंदिर ओवरब्रिज के पास विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं एवं विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों के लोगों द्वारा यात्रा का जोरदार ढंग से स्वागत किया जाएगा.

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एक फरवरी को अयोध्या के लिए रवाना होगी :-
गोरखनाथ मंदिर पहुंचने के बाद शिलाओं का स्वागत- पूजन पूज्य संतों के हिंदू सेवाश्रम पर करेंगे. इसके बाद यात्रा में सम्मिलित सभी लोगों का मंदिर में भोजन एवं विश्राम होगा. अगले दिन एक फरवरी की सुबह यात्रा का विधि-विधान से पूजन कर उनको अयोध्या जी के लिए गोरक्ष पीठाधीश्वर उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा रवाना किया जाएगा.

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शालिग्राम पत्थरों की यह है पौराणिक मान्यता:-
शास्त्रों के मुताबिक, शालिग्राम में भगवान विष्णु का वास माना जाता है. पौराणिक ग्रंथों में माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का उल्लेख भी मिलता है. शालिग्राम के पत्थर गंडकी नदी में ही पाए जाते हैं. हिमालय के रास्ते में पानी चट्टान से टकराकर इस पत्थरों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है. मान्यता है कि जिस घर में शालिग्राम की पूजा होती है, वहां सुख-शांति और आपसी प्रेम बना रहता है. साथ ही माता लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है. 
पद्मपुराण में शालिग्राम का वर्णन मिलता है .यह भगवान के विष्णु स्वरूप का नाम है. लक्ष्मी जी की अहेतु की कृपा पाने मे इस विग्रह को प्रयोग किया जाना एक सामान्य सी मान्यता है .

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परमेश्वर के प्रतिनिधि के तौर पर मान्य:-
शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है. शालीग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है. शिव भक्त पूजा करने के लिए शिव लिंग के रूप में लगभग गोल या अंडाकार शालिग्राम का उपयोग करते हैं. पवित्र नदी गंडकी में पाया जाने वाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में उपयोग करते हैं.

भगवान के समीप पहुँचाने वाला शालिग्राम :-
पद्मपुराण के अनुसार - गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं. शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है. फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है; वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है. बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है. जैसे सदा काठ के भीतर छिपी हुई आग मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार भगवान विष्णु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी शालिग्राम शिला में विशेष रूप से अभिव्यक्त होते हैं.जो प्रतिदिन द्वारका की शिला-गोमती चक्र से युक्त बारह शालिग्राम मूर्तियों का पूजन करता है, वह वैकुण्ठ लोक में प्रतिष्ठित होता है. जो मनुष्य शालिग्राम शिला के भीतर गुफ़ा का दर्शन करता है, उसके पितर तृप्त होकर कल्प के अन्ततक स्वर्ग में निवास करते हैं. जहाँ द्वारकापुरी की शिला- अर्थात गोमती चक्र रहता है, वह स्थान वैकुण्ठ लोक माना जाता है; वहाँ मृत्यु को प्राप्त हुआ मनुष्य विष्णुधाम में जाता है.

मोक्ष प्रदायक विभिन्न स्थल के शालिग्राम:-
शालिग्राम-स्थल से प्रकट हुए भगवान शालिग्राम और द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र- इन दोनों देवताओं का जहाँ समागम होता है, वहाँ मोक्ष मिलने में तनिक भी सन्देह नहीं है. द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र से युक्त, अनेकों चक्रों से चिह्नित तथा चक्रासन-शिला के समान आकार वाले भगवान शालिग्राम साक्षात चित्स्वरूप निरंजन परमात्मा ही हैं. 

शालिग्राम का स्वरूप :- 
जिस शालिग्राम-शिला में द्वार-स्थान पर परस्पर सटे हुए दो चक्र हों, जो शुक्ल वर्ण की रेखा से अंकित और शोभा सम्पन्न दिखायी देती हों, उसे भगवान श्री गदाधर का स्वरूप समझना चाहिये. संकर्षण मूर्ति में दो सटे हुए चक्र होते हैं, लाल रेखा होती है और उसका पूर्वभाग कुछ मोटा होता है. प्रद्युम्न के स्वरूप में कुछ-कुछ पीलापन होता है और उसमें चक्र का चिह्न सूक्ष्म रहता है. अनिरुद्ध की मूर्ति गोल होती है और उसके भीतरी भाग में गहरा एवं चौड़ा छेद होता है; इसके सिवा, वह द्वार भाग में नील वर्ण और तीन रेखाओं से युक्त भी होती है. भगवान नारायण श्याम वर्ण के होते हैं, उनके मध्य भाग में गदा के आकार की रेखा होती है और उनका नाभि-कमल बहुत ऊँचा होता है. भगवान नृसिंह की मूर्ति में चक्र का स्थूल चिह्न रहता है, उनका वर्ण कपिल होता है तथा वे तीन या पाँच बिन्दुओं से युक्त होते हैं. ब्रह्मचारी के लिये उन्हीं का पूजन विहित है. वे भक्तों की रक्षा करनेवाले हैं. जिस शालिग्राम-शिला में दो चक्र के चिह्न विषम भाव से स्थित हों, तीन लिंग हों तथा तीन रेखाएँ दिखायी देती हों; वह वाराह भगवान का स्वरूप है, उसका वर्ण नील तथा आकार स्थूल होता है. भगवान वाराह भी सबकी रक्षा करने वाले हैं. कच्छप की मूर्ति श्याम वर्ण की होती है. उसका आकार पानी की भँवर के समान गोल होता है. 

उसमें यत्र-तत्र बिन्दुओं के चिह्न देखे जाते हैं तथा उसका पृष्ठ-भाग श्वेत रंग का होता है. श्रीधर की मूर्ति में पाँच रेखाएँ होती हैं, वनमाली के स्वरूप में गदा का चिह्न होता है. गोल आकृति, मध्यभाग में चक्र का चिह्न तथा नीलवर्ण, यह वामन मूर्ति की पहचान है. जिसमें नाना प्रकार की अनेकों मूर्तियों तथा सर्प-शरीर के चिह्न होते हैं, वह भगवान अनन्त की प्रतिमा है. दामोदर की मूर्ति स्थूलकाय एवं नीलवर्ण की होती है. उसके मध्य भाग में चक्र का चिह्न होता है.भगवान दामोदर नील चिह्न से युक्त होकर संकर्षण के द्वारा जगत की रक्षा करते हैं. जिसका वर्ण लाल है, तथा जो लम्बी-लम्बी रेखा, छिद्र, एक चक्र और कमल आदि से युक्त एवं स्थूल है, उस शालिग्राम को ब्रह्मा की मूर्ति समझनी चाहिये. जिसमें बृहत छिद्र, स्थूल चक्र का चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह श्रीकृष्ण का स्वरूप है. वह बिन्दुयुक्त और बिन्दुशून्य दोनों ही प्रकार का देखा जाता है. हयग्रीव मूर्ति अंकुश के समान आकार वाली और पाँच रेखाओं से युक्त होती है. भगवान वैकुण्ठ कौस्तुभ मणि धारण किये रहते हैं. उनकी मूर्ति बड़ी निर्मल दिखायी देती है. वह एक चक्र से चिह्नित और श्याम वर्ण की होती है. मत्स्य भगवान की मूर्ति बृहत कमल के आकार की होती है.उसका रंग श्वेत होता है तथा उसमें हार की रेखा देखी जाती है. जिस शालिग्राम का वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भाग में एक रेखा दिखायी देती हो तथा जो तीन चक्रों के चिह्न से युक्त हो, वह भगवान श्री रामचन्द्रजी का स्वरूप है, वे भगवान सबकी रक्षा करनेवाले हैं.

द्वारकापुरी में भगवान गदाधर:-
भगवान गदाधर एक चक्र से चिह्नित देखे जाते हैं. लक्ष्मी नारायण दो चक्रों से, त्रिविक्रम तीन से, चतुर्व्यूह चार से, वासुदेव पाँच से, प्रद्युम्न छ: से, संकर्षण सात से, पुरुषोत्तम आठ से, नवव्यूह नव से, दशावतार दस से, अनिरुद्ध ग्यारह से और द्वादशात्मा बारह चक्रों से युक्त होकर जगत की रक्षा करते हैं. इससे अधिक चक्र चिह्न धारण करने वाले भगवान का नाम अनन्त है.ऐसा बताया जाता है शालिग्राम शिलाएं 33 प्रकार की होती हैं. शालिग्राम शिलाओं से 24 प्रकारों की पूजा भगवान विष्णु के 24 अवतारों के तौर पर की जाती हैं. (लेखक सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद पर कार्य कर चुके हैं. वर्तमान में साहित्य, इतिहास, पुरातत्व और अध्यात्म विषयों पर  अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं.)

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