वैशाली सुपरफास्ट का इस तारीख़ को मनाया जायेगा birthday, स्टेशन पर होगा भव्य स्वागत
शुरुआत में ट्रेन समस्तीपुर से खुलकर बरौनी, मोकामा, पटना के रास्ते नई दिल्ली को जाती थी
वैशाली का परिचालन समय से होने और इसके हर कोच सुंदर दिखने से लोगों को इसका सफर खूब भाता था। वैशाली की शान अब भी बरकरार है। दिल्ली जाने वाले यात्री गोरखधाम के बाद दूसरी प्राथमिकता वैशाली को ही देते हैं।
26 जनवरी को होगी साल की स्पेशल
आधुनिक सुविधाओं से लैस वैशाली सुपरफास्ट ट्रेन की शुरुआत से लेकर अब तक रेलवे बोर्ड की सबसे महत्वपूर्ण ट्रेनों में से एक है, शुरुआत से लेकर अब तक पूर्वोत्तर रेलवे की वैशाली एक्सप्रेस सबसे तेज ट्रेन मानी जाती है। वैशाली एक्सप्रेस बनने से पहले यह जयंती जनता एक्सप्रेस थी। जिसका परिचालन 31 अक्टूबर 1973 को समस्तीपुर से नई दिल्ली तक हुआ। इसका उद्घाटन तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने किया था। शुरुआत में ट्रेन समस्तीपुर से खुलकर बरौनी, मोकामा, पटना के रास्ते नई दिल्ली को जाती थी। 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर रेलखंड के बड़ी रेललाइन में परिवर्तित होने के बाद यह मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, बरौनी, पटना होकर चलने लगी। 7 साल बाद वर्ष 1982 से बरौनी से खुलकर मोकामा, पटना नहीं जाकर यह समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर होकर चलने लगी। इसके बाद 1984 से इसका संचालन वाया गोरखपुर से हो गया। फिर 7 मार्च 2019 से इसका विस्तार सहरसा तक कर दिया गया। खास बात यह है कि वर्ष 1970 में कटिहार, कानपुर, अनवरगंज, आगरा फोर्ट के लिए छोटी लाइन में वैशाली एक्सप्रेस के नाम से ट्रेन चलती थी। बाद में इस ट्रेन को बंद कर दिया गया। लखनऊ और कानपुर रूट पर इस ट्रेन को लाने के लिए जयंती जनता का नाम बदलकर वैशाली सुपरफास्ट ट्रेन कर दिया गया, वैसे भारतीय रेलवे ने इस नाम पर मिटाया नहीं है, गाड़ी संख्या 16381 जो पुणे से कन्याकुमारी तक जाती है, उस ट्रेन का नाम आज की तारीख में जयंती जनता ही है, ऐसे में नाम और नंबर दोनों इस ट्रेन के अब अलग-अलग हो चुके हैं, सुविधाएं तो नाम बदलने के साथ ही खत्म कर दिये जा चुके हैं, आज की तारीख में वैशाली एक्सप्रेस एक आम ट्रेन बन कर रह गया है। वैशाली 3 करोड़ से अधिक यात्रियों को उनके गन्तव्य तक पहुंचा चुकी है यह ट्रेन। वैशाली ट्रेन में टीटीई की जिम्मेदारी निभा चुके केके श्रीवास्तव बताते हैं कि गोरखपुर-लखनऊ रूट में वैशाली की तुलना राजधानी से करते थे लोग। एक दौर था जब लखनऊ रूट पर सफर करने वाले यात्री वैशाली एक्सप्रेस की तुलना राजधानी से करते थे लोग। एक दौर था जब लखनऊ रूट पर सफर करने वाले यात्री वैशाली एक्सप्रेस की तुलना राजधानी से किया करते थे। सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह ने बताया कि गोरखपुर रूट से चलने वाली वैशाली एक्सप्रेस 26 जनवरी 1984 से शुरू हुई थी। 41 साल पूरे होने पर ट्रेन को दुल्हन की तरह सजकर रवाना होगी। प्रमुख स्टेशनों का इसका स्वागत भी किया जाएगा। वैशाली उन ट्रेनों में शुमार है, जो अभी तक के सफर में सबसे कम निरस्त हुईं और लेटलतीफी भी अन्य ट्रेनों की तुलना में कम रही है।
जयंती जनता एक्सप्रेस ने पूरे किये
इस 26 जनवरी को वैशाली 41 साल की हो जाएगी। गोरखपुर होते हुए नई दिल्ली जाने वाली वैशाली एक्सप्रेस अपने 41 साल के स्वर्णिम काल में तीन करोड़ से अधिक यात्रियों को उनके गन्तव्य तक पहुंचा चुकी है। 41 साल पूरे होने पर ट्रेन को दुल्हन की तरह सजकर रवाना होगी। प्रमुख स्टेशनों का इसका स्वागत भी किया जाएगा। वैशाली उन ट्रेनों में शुमार है जो अभी तक के सफर में सबसे कम निरस्त हुई और लेटलतीफी भी अन्य ट्रेनों की तुलना में कम रही है। दरअसल वैशाली का परिचालन समय से होने और इसके हर कोच सुंदर दिखने से लोगों को इसका सफर खूब भाता था। हालांकि वैशाली की शान अब भी बरकरार है। दिल्ली जाने वाले यात्री गोरखधाम के बाद दूसरी प्राथमिकता वैशाली को ही देते हैं। दिल्ली से बरौनी के बीच चलने वाली वैशाली एक्सप्रेस का नाम पहले जयंती जयंता एक्सप्रेस था। इसकी खासियत यह थी कि एसी कोच के बाहर और भीतर मधुबनी पेंटिंग लगाकर सजावट की गई थी। एसी कोच में 2 रुपये में एक दरी, दो चादर मिलता था अगर कंबल लेना है तो 1.50 रुपये अलग से देना था। सीता स्वयंवर पर आधारित मधुबनी पेंटिंग बनाए गए थे। सबसे खास बात यह थी कि ट्रेन में बेडरोल ;दरी, चादर, तकिया व तौलिया, दिया जाता था। इसका चार्ज डेढ़ रुपये था। अगर कंबल भी लेना है तो शुल्क दो रुपये देने पड़ते थे। पहले यह ट्रेन सप्ताह में चार दिन चलती थी 16 जुलाई 1984 से यह प्रतिदिन चलने लगी।