पैंडोरा पेपर्स से जुड़े नाम सामने लाए जाएं

वेद प्रताप वैदिक

पैंडोरा पेपर्स से जुड़े नाम सामने लाए जाएं
Opinion Bhartiya Basti 2


अब से 5-6 साल पहले 'पनामा पेपर्सÓ ने सारी दुनिया में तहलका मचा दिया था, अब उससे भी बड़ा भंडाफोड़ हुआ है- 'पैंडोरा पेपर्सÓ। 'पनामा पेपर्सÓ से तो पनामा नामक देश की वजह से जाने गए, लेकिन 'पैंडोरा पेपर्सÓ तो पैंडोरा नामक मिथकीय यूनानी महिला पैंडोरा के नाम से जाने जा रहे हैं। यूनानी देवता प्रोमिथियस ने पैंडोरा नामक परम सुंदरी को एक ऐसा बक्सा भेंट किया था, जिसमें दुनिया की सारी बुराइयां छिपा रखी थीं। विदेश में दुनिया के अमीरों ने जो मिल्कियत छुपा रखी है, उसकी जानकारी एक खोपत्रकार संगठन लेकर आया है। जिन दस्तावेजों की जानकारी इस संगठन ने सार्वजनिक की है, उसे ही 'पैंडोरा पेपर्सÓ कहा जा रहा है।
पनामा पेपर्स में क्या हुआ
इस खोपत्रकार संगठन ने 14 कंपनियों के लगभग सवा करोड़ दस्तावेजों की जांच करके 2900 बैंक-खातों को पकड़ा है। इन खातों में गरीब और अमीर देशों के सैकड़ों लोगों ने 130 बिलियन डॉलर जमा कर रखे हैं। जमा करने वाले ये लोग कौन हैं? इनमें कई देशों के बादशाह, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, नेता और उद्योगपति तो हैं ही, उनके साथ कई आतंकवादी, तस्कर, फौजी, सरकारी अधिकारी, फिल्मी और खिलाड़ी लोग भी शामिल हैं। अगर भारत के 380 खाते पकड़े गए हैं तो पाकिस्तान के 700 से भी ज्यादा खाते विदेशी बैंकों में पकड़े गए हैं।
ये खाते अपने-अपने देशों में नहीं हैं। विदेशों में हैं। कुछ अपने नाम से हैं। कुछ फर्जी नाम से हैं और कुछ न्यासों (ट्रस्टों) और कंपनियों के नामों से हैं। अधिकतर खाते ऐसे छोटे-मोटे देशों में हैं, जिनके नाम भी आपने कभी नहीं सुने होंगे। जैसे बहामा, सेंट किट्स, सेंट बार्थालेमी, वनातूआ, वर्जिन आइलैंड, नौरू, बरमूडा आदि। इन देशों में लोग अपना धन इसलिए छिपाते हैं कि एक तो उन्हें वहां आयकर नहीं देना पड़ता और दूसरा कारण यह है कि उनकी गोपनीयता बनी रहती है। किसी को पता ही नहीं चलता कि किसका पैसा कहां छिपा हुआ है।
उद्योगपति और व्यापारी तो सिर्फ टैक्स बचाने के लिए अपना पैसा इन देशों में छिपाते हैं लेकिन नेता, अफसर, तस्कर, आतंकवादी और अपराधी अपना अनैतिक और अवैधानिक तरीकों से अर्जित धन वहां छिपाते हैं। इसीलिए जब कुछ भारतीय अखबारों में कुछ उद्योगपतियों और खिलाडिय़ों के नाम उजागर हुए, तो उन्होंने सफाई पेश करनी शुरू कर दी। जो उद्योगपति खुद को दिवालिया घोषित कर चुके हैं, उनके भी वहां करोड़ों-अरबों रुपये पाए गए हैं।
बीजेपी सरकार ने इस तरह के खाताधारियों के विरुद्ध 2015 में कड़े कानून बनाए थे। लेकिन क्या वजह है कि अभी तक न तो पनामा पेपर्स के दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई हुई है और न अभी तक 'पेंडोरा पेपर्सÓ के नामों को उजागर किया गया है। जो कुछ नाम एक भारतीय अंग्रेअखबार ने उजागर किए हैं, उनमें भी न नेताओं के नाम हैं, न आतंकवादियों के और न ही अफसरों के। जिसका भी खाता इन विदेशी बैंकों में हो, उसका नाम बताने में संकोच की जरूरत क्या है? सांच को आंच कैसी? जरा मालूम तो पड़े कि भारतीयों के 20 हजार करोड़ डॉलर वहां जमा हैं तो किसके कितने हैं?
जरा गौर करें कि पाकिस्तान के दर्जनों नेताओं, मंत्रियों, फौजियों, अफसरों और दलालों के नाम उजागर हो चुके हैं, लेकिन भारतीयों के नाम पता नहीं चल रहे। इसका कारण यह भी हो सकता है कि अगर नेताओं और अफसरों के नाम उजागर हो गए तो शायद किसी भी पार्टी की कमीज सफेद न पाई जाए। पूरे कुएं में ही भांग पड़ी हुई है। बोफोर्स के लेन-देन में चाहे असली लोग बच गए, लेकिन लोगों को पता चल गया कि राजनीति लंबे-चौड़े लेन-देन के बिना चल ही नहीं सकती। पैंडोरा पेपर्स कांड में सामने आए पाकिस्तानी नामों से यह तर्क अपने आप सिद्ध हो जाता है।
विदेशी बैंकों में यह पैसा नेता और अफसर लोग इसलिए छिपाते हैं कि इसका पता किसी को भी नहीं चले। यदि यह पैसा उसी तरह भारत में भी छिपाकर रख सकते हों तो शायद टैक्स भरने में भी उन्हें कोई एतराज न हो, क्योंकि उनके सैकड़ों विश्वसनीय अनुयायियों के नाम से वे खाते खोलकर टैक्स बचा सकते हैं, लेकिन वे अपने साथियों को भी इस गुप्त धनराशि का सुराग नहीं लगने देना चाहते।
लेकिन व्यापारियों और उद्योपतियों को यदि आयकर भरने का डर न हो तो उन्हें अपनी कमाई छिपाने का कोई कारण नहीं है। दुनिया के 23 देश ऐसे हैं, जिनमें आयकर नाम की कोई चीज ही नहीं है। लेकिन अधिकतर वे सभी छोटे-छोटे देश हैं। उनके सरकारी खर्च भी कम हैं, मगर भारत-जैसे बड़ी जनसंख्या वाले और विशाल देश की सरकार यथेष्ट आमदनी के बिना कैसे चल सकती है? अपनी यथेष्ट आमदनी की खातिर ही इंदिरा-राज में आयकर की दर लगभग गलाघोंटू बन गई थीं। अब भी सरकार को आयकर से हर साल लगभग 11-12 लाख करोड़ रुपये मिलते हैं। यदि सब लोग अपना आयकर ईमानदारी से भरें तो सरकार की आमदनी डेढ़ी-दुगुनी हो सकती है।
आयकर नहीं भरने या बचाने की इच्छा ही काले धन की जननी है। इस काले धन को खत्म करने के लिए ही मोदी सरकार ने नोटबंदी का जबर्दस्त कदम उठाया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। नोटबंदी का विचार जिन लोगों ने चलाया था, उनकी सारी शर्तें सरकार लागू कर देती तो शायद कालेधन पर लगाम लग सकती थी। लेकिन अब काला धन रखना ज्यादा आसान हो गया है। एक हजार का नोट खत्म किया, लेकिन सरकार ने उसकी जगह दो हजार का नोट चला दिया। नोट बदलवाने की लाइनों में खड़े सैकड़ों लोगों ने दम तोड़ दिया। नए नोट छापने में हजारों करोड़ रुपये नए सिरे से खर्च हो गए।
बैंकिंग लेन-देन पर टैक्स!
यदि सरकार 100 रुपये को डॉलर की तरह सबसे बड़ा नोट बनाए, बैंकिंग को बढ़ावा दे और बैंक के लेन-देन पर नाम मात्र का टैक्स लगाए तो उसके पास आयकर से भी बड़ा पैसा जमा हो सकता है। इसके अलावा आयकर से ज्यादा वह जायकर (खर्च पर टैक्स) पर जोर दे तो सरकारी खजाना भर जाएगा। मालदार और मध्यमवर्गीय लोग फिजूलखर्ची कम करेंगे और उससे भारी बचत होगी। बचत का यह पैसा उद्योग-धंधों में लगेगा और करोड़ों नए रोजगार पैदा होंगे। लोग अपने धन को छिपाने से बाज आएंगे। जब धन काला नहीं होगा तो उसे वे छिपाएंगे क्यों? विदेशी बैंकों में पैसा छिपाने की कोशिश अपने आप अनावश्यक हो जाएगी और भारत का भद्रलोक उपभोक्तावाद की चक्की में पिसने से भी बचेगा।

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