नशा-कारोबार के मददगार भी नपें

कृष्ण प्रताप सिंह

नशा-कारोबार के मददगार भी नपें
Opinion Bhartiya Basti 2

 

नशे के वैध-अवैध और देशी-विदेशी सौदागर देश के युवाओं के भविष्य के साथ कैसे खिलवाड़ में लगे हुए हैं, इसकी एक मिसाल डीआरआई यानी राजस्व खुफिया निदेशालय और कस्टम अधिकारियों द्वारा चलाये गये संयुक्त अभियान में गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से, दो कंटेनरों में भरी करीब 3000 किलो हेरोइन बरामद किया जाना भी है। गुजरात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का गृह प्रदेश तो रहा ही है, मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह प्रदेश भी है। ऐसे प्रदेश में इस तरह हेरोइन की बरामदगी से साफ है कि नशे के सौदागर पूरी तरह बेखौफ हैं।

बहरहाल, बरामद हेरोइन की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत पन्द्रह हजार करोड़ रुपये तक बतायी जा रही है। खबरों के अनुसार जिन कंटेनरों से उक्त हेरोइन पकड़ी गयी, उनको आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा स्थित एक फर्म द्वारा अफगानिस्तान के कंधार स्थित फर्म हसन हुसैन लिमिटेड से आयात किया गया और कागजात में हेरोइन को टेल्कम पाउडर बताया गया था। राजस्व खुफिया निदेशालय और कस्टम अधिकारियों की मानें तो वे इसकी सूचना पाने के बाद पांच दिनों से उसकी बरामदगी का ऑपरेशन चला रहे थे और अब सुरागों के आधार पर अहमदाबाद, चेन्नई, विजयवाड़ा और राजधानी दिल्ली वगैरह में भी छापे मार रहे हैं।

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लेकिन सवाल है कि क्या नशे के कारोबार पर अंकुश के लिए ऐसे ऑपरेशन ही पर्याप्त हैं और उन्हीं के बूते हम अपनी नयी पीढ़ी को नशे से बचाने का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं? इसका सीधा जवाब है : नहीं। ऐसा तब तक नहीं हो सकता, जब तक इस कारोबार को लेकर राजनीति और साथ ही उसको संरक्षण बन्द न हो। इस सिलसिले में सोशल मीडिया पर पूछा जा रहा यह सवाल कुछ हलकों के लिए अप्रिय व असुविधाजनक भले हो, उसका जवाब जरूरी है कि कहीं हेरोइन की यही बरामदगी पंजाब, महाराष्ट्र या सीमावर्ती राज्यों में सबसे संवेदनशील कश्मीर में हुई होती तो अब तक सत्ता के केन्द्रीय गलियारे उस पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहे होते? इस सवाल को इन गलियारों के समर्थकों से भी पूछा जा सकता है, जिन्होंने पिछले साल बालीवुड से जुड़े कुछ अभिनेताओं व अभिनेत्रियों के पास से 10-15 ग्राम नशीली वस्तुएं मिलने को भी बेहद सनसनीखेज बनाकर परोसा था।

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अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की दुर्भाग्यपूर्ण मौत के बाद उन्होंने बॉलीवुड में नशे के कारोबार की कहानियों में भांति-भांति के मसाले मिलाकर सायास ऐसा माहौल बनाया था, जिससे लगे कि ग्लैमर की दुनिया का सबसे काला सच नशे का गोरखधंधा ही है। इससे पहले पंजाब में नशे की समस्या पर केंद्रित फिल्म 'उड़ता पंजाबÓ पर काफी विवाद खड़ा हुआ था और उसे अनावश्यक रूप से क्षेत्र विशेष की अस्मिता से भी जोड़ा गया था।

पंजाब की बात करें तो वहां तो 2017 के विधानसभा चुनाव में भी नशा एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था। तब वहां कांग्रेस नेता कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने चार हफ्ते में नशे के कारोबारियों की कमर तोडऩे की कसम खाई थी। लेकिन विडम्बना देखिये कि अब कैप्टन चार साल मुख्यमंत्री रहने के बाद इस्तीफा दे चुके हैं, तो भी इन कारोबारियों की कमर पूरी तरह सही-सलामत है और राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वी दल इसे चुनावी मुद्दा बनाने में लगे हुए हैं।

गुजरात की इस बरामदगी के सिलसिले में भी, जिसका बहुत ढोल पीटा जा रहा है, अफगानिस्तान से निकली हेरोइन की खेप का गुजरात तक निर्विघ्न पहुंचना साफ बताता है कि उसके परिवहन का रास्ता हमवार करने में ऐसी शक्तियां भी लगी हुई थीं, जिन्हें हम अदृश्य शक्तियां कहते हैं। अब सरकारी एजेंसियां और प्रशासन इस बरामदगी को लेकर ईमानदार हैं तो उनको सख्ती से उन शक्तियों की शिनाख्त कर उन पर भी शिकंजा कसना होगा। अन्यथा बड़ी मछलियां फिर बच निकलेंगी। यह भी समझना होगा कि नशे के बड़े सौदागरों के रैकेट अंतर्राष्ट्रीय हुआ करते हैं और वे किसी देश की सीमा अथवा स्वार्थों में नहीं बंधा करते। इसे यों भी समझ सकते हैं कि जिस अफगानिस्तान से हेरोइन की उक्त खेप गुजरात को निर्यात की गई, उस पर अब तालिबान का राज है तो कहा जा रहा है कि उसका नशे का कारोबार और निर्भय होकर दुनिया के अनेक देशों में, जिनमें भारत भी शामिल है, नये-नये गुल खिलायेगा । इस लिहाज से निस्संदेह, हमें पहले से ज्यादा सचेत होने की जरूरत है।

लेकिन इस सवाल की भी कतई उपेक्षा नहीं की जा सकती कि बीस साल के अपने राज में अमेरिका ने भी अफगानिस्तान में नशे के कारोबार को नियंत्रित या विनियमित करने की कोई कोशिश क्यों नहीं की? इसके पीछे उसकी कौन-सी स्वार्थ साधना थी? बताने की जरूरत है क्या?

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