Madhya Pradesh Politics: भाजपा-कांग्रेस में पनप रहा असंतोष

Madhya Pradesh Politics: भाजपा-कांग्रेस में पनप रहा असंतोष
Madhya Pradesh Politics

भोपाल. भाजपा और कांग्रेस में असंतुष्ट गतिविधियां बढऩे की आशंका है. भाजपा में मुख्यमंत्री पर निगम मंडलों में नियुक्ति करने के लिए दबाव है लेकिन राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि मुख्यमंत्री फिलहाल नियुक्तियां करने के पक्ष में नहीं हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस में भी असंतुष्ट गतिविधियोंं की खबर है. सूत्रों के अनुसार पार्टी का एक वर्ग चाहता है कि कमलनाथ प्रदेशाध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष में से कोई एक पद छोड़ दें. खबर तो यह भी है कि इस संबंध में राहुल गांधी से शिकायत की जा चुकी है. कमलनाथ के एक समर्थक के अनुसार उनके नेता 2023 तक दोनों पदों पर बने रहेंगे. जबकि पार्टी के एक अन्य नेता मानते हैं कि उपचुनाव के बाद कमलनाथ के लिए दोनों पदों पर बने रहना संभव नहीं दे पाएगा.

कांग्रेस आलाकमान इन दिनों पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम में बढ़ रही असंतुष्ट गतिविधियों से परेशान हैं. ऐसे में उसके पास मध्यप्रदेश के लिए समय नहीं है, लेकिन देर सवेर आलाकमान को मध्यप्रदेश में हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा. सूत्रों के अनुसार प्रदेश में असंतुष्ट गतिविधियों के पीछे दिग्विजय सिंह गुट का हाथ है जो परोक्ष में रहकर कमलनाथ पर दबाव पर दबाव बना रहे हैं. भाजपा में विंध्य क्षेत्र में असंतुष्ट गतिविधियां अधिक हैं. यहां के नारायण त्रिपाठी, केदार शुक्ला, राजेंद्र शुक्ला और नागेंद्र सिंह निगम मंडल में नियुक्तियां और मंत्रिमण्डल का विस्तार नहीं होने से नाराज बताए जा रहे हैं. नारायण त्रिपाठी तो किसी ना किसी बहाने नाराजगी व्यक्त करते रहते हैं. अन्य तीन विधायक भी गौरीशंकर बिसेन के यहां बैठक कर चुके हैं.

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इनके अलावा महाकौशल के अजय विश्नोई भी लगातार असंतुष्ट गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं और ट्विटर के माध्यम से प्रदेश सरकार की आलोचना करते हैं. इन विधायकों के साथ ही रघुनंदन शर्मा, गौरीशंकर शेजवार, दीपक जोशी जैसे नेता भी असंतुष्ट खेमे में माने जाते हैं. यह सभी अपने राजनीतिक पुनर्वास के लिए दबाव बना रहे हैं.

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लगातार दबाव के बावजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान निगम मंडल में नियुक्तियां करने की स्थिति में नहीं हैं. एक तो विधानसभा उपचुनाव पर इसका असर पड़ेगा दूसरी बात यह है कि नियुक्तियों में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को महत्व देना पड़ेगा. इससे भाजपा के पुराने नेताओं को अधिक पद नहीं मिल पाएंगे. महत्वपूर्ण निगम मंडल भी सिंधिया समर्थकों को दिए जा सकते हैं. ऐसे में कम महत्व वाले निगम मंडलों में नियुक्ति से भी असंतोष फैल सकता है. इसलिए मुख्यमंत्री चाहते हैं कि जब तक संभव हो निगम मंडल की नियुक्तियों को टाला जाए.  

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