पाकीज़ा पार्ट -1: किस्सों की दुनिया में ‘पाकीज़ा’ फ़िल्म के कुछ अनछुए पहलू

पाकीज़ा पार्ट -1: किस्सों की दुनिया में ‘पाकीज़ा’ फ़िल्म के कुछ अनछुए पहलू
Pakeeza

नंदनी अग्रवाल
हिंदी फ़िल्मो में बहुत से निर्माता हुए सबकी अपनी ख़ासियत रही और सब अपने काम में माहिर रहे। आज जब टेक्नोलॉजी के मामलें में भारतीय सिनेमा काफी मजबूत हो गयी है और हर चीज़ बड़ी आसानी से हो जाती है। लेकिन आज से 50 साल पहले जब ऐसी तकनीकी सुविधा नहीं थी उस वक़्त अपनी कहानी और कैमरे के पीछे अपनी नज़र से जनता को एक बेहतरीन तरीके से फिल्मों की तरफ खींचने वाले कमाल के लेखक,निर्माता और निर्देशक की एक ऐसी बेहतरीन फ़िल्म की बात करूँ जो फ़िल्मी इतिहास में आज भी एक मील का पत्थर है। जी हां बात कमाल अमरोही साहब की जिन्होंने मीना कुमारी के साथ एक क्लासिक और बेहतरीन फ़िल्म बनाई जिसका नाम था ‘पाकीज़ा’।

यूँ तो ‘पाकीज़ा’ बनने साथ ही मीना कुमारी और कमाल साहब को लेकर बहुत से किस्से है लेकिन आज बात सिर्फ और सिर्फ ‘पाकीज़ा’ फ़िल्म की करुँगी। इस फ़िल्म के शुरू होने से लेकर फ़िल्म के बनने तक कई हिस्से है और कई किस्से भी। सभी को एक साथ नहीं लिखूंगी लेकिन हां एक-एक पार्ट कर के लिखने की कोशिश रहेगी। शुरुवात में अपने सबसे पसंदीदा और फ़िल्म के उस सीन से करने जा रही हूँ जहाँ उस फ़िल्म को बनाने का मकसद पूरा हुआ था फ़िल्म के रिलीज़ होने के एक साल बाद जी सही पढ़ा आप सबने एक साल बाद।

दरअसल जब फ़िल्म ‘पाकीज़ा’ पूरी बन चुकी थी तो फ़िल्म की एडिटिंग का काम था चल रहा था और एडिटर ने फ़िल्म के कुछ आखिरी के हिस्से को काट दिया था उन्हें लगा कि ये सीन का कोई मतलब नहीं है। ऐसे में ये बात कमाल अमरोही साहब को पता चली। वो दौड़ते हुए एडिटर डी.एन. पाई साहब के पास पहुँचे। दरअसल वो सीन था जब मीना कुमारी की शादी हो जाती है और उनकी डोली जा रही होती है। उसी वक़्त एक लड़की छत पर खड़ी होकर बड़ी ही मासूमियत से अपनी हसरत से भरी निगाह से ये मंज़र देख रही होती है। एडिटर पी.एन. पाई साहब को लगा इस सीन की यहाँ कोई जगह नहीं है और बिलावजह (बिना वजह) इस सीन से फ़िल्म बड़ी हो रही है।
पी.एन.पाई ने कमाल साहब से पूछा आखिर क्या ख़ास बात है इस सीन में जो आप इस फ़िल्म में रखना चाहते है।

Some untouched aspects of Pakiza film in the world of stories | किस्सों की दुनिया में 'पाकीज़ा' फ़िल्म के कुछ अनछुए पहलू

कमाल साहब ने कहा- दरसअल इस सीन में जो लड़की आपको छत पर खड़ी होकर साहिबजान की डोली को जाते हुए देख रही है, उसकी भी हसरत थी कि शादी हो और कोई उसे इसी तरह डोली में लेकर जाये। पी.एन साहब दरअसल ये ही है असली ‘पाकीज़ा’ है। यह बात सुनकर पी.एन साहब ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, कमाल साहब ये सीन में जोड़ तो देता हूँ लेकिन आपको क्या लगता है कोई भी इस बात को समझ पाएगा? इस सवाल को सुनते ही कमाल साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, अगर कोई एक भी इस सीन को समझ जाएगा तो मैं समझूँगा मेरा फ़िल्म बनाना सफल हुआ।

फ़िल्म रिलीज़ होने के लगभग एक साल बाद कमाल अमरोही के घर एक चिट्ठी आई। उस चिट्टी में लिखा था – आपकी फ़िल्म ‘पाकीज़ा’ आपने बहुत बेहतरीन बनाई है इसके लिए आपको शुभकामनाएं। आगे ख़त में लिखा था कि मुझे उस छत पर खड़ी लड़की की तस्वीर चाहिए। फ़िल्म देखकर मुझे ऐसा लगा कि वही असली ‘पाकीज़ा’ है। कमाल अमरोही साहब इस बात से बेहद खुश हुए। उन्होंने एडिटर डी.एन को बुलाया और कहा कि ध्यान से पढ़ो, यही वो आदमी है जिसने मेरी फ़िल्म देखी है। एडिटर पी.एन.पाई ने चिट्ठी पढ़ते हुए मुस्कुरा कर कहा अब तो तुम्हारी फ़िल्म पूरी हुई।

कमाल साहब ने कहा अभी कुछ और बाकी है और वो ये कि मैं इसको जवाब दे दूँ। कमाल साहब ने जवाबी चिट्ठी में लिखा और ये इजाज़त दी कि इसके बाद कमाल अमरोही साहब ने उस व्यक्ति को एक खत लिखा। ख़त में कमाल साहब ने यह इजाज़त दी कि वो भारत के किसी भी कोने में मेरी फ़िल्म देखेगा तो उसे उसके पैसे देने की जरुरत नहीं होगी। इस तरह फिल्म ‘पाकीज़ा’ एक बेहतरीन सफर तय कर एक खूबसूरत क्लासिक फ़िल्म बनी। खैर किस्से तो और भी है ‘पाकीज़ा’ के क्योंकि मैंने पहले भी कहा है ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता। इसी फ़िल्म के कुछ और किस्से जल्द ही लिखूंगी. (नंदनी स्वतंत्र लेखक हैं. यह उनके निजी विचार हैं.)

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