इजरायल बनाम हमास: दुःखद, हमले की निन्दा तक नहीं?

इजरायल बनाम हमास: दुःखद, हमले की निन्दा तक नहीं?
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योगेश मिश्रा
नर्स दिवस की पूर्व संध्या पर अरब आतंकी गिरोह हरकत इस्लामी (हमास) के राकेट के हमले से गाजा सीमावर्ती इलाके में कार्यरत नर्स सौम्या की 11 मई , 2021 को मृत्यु हो गयी.उसकी अस्सी वर्षीया यहूदी मरीज भी बुरी तरह घायल हो गयी. सौम्या अपने नौ वर्षीय पुत्र का हालचाल अपने पति संतोष से ले रही थी. पति ने विस्फोट सुना. फोन खामोश हो गया. पांच हजार किलोमीटर दूर केरल के हरित जिले इदुक्की के ग्राम कीरीथाडु में अपने कुटुम्ब को छोड़कर सौम्या जीविका हेतु इस्राइल नौ साल पहले आयी थी.

यहूदियों और फलीस्तीनियों के बीच अल-अक्सा मस्जिद के निकट विवाद हुआ. इजराइली प्रशासन द्वारा पूर्वी यरुशलम के शेख जर्राह इलाके से फलस्तीनी परिवारों को बेदखल करने और लोगों के दमिश्क गेट प्लाजा तक जाने पर रोक लगाने पर तनाव हुआ. बीते 6 मई को इजराइली अति राष्ट्रवादियों ने येरुशलम में मार्च निकाला. पूर्वी यरुशलम पर इजरायल के कब्जे की वर्षगांठ मनाई. चिढ़कर फिलिस्तीनी प्रशासन पर काबिज हमास ने गाजा पट्टी से इजरायल की ओर तीन रॉकेट दाग दिए.इसके बाद 7 मई को स्थिति तब बिगड़ गई जब इजराइली सुरक्षा बलों ने अल अक्सा मस्जिद में जमा हुए श्रद्धालुओं पर आंसू गैस, रबर बुलेट और भयंकर आवाज करने वाले ग्रेनेड चलाये. तबसे इजरायली सेना और आतंकी संगठन हमास आमने सामने हैं.

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युद्ध का मैदान बना इजरायल स्थित ‘अल अक्सा’ परिसर एक अनोखी जगह है . यह तीन तीन धर्मों- मुस्लिम, यहूदी और ईसाईयों का पवित्र स्थल है.यरुशलम के पुराने इलाके में 35 एकड़ में यह फैला है. सुनहरे गुम्बद वाली प्राचीन मस्जिद को मुस्लिम अल हरम अल शरीफ या पवित्र शरणस्थली कहते हैं . जबकि यहूदी इसे टेम्पल माउंट कहते हैं.

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अल-अक्सा मस्जिद को मक्का और मदीना के बाद मुसलमानों का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. यरुशलम 640 ईस्वी के दशक में मुस्लिमों के नियन्त्रण में आया था. जिसके बाद यह एक मुस्लिम शहर बन गया. अल-अक्सा मुस्लिम समाज में महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक 620 में पैगम्बर मोहम्मद ने इस्रा और मिराज का अनुभव किया था. उनकी एक चमत्कारिक रात्रि की लंबी यात्रा देवदूत जिब्राइल के साथ हुई थी. इसी यात्रा के दौरान वो अल-अक्सा मस्जिद पहुंचे थे. मुसलमान पहले इसी मस्जिद की ओर मुंह करके नमाज पढ़ते थे. बाद में पैगम्बर मोहम्मद को अल्लाह से मिले आदेश के बाद मक्का के काबा की ओर मुंह करके नमाज पढ़ी जाने लगी.

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इसी जगह पर यहूदियों का टेम्पल माउंट भी है. यहूदी मान्यताओं के मुताबिक टेंपल माउंट पर पहले मंदिर का निर्माण किंग डेविड के पुत्र किंग सोलोमन ने 957 ईसा पूर्व में करवाया था. इसे 586 ईसा पूर्व में शुरुआती बेबीलोन साम्राज्य के शासकों ने तोड़ दिया. इसके बाद दूसरे मंदिर का निर्माण जेरुबेबल ने 516 ईसा पूर्व में कराया. जिसे रोमन साम्राज्य ने 72 ईसा पूर्व में तोड़ दिया.यहूदी इस स्थान को इतना पवित्र मानते हैं कि उसके ऊपर पैर भी नहीं रखते. उन्हें लगता है कि कई महान लोगों के पैर यहां पड़े हैं.

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यहूदी परंपरा में माना जाता है कि जब मसीहा आएंगे तब तीसरे मंदिर का भी निर्माण होगा. रोमन साम्राज्य के हमले के बाद मंदिर की एक दीवार (वेस्टर्न वॉल) बची थी जो आज भी यहूदियों के लिए पवित्र तीर्थ है. माना जाता है कि इसी जगह पर ईसा मसीह को सूली पर टांगा गया था. 1967 के युद्ध में इजरायल द्वारा पूर्व यरुशलम, पश्चिमी तट और गाजा पट्टी पर कब्जा कर लेने के बाद से फलस्तीन के साथ लगातार विवाद और तनाव है. वैसे, अल अक्सा परिसर पर विवाद इजरायल की स्थापना से पहले से ही है.

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पुराने शहर समेत पूर्वी येरूशलम पर 1967 के युद्ध के बाद ही इजरायल ने येरुशलम को अपनी राजधानी घोषित किया. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे मंजूरी नहीं मिल सकी . पुराने येरुशलम में ही अल अक्सा मस्जिद है. उस पर एक तरह से इजरायल का ही नियंत्रण है. लेकिन जॉर्डन व अन्य देशों के साथ आपसी सहमति से इसका प्रशासन वक्फ के पास है. जिसकी फंडिंग और कंट्रोलिंग जॉर्डन करता है. इस संबंध में 1994 में एक समझौता भी जॉर्डन के साथ इजरायल ने किया था. जॉर्डन इसमें महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि वहां के शासक पैगम्बर के वंश के माने जाते हैं. जॉर्डन के वर्तमान शासक किंग अब्दुल्ला द्वितीय, पैगम्बर मोहम्मद साहब के 43 वें डायरेक्ट वंशज माने जाते हैं.

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भले ही मामला यहूदियों और मुसलमानों का है. मुस्लिमों के दूसरे सबसे पवित्र स्थल अल अक्सा मस्जिद पर इजरायल की कार्रवाई के बावजूद मुस्लिम देशों में पहले जैसी एकजुटता नहीं दिखाई . सिर्फ ईरान और तुर्की ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. जॉर्डन, तुर्की और ईरान में प्रदर्शन भी हुए हैं. तुर्की के प्रेसिडेंट एर्डोगन ने कहा है कि वे इजरायल के जबरन कब्जे के खात्मे के लिए मुस्लिम देशों को एकजुट करने के लिए हरसंभव काम करेंगे. ईरान ने भी यही बात कही है.
कोरोना से जूझ रहे भारत में कुछ मुस्लिम संगठनों ने बयान जारी कर इजरायल की निंदा की. वैसे भी इजरायल और मुस्लिम देशों के बीच टकराव या इजरायल के हमले पर हमेशा ही कुछ इस्लामी संगठन भारत में प्रदर्शन करते आये हैं.

बहरहाल, इजरायल और हमास के बीच संघर्ष पूर्ण युद्ध की तरफ बढ़ता दिख रहा है . इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कार्रवाई जारी रखने के साथ ही कहा हमारी यह लड़ाई आतंक के खिलाफ है. इस संघर्ष के लिए हमें दोषी नहीं ठहराया जा सकता. हम पर हमले की शुरुआत की गई है. हम इसका जवाब देना जारी रखेंगे. उन्होंने कहा कि हमारा ऑपरेशन अभी खत्म नहीं हुआ है. हम अभी ऑपरेशन के बीच में हैं. यह ऑपरेशन तब तक जारी रहेगा जब तक हम अंजाम पर नहीं पहुंच जाते.

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फिलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद महमूद अब्बास और बेंजमिन नेतन्याहू ने इजराइल के हमलों के संबंध में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन से बातचीत की . हालाँकि इस जंग में इजराइली डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) ने गाजा टावर को तबाह कर दिया है.जिसमें एसोसिएट प्रेस (एपी) और अलजजीरा समेत कई मीडिया समूहों के ऑफिस थे. लेकिन हमास की पॉलिटिकल विंग का दफ्तर भी इसी टॉवर में था.

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सवाल यह है कि विश्व इस्लामिक आतंकवाद का शिकार कब तक रहेगा? इस्राइल से भारत के रिश्ते पांच दशकों से कटे रहे? बस इसलिए कि यहूदी गणराज्य से नातेदारी जो भी भारतीय पार्टी करती है हिन्दुस्तानी मुसलमान उसे वोट नहीं देते. फिलिस्तीन का मसला कश्मीर जैसा बना दिया गया. दोनों मजहबी पृथकवाद के शिकार रहे. सेक्युलर भारत के किसी भी राजनेता में इतना पुंसत्व नहीं रहा कि वह कहे कि विदेश नीति का एकमात्र आधार राष्ट्रहित होता है, मजहबी अथवा भौगोलिक दबाव नहीं. 1977 में इस्राइल के विदेश मंत्री जनरल मोशे दयान दिल्ली लुकेछिपे आये थे. अटल बिहारी वाजपेयी, विदेश मंत्री, सूरज ढले रात के अंधेरे में सिरी फोर्ट के परिसर में उनसे मिले थे.प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने तब कहा था कि यदि वे और अटलजी रोशनी में इस यहूदी राजनयिक से मिलते तो जनता पार्टी की सरकार ही गिर जाती.

प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने 1992 में इस्राइल को मान्यता दी . उसका राजदूतावास खुलवाया. नरेन्द्र मोदी ने इस्राइल के प्रधानमंत्री को भारत आमंत्रित किया.स्वयं राजधानी तेलअविव और पवित्र जेरुशलेम गये. तेलअविव में कहा, श्श्इतिहास के इस संकोचश्श् को उन्होंने मिटा दिया. प्रधानमंत्री को कहना यह चाहिये था कि वे अल्पसंख्यक वोट बैंक के कैदी नहीं हो सकते. भारत की विदेश नीति को कोई भी आतंकी गुट भयभीत नहीं कर सकता. लेकिन अब राष्ट्रस्तर पर बहस होनी चाहिये. जो दोषी हैं इस्राइल से रिश्ता न रखने के उन अपराधियों को इतिहास के कटघरों में खड़ा किया जाना चाहिए .

भारतीय मुस्लिमों से अपेक्षा की जानी चाहिए कि वे मिल्लत को समझायेंगे कि इस्राइल से मदद भारतहित में है. मसलन, इस्राइल अब 5कृजी में सहयोग कर मुम्बई अस्पताल के मरीज का शल्य चिकित्सा तेलअविव में बैठकर संचालित कर सकता है. भारत को कृषि, जलसिंचन, रेगिस्तान को हराभरा बनाने, खाद्य सुरक्षा आदि में सहयोग दे सकता हे. सुरंग खोदने में उसे दक्षता है. पाकिस्तान सीमा पर इस तकनीक द्वारा वह घुसपैठियों को बाधित कर सकता है. इस्राइल के पास रडार व्यवस्था है, जिससे जंगलों में छिपे नक्सली आतंकियों का पता लगाया जा सकता है.बावजूद इसके हमास के गाजा पट्टी में भारतीय नर्स पर घातक हमले की निन्दा अभी तक भारत में किसी ने नहीं की. ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .)

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