यमुना नदी पर बिना अनुमति पुल निर्माण, सुप्रीम कोर्ट ने सेतु निगम पर ठोका 5 लाख का जुर्माना

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम को कड़ी फटकार लगाते हुए बिना पूर्व अनुमति के यमुना नदी पर पुल निर्माण शुरू करने पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। यह फैसला जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने सुनाया, जिसने सेतु निगम के रवैये पर गहरी नाराजगी जताई।
दरअसल, सेतु निगम ने ताज ट्रेपेजियम जोन (TTZ) के तहत आने वाले रुनकता से बलदेव के बीच एक पुल का निर्माण कार्य शुरू कर दिया था, लेकिन इसके लिए जरूरी वन विभाग की मंजूरी नहीं ली गई। इसके बावजूद निर्माण कार्य जारी रहा और बाद में पेड़ काटने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई। इस मामले पर सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) ने रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए सेतु निगम पर कार्रवाई और जुर्माने की सिफारिश की थी।
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सुनवाई के दौरान जस्टिस ओका ने सेतु निगम के कार्यों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा,
"आप एक सरकारी संस्था हैं और इस अदालत के आदेशों से परिचित भी हैं। फिर भी आपने बिना पूर्व अनुमति के न केवल परियोजना शुरू कर दी, बल्कि पेड़ों की कटाई भी कर डाली। यह गंभीर लापरवाही है।"
यह मामला तब तूल पकड़ा जब सामने आया कि सेतु निगम ने वर्ष 2020 में 35 करोड़ रुपये की लागत से यमुना नदी पर रेणुका धाम रुनकता से बलदेव मार्ग तक पुल बनाने का काम शुरू कर दिया था। नदी में कई पिलर खड़े कर दिए गए, लेकिन अनुमति न मिलने के कारण निर्माण कार्य रोक दिया गया। दरअसल, इस पुल के लिए 249 पेड़ काटने की आवश्यकता थी, लेकिन आधा पुल निर्मित होने के बाद ही निगम ने सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मांगी। जब मामला कोर्ट में पहुंचा, तो CEC ने जांच कर यह खुलासा किया कि बिना मंजूरी के पुल का निर्माण पहले ही आधा पूरा हो चुका था। इस पर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए सेतु निगम पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया।
CEC की रिपोर्ट के अनुसार, पुल निर्माण के लिए 249 की बजाय 198 पेड़ों की कटाई आवश्यक बताई गई। कोर्ट ने आदेश दिया कि कटे गए पेड़ों की भरपाई के लिए 1980 नए पेड़ लगाए जाएंगे और अगले 10 वर्षों तक उनका संरक्षण भी किया जाएगा। इसके लिए सेतु निगम ने फतेहाबाद के बिचौला गांव में 9 हेक्टेयर जमीन वन विभाग को हस्तांतरित की है, जहां पेड़ लगाने के बाद इसे संरक्षित वन घोषित किया जाएगा।
पीठ ने सेतु निगम को निर्देश दिया कि वह राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) के खाते में 5 लाख रुपये जमा करे, तभी उसकी 198 पेड़ काटने की याचिका पर विचार किया जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की लापरवाही सरकारी संस्थानों के लिए अस्वीकार्य है और भविष्य में किसी भी परियोजना से पहले आवश्यक अनुमति लेना अनिवार्य होगा।