कोरोना के बाद ब्लैक फंगस की काली छाया
-राजेश माहेश्वरी
म्यूकर मायकोसिस यानी ब्लैक फंगस ने सरकार व देशवासियों की चिंता बढ़ा दी है. देश में ब्लैक फंगस का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है. बड़ी संख्या में लोग ब्लैब फंगस की चपेट में आ रहे हैं. म्यूकरमाइकोसिस एक ऐसा फंगल इंफेक्शन है जिसे कोरोना वायरस ट्रिगर करता है. यह मुख्य रूप से उन रोगियों को प्रभावित करता है, जिनका स्टेरॉयड और अन्य दवाओं के साथ कोविड-19 का इलाज किया गया है. इसके अलावा जिन लोगों को डायबिटीज, कैंसर जैसी दूसरी गंभीर बीमारियां हैं, वे भी इसकी चपेट में आ सकते हैं. इस फंगस ने रोगियों को सर्जरी के बाद अपने जबड़े और आंखें गंवाने के लिए मजबूर किया है. सवाल यह है कि क्या भारत इसे रोकने में सक्षम हो सकेगा?
विशेषज्ञों के मुताबिक यह फंगस या फफूंद प्रकृति में काफी पाया जाता है, लेकिन यह बीमारी बहुत आम नहीं है, क्योंकि इसकी प्रवृत्ति ज्यादा संक्रामक नहीं है. पर अगर हो जाए, तो इसका इलाज बहुत आसान नहीं होता और बिना इलाज के यह संक्रमण घातक हो सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि शुगर से पीड़ित और स्टेरॉयड ज्यादा लेने वाले मरीजों में ब्लैक फंगस का ज्यादा खतरा है. इससे बचने के लिये शुगर नियंत्रित रखनी चाहिए. स्टेरॉयड के अलावा कोरोना की कुछ दवाएं भी मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर डालती हैं. खासकर कोरोना से उबरे लोगों को लक्षण पर निगरानी रखनी होगी. किसी मरीज में संक्रमण सिर्फ एक त्वचा से शुरू होता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है. उपचार में सभी मृत और संक्रमित ऊतक को हटाने के लिए सर्जरी की जाती है. लक्षण मिलते ही इलाज शुरू होने पर बीमारी से बचाव संभव है.
ब्लैक फंगस में आंख में लालपन और दर्द, बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी में खून या मानसिक स्थिति में बदलाव से इसकी पहचान की जा सकती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों व डाक्टरों के मुताबिक अनियंत्रित डायबिटीज और स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से कमजोर इम्युनिटी वालों और लंबे समय तक आईसीयू में रहने वालों पर ब्लैक फंगस का ज्यादा खतरा है. किसी दूसरी बीमारी से भी फंगल का खतरा बढ़ जाता है. हमारे देश में हेल्थ से जुड़ी सेवाएं पहले ही कोरोना के बोझ तले दबी हुई हैं. ऐसे में ब्लैक फंगस ने डाक्टरों के सामने एक नयी चुनौती खड़ी कर दी है. ब्लैक फंगस की खबरों ने लोगों में बेचैनी बढ़ा दी है. ये कहा जाए कि देश की चरमराई हुई स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से यह नई मुसीबत आई है. कोविड संकट ने सरकारी एवं गैर-सरकारी सेवाओं का असली चेहरा सबके सामने प्रस्तुत कर दिया है.
विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना की अपेक्षाकृत गंभीर स्थिति में वायरस के खिलाफ रोग प्रतिरोधक तंत्र की प्रतिक्रिया ज्यादा उग्र होती है, जिससे वायरस के साथ-साथ शरीर की अपनी कोशिकाएं भी नष्ट होने लगती हैं. रोग प्रतिरोधक तंत्र को दबाने वाली दवाएं इस प्रतिक्रिया की उग्रता कम करके नुकसान व पीड़ा कम करती हैं. जाहिर है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करने के अपने खतरे हैं और उनके गंभीर दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. इसीलिए इन्हें किसी डॉक्टर की लगातार निगरानी में सावधानी के साथ लिया जाना चाहिए और जैसे ही उनकी जरूरत खत्म हो, उन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए. कोरोना में तो अपेक्षाकृत गंभीर मरीजों को ही ये दवाएं दी जानी चाहिए, नब्बे प्रतिशत से ज्यादा मरीजों को इनकी जरूरत नहीं होती. हमारे देश में हुआ यह है कि कोरोना विस्फोट के चलते बड़ी तादाद में मरीजों को डॉक्टरों की निगरानी नहीं मिल पाई. ऐसे में, लोग एक-दूसरे की देखा-देखी या सोशल मीडिया पर प्रचारित नुस्खों को देखकर दवाएं लेने लगे, जिसकी वजह से ब्लैक फंगस और कई दूसरी समस्याएं पैदा हुई हैं.
डाक्टरों का कहना है कि कोरोना से उबरे लोग हवा में फैले रोगाणुओं के संपर्क में आने से भी फंगस की चपेट में आ सकते हैं. इसके अलावा स्किन पर चोट, रगड़ या फिर जले हुए भाग से भी यह शरीर में दाखिल हो सकता है. इसलिए ब्लैक फंगस से बचने के लिये धूल वाली जगह पर मास्क पहनकर जाये. मिट्टी, काई के पास जाते समय जूते, ग्लब्स, फुल टीशर्ट और ट्राउजर पहने. डायबिटीज पर कंट्रोल, इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग या स्टेरॉयड का कम से कम इस्तेमाल कर इससे बचा जा सकता है. एंटीबायोटिक्स या एंटीफंगल दवा का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर ही करना चाहिए. आइसीएमआर ने कोरोना मरीजों को सलाह दी है कि वे ब्लैक फंगस के लक्षणों पर नजर रखें तथा इसकी अनदेखी न करें. फंगस इंफेक्शन का पता लगाने के लिए जांच की भी सलाह दी गई है. साथ ही लक्षण होने पर चिकित्सक से परामर्श करने को कहा गया है. साथ ही इसके लक्षण मिलने पर स्टेरॉयड की मात्रा कम करने या इसे बंद करने का भी सुझाव दिया है.
वहीं सोशल मीडिया पर ब्लैक फंगस के इलाज के लिए कई दवाओं वाले संदेश इन दिनों प्रसारित हो रहे हैं. बेहतर यही है कि लोग जहां तक हो सके, डॉक्टरों की सलाह से ही दवाएं लें और अगर ब्लैक फंगस का शक हो, तो किसी भी सूरत में तुरंत इलाज कराएं. डाक्टरों का कहना है कि फंगल एटियोलॉजी का पता लगाने के लिये केओएच टेस्ट और माइक्रोस्कोपी की मदद लेने से घबराएं नहीं. तुंरत इलाज शुरू होने पर रोग से निजात मिल जाती है.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर पूरे देश में अपना असर दिखा रही है. अभी भी हालात पूरी तरह काबू में नहीं हैं. वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने तीसरी लहर को लेकर भी आशंका व्यक्त की है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अभी से तीसरी लहर से निपटने के पुख्ता इंतजाम पर ध्यान देने की बात कही है. इस बीच ब्लैक फंगस ने मुसीबत बढ़ाने का काम किया है. डाक्टरों का कहना है कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा वक्त में बीमारी से निपटने के लिये सुरक्षित सिस्टम नहीं है. सतर्कता ही बचाव का एकमात्र उपाय है.
-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं.