नज़रिया: जम्मू-कश्मीर में ड्रोन हमले ने बढ़ाई चिंता

-राजेश माहेश्वरी
जम्मू हवाई अड्डे के वायुसेना बेस पर ड्रोन द्वारा विस्फोटक हमला नाकाम रहा. लेकिन ड्रोन से हमला एक बेहद खतरनाक प्रयोग है. ड्रोन से हमले किसने करवाया इसकी जांच तो सुरक्षा एजेंसिया कर रही है. जम्मू में वायुसेना के टेक्निकल एयरपोर्ट पर ड्रोन से हमला होता है. उसके अगले दिन रतनूचक्क इलाके में सेना की ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर ड्रोन दिखाई पड़ता है. ये सब महज एक संयोग नहीं है. भावी ड्रोन हमले की बाकायदा एक रिहर्सल है. फिलहाल यह पता नहीं चल पाया है कि यह ड्रोन किधर से आया और जांच में जुटे अधिकारी दोनों ड्रोन के हवाई मार्ग का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं. जांचकर्ताओं ने हवाई अड्डे की चहारदीवारी पर लगे कैमरों सहित सीसीटीवी फुटेज खंगाली ताकि यह पता लगाया जा सके कि ड्रोन कहां से आए थे. निस्संदेह, अपने किस्म के पहले आतंकी हमले ने सेना व वायुसेना की चिंता बढ़ा दी है.
हमारे पास बड़े ड्रोन को इंटरसेप्ट करने के एयर डिफेंस सिस्टम हैं पर छोटे ड्रोन को रोकने के बहुत पुख्ता इंतजाम नहीं है. क्योंकि ये काफी नीचे उड़ते हैं और इनका रडार की पकड़ में आना मुश्किल हो जाता है. जब सऊदी अरब में अरमोके तेल डिपो में ऐसे ही हमला हुआ था तो उनकी सुरक्षा में अमेरिका तैनात था, वह भी ऐसे हमले को नहीं रोक पाया था. आशंका है कि आतंकियों ने क्वॉडकॉपर ड्रोन के जरिए एयरफोर्स स्टेशन पर विस्फोटक गिराए. ये तरीका नया नहीं है. यमन के हूती विद्रोही भी यही तरीका अपनाते हैं. ये सऊदी अरब के एयरबेस और तेल के ठिकानों पर हमला करते हैं.
बड़ी चिंता की बात यह है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के पास अभी तक एंटी ड्रोन सिस्टम का अभाव है. चीन, 3600 ड्रोन एक साथ उड़ाकर यह दिखाता है कि उन्हें कंट्रोल कैसे किया जाता है, वहां उपलब्ध इस तकनीकी जानकारी से भारत को बहुत कुछ सीखने की जरुरत है. तीन-चार साल से एंटी ड्रोन सिस्टम लाने की बात चल रही है. धरातल पर कुछ नहीं हो सका है. अब ड्रोन के जरिए सैनिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है. इसके बाद पावर प्लांट, रिफाइनरी, न्यूक्लियर प्लांट, डैम और आयुध कारखाने भी ड्रोन हमले की जद में आ सकते हैं.
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यह हमला हवाई अड्डे के टेक्निकल एरिया में हुआ है जो इस मायने में महत्वपूर्ण होता है कि वहां सभी एयरक्राफ्ट, हेलिकॉप्टर व पुर्जे व हार्डवेयर रखे होते हैं. जम्मू हवाई अड्डा एक घरेलू हवाई अड्डा है जो भारत और पाकिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. वायुसेना की महत्वपूर्ण रणनीतिक संपत्तियों में शामिल इस हवाई अड्डे से रसद सामग्री आपूर्ति संचालन, आपदा में मदद व घायलों को राहत का कार्य किया जाता है जो सर्दियों में सैन्य गतिविधियों के संचालन का केंद्र होता है. सियाचिन ग्लेशियर के लिये रसद व मदद का काम यहीं से संचालित होता है.
कारगिल युद्ध में भी इसकी निर्णायक भूमिका रही है. हमले में पाक की धरती से हमलावरों को मदद मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता. आशंका है कि दोनों ड्रोन सीमापार से संचालित किये जा रहे थे. यही वजह है कि विस्फोट से आतंकी नेटवर्क की संलिप्तता की विभिन्न कोणों से जांच की जा रही है, जिसमें वायुसेना, सेना व पुलिस के बड़े अधिकारी भी शामिल हैं. इस बाबत कुछ संदिग्धों को भी गिरफ्तार किया गया है. वहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए लश्कर-ए-तैयबा के एक आतंकी को गिरफ्तार किया है. उसके पास से पांच किलो आईईडी बरामद की है, जिसके जरिये वह किसी भीड़भाड़ वाले इलाके में बड़ा धमाका करने की फिराक में था.
यह हवाई क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सरहद से मात्र 14 किलोमीटर दूर है, जबकि चीनी ड्रोन में 20 किलो विस्फोटक ले जाने की क्षमता है. यह संदेह भी जताया जा रहा है कि यह नए किस्म की हमलावर उड़ान स्थानीय गिरोह की मदद से भी उड़ाई गई हो! कुछ भी हो, लेकिन यह विस्फोटक वारदात एक बड़ी लापरवाही का नतीजा मानी जा सकती है. बेशक नीची उड़ान के कारण ड्रोन हमारी राडार प्रणाली की गिरफ्त में नहीं आ सके, लिहाजा हमारा एंटी ड्रोन सिस्टम भी नाकाम साबित हुआ है. सवाल हवाई सुरक्षा और खुफिया तंत्र पर भी उठाए जा रहे हैं. आज ड्रोन हमले के जरिए दुश्मन ने हमारे हवाई क्षेत्र की चाक-चैबंदी की थाह ले ली है, लेकिन आने वाले वक्त में बड़ी हवाई साजिश को भी अंजाम दिया जा सकता है.
बीते दिनों पंजाब में ड्रोन से हथियार, नकली मुद्रा के नोट और नशीले पदार्थ गिराए गए थे. गिरफ्तारियां भी की गई थीं. पाकिस्तानी सेना का नाम लिया गया था, जिसने आतंकियों को ड्रोन की ट्रेनिंग भी दी थी. आतंकियों की वही जमात जम्मू में भी उपद्रव कर सकती है. बहरहाल एनआईए, एनएसजी, फोरेंसिक, स्थानीय पुलिस और खुफिया एजेंसियां आदि व्यापक जांच कर रही हैं.
भारतीय वायुसेना और थलसेना के लिए आतंकियों की ओर से किया गया यह हमला पहला ड्रोन हमला था. ऐसे में इस खतरे को देखते हुए देश के संवेदनशील एयरबेस और अन्य सैन्य ठिकानों की सुरक्षा के लिए विशेष रडार सिस्टम, लेजर सिस्टम और एंटी एयरक्राफ्ट गन की तैनाती करनी होगी. ऐसे में भारतीय सुरक्षाबलों को आधुनिक उपकरणों से लैस करने की जरूरत होगी. बहरहाल यदि सीमापार का मकसद यह है कि भारत को कश्मीर में महंगी, लंबी-चैड़ी सैन्य तैनाती करने को बाध्य किया जाए, तो ड्रोन हमले का नया विकल्प अपेक्षाकृत बेहद सस्ता है और इसमें ज्यादा श्रम भी नहीं चाहिए. चूंकि जम्मू-कश्मीर पर भारत सरकार ने बातचीत के दरवाजे खोल दिए हैं, लिहाजा आतंक के साजिशकारों के लिए ये उपाय सस्ते, सहज हैं और चैतरफा अफरातफरी मचाने वाले धमाके कश्मीर के अमन-चैन को भी छीन सकते हैं. खुफिया एजेंसिया इस हमले को बेहद गंभीरता से ले रही हैं. आने वाले समय में इस हमले के तार कहां से जुड़े हैं जाचं में यह बात साफ हो जाएगी. लेकिन इस हमले के बाद सुरक्षा चैकसी और बढ़ाने और उसमें तकनीक का समावेश बढ़ाने की जरूरत है.
-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं.