बस्ती में जिला पंचायत अध्यक्ष का दंगल: 2 पूर्व मंत्री साइलेंट मोड में, BJP का प्रत्याशी कौन?

-भारतीय बस्ती संवाददाता-
बस्ती . जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. सभी राजनीतिक दल चुनाव को अपने पक्ष में भुनाने के लिए रणनीति बना रहे है. जनता के बीच चुनावों को लेकर उपजे सवालों को भाजपा के सिवाय और कोई भी दल सीधा जवाब नहीं दे पा रहा है. भाजपा से संजय चौधरी को खुले रूप से जिला पंचायत अध्यक्ष का प्रत्याशी माना जा रहा है.
मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अब तक अपने उम्मीदवारों का नाम सार्वजनिक नहीं किया है. ऐसे में भाजपा के विरोध में खड़ी जनता अपने समर्थक दलों के नेताओं की चुप्पी पर सवालिया निशान खड़े कर रही है. पूर्व कैबिनेट मंत्री राजकिशोर सिंह वर्तमान समय में बहुजन समाज पार्टी में है. बहनजी का विश्वास भी उन्हें हासिल है. इसके साथ ही जिला पंचायत पर दो बार अपने परिवार में मां और बेटे की ताजपोशी करा चुके राजकिशोर सिंह इस बार के जिला पंचायत चुनाव में खुल कर सामने नहीं आ रहे है. अपने सहयोगियों को प्रमुख दल में लगाकर उन्हें जीत दिलाना ही उनकी जीत मानी जा रही है. ऐसे में खुलकर बसपा राजनीति के पिच पर कोई खेल नहीं कर पा रही है. जिससे बसपा के मतदाताओं और राजकिशोर सिंह के वोटरों में गलत संदेश जा रहा है.
यही हाल समाजवादी पार्टी का है. भाजपा के बाद जिले में सबसे ज्यादा नेताओं की फौज होने के बावजूद अपना कोई भी उम्मीदवार पार्टी सामने नहीं ला पा रही है. राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले कुर्मी छत्रप राम प्रसाद चौधरी को एक मजा हुआ नेता माना जाता है. इसके बावजूद वर्तमान परिदृष्य में सपा में सिर्फ जिलाध्यक्ष महेन्द्रनाथ यादव ही एकमात्र पंचायत चुनावों के लिए संघर्ष करते दिख रहे है. जिससे पार्टी के अंदरखाने विरोध के सुर उठने लगे है. कुछ लोगों की मानें तो पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी कुर्मी बिरादरी की राजनीति के धुरी माने जाते रहे है. वर्तमान हालात में भाजपा से गये दावेदारों के पैनल में तीनों अध्यक्ष पदों के नाम कुर्मी बिरादरी से है. जिससे रामप्रसाद चौधरी की चुप्पी को भाजपाई दावेदारों के नामों से जोड़ कर देखा जा रहा है. ऐसे में रामप्रसाद चौधरी को अपने राजनीतिक कौशल को सपा में दिखा कर विश्वास जीतना होगा. जिससे पार्टी एक मजबूत जिला पंचायत अध्यक्ष का दावेदार सबके सामने ला सके.
जिले में सपा मजबूत होगी पार्टी में उनके आने के यही मायने निकाले गये थे. पार्टी में उनके और उनके साथ बड़े नेताओं के आने के बाद पंचायत चुनाव के रूप में पार्टी पहला चुनाव लड़ रही है. ऐसे में अब तक पार्टी द्वारा उम्मीदवार नहीं उतारे जाने से पार्टी नेताओं को जवाब देते नहीं बन रहा है. जो भी हो सत्तापक्ष का चुनाव कहे जाने वाले पंचायत चुनावों में अगर बिना लड़े ही हथियार डाल दिया जाए तोे ऐसे नेताओं से संघर्ष की उम्मीद करना बेमानी होगी.