थम नहीं रही कोरोना की लहर के बीच गूंजती परिजनों की सिसकियां
कहीं परिवार में परिवार का सहारा कोरोना वायरस की भेंट चढ़ गया . कहीं घर में महिलाएं तक नहीं रह गई
-भारतीय बस्ती संवाददाता- जितेंद्र कौशल सिंह
सम्पन्न परिवारो में तो जैसे तैसे कर्मकाण्ड की रस्म पूरी भी हो जा रही है लेकिन महीनों से लॉकडाउन के बीच रोजगार के सभी रास्ते बंद हाने के बाद गरीब परिवारों के लिए किसी अपने की मौत के बाद लकडी के इन्तजाम से लेकर कर्मकाण्ड तक के लिए जूझना पड रहा है. जनपद के कई ऐसे परिवार है जिन्होंने परिजनों का दाह संस्कार तो कर दिया लेकिन ब्रह्मभोज बरखी को टाल चुके है.
बहादुरपुर ब्लाक के एक गांव में कोरोना ने ऐसा दर्द दिया कि अब परिवार में एक भी महिला नहीं बची. कोरोना के क्रूर पंजो ने पहले मां और फिर बहू को अपनी चपेट में ले लिया. कहीं 24 घंटे के भीतर ही परिवार से माता पिता दोनो का दुनिया छोड़ देना परिजनो को कभी न भूलने वाला आघात दे गया.
शहर से लेकर गांव तक लॉकडाउन के बाद से हो रही मौतो ने लोगो को अन्दर तक हिला दिया है. हालत यह है कि देर रात यदि किसी परिचित के नम्बर से फोन की घंटी भी बज जाय तो लोगो के मन में आशंकाओ के बादल घुमड़ने लगते है. कहीं कोई अशुभ समाचार न हो. कोरोना वायरस के खौफ ने जिंदगी को हलकान कर दिया है. लोगों के मुह से अब यही निकल रहा है कि अब कोरोना महामारी से किसी की मौत न हो. लोग बस यही दुआ कर रहे हैं कि कोरोना वायरस का संकट टले और जिंदगी फिर से पटरी पर आए.