Ramleela Mahotsav Basti में केवट, चित्रकूट प्रसंग का मंचन

Ramleela Mahotsav Basti में केवट, चित्रकूट प्रसंग का मंचन
ramleela mahotsav basti

बस्ती. सनातन धर्म संस्था और श्री रामलीला महोत्सव आयोजन समिति की ओर से अटल बिहारी वाजपेई प्रेक्षागृह में चल रहे श्रीराम लीला के छठवें दिन माता कौशल्या संवाद, निषाद राज गुह से मिलन, केवट प्रसंग, चित्रकूट प्रसंग, दशरथ मरण व भरत मिलाप का जीवंत और अत्यन्त भावुक मंचन किया गया. धनुषधारी आदर्श रामलीला समिति अयोध्या के कलाकारों द्वारा किया गया मंचन बहुत ही भावुक करने वाला रहा, राम राम कहते हुये पुत्र वियोग में दशरथ मरण, भरत मिलाप के दृश्य ने लोगों के नेत्रों को सजल कर दिया.

व्यास कृष्ण मोहन पाण्डेय, विश्राम पाण्डेय ने कथा सूत्र पर प्रकाश डालते हुये बताया कि जीवों को संसार सागर से पार कराने वाले भगवान श्रीराम को केवट ने नदी पार कराया. इस दौरान केवट की चतुराई भरी बातों से राम ही नहीं दर्शक भी मुस्करा उठे. रामलीला की शुरुआत भगवान राम की आरती से हुई. इसके बाद रामलीला का मंचन शुरू हुआ. राज दरबार व अयोध्या नगरी दुःख में डूबी थी. महाराज दशरथ अचेत जैसी स्थिति में थे. राम, लक्ष्मण व सीता ने नदी के तट से सुमंत को वापस भेज दिया, उन्हें छोड़ने गये नगरवासी भी दुखी मन से वापस आ गये. नदी तट पर पहुंचने के बाद निषाद राज से भेंट होती है.

इस प्रसंग में केवट ने कहा कि प्रभु, मैंने सुना है कि आपके पैरों में जादू है, आपके पैरों ने पत्थर को छुआ तो वह स्त्री हो गई. मेरी नौका तो काठ की है. ‘जासु नाम सुमिरत एक बारा. उतरहिं नर भवसिंधु अपारा’ सोइ कृपालु केवटहि निहोरा. जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा‘’. श्रीराम के बार- बार आग्रह करने पर चरण धोकर नाव पर चढ़ाने को तैयार होता है. उसकी इस चतुराई पर राम मुस्कराए और आंखों से इशारा किया चरण धोने का. भगवान के चरण धोकर केवट की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. श्रीराम केवट को गंगा पार उतारने के लिए दक्षिणा देना चाहते हैं, वह चतुराई से यह कहकर मना कर देता है कि- भगवान मैने आपको गंगा पार कराया है, आप भवसागर पार लगा देना.

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उधर सुमंत जब अयोध्या पहुंचते हैं, राजा दशरथ श्रीराम लक्ष्मण, सीता के वन से वापस नहीं आने का कारण पूछते हैं, तो सुमंत सारा वृत्तांत सुनाते हैं. राम-लक्ष्मण, सीता को न देखकर हे-राम-राम कहकर दशरथ प्राण त्याग देते हैं. राजा दशरथ के मरने के बाद गुरु वशिष्ठ द्वारा भरत-शत्रुघ्न को ननिहाल से संदेश देकर बुलाया जाता है. राजा दशरथ के अंतिम संस्कार के बाद भरत-शत्रुघ्न अयोध्या से चित्रकूट के लिए प्रस्थान करते हैं. चित्रकूट में श्रीराम- भरत का मिलाप होता है. श्रीराम के आदेश पर भरत उनकी चरण पादुका लेकर अयोध्या वापस आते हैं.

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दशरथ की भूमिका में प्रेम नारायण, श्रीराम की भूमिका में अभिषेक झा, लक्ष्मण की भूमिका में राजा बाबू पांडेय और माता सीता की भूमिका में रामजी झा ने मंच परश्रीराम लीला को जीवन्त किया. संचालन बृजेश सिंह मुन्ना ने किया व विषय सुभाष शुक्ल ने रखा. कार्यक्रम में मुख्य यजमान के रूप में व्यवसायी शुशील मिश्र, अमरमणि पाण्डेय, गोपेश्वर तिवारी, सन्तोष सिंह, राम प्रसन्न मिश्र, आचार्य उमाशंकर सिंह, धर्मेंद्र त्रिपाठी, रामविनय पाण्डेय, अनुराग शुक्ल, हरीश त्रिपाठी, वैद्य जी पुराना डाकखाना, डॉ अभिनव उपाध्याय, राहुल त्रिवेदी, भोलानाथ चौधरी, जॉन पाण्डेयअभय त्रिपाठी, अमन त्रिपाठी, अंकित त्रिपाठी, शशांक त्रिपाठी आदि शामिल रहे.

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