मुण्डेरवा में अशोक धम्म विजय दशमी पर बौद्ध धम्म सम्मेलन, अहिंसा और शांति पर हुई चर्चा

मुख्य वक्ता एवं नेतृत्वकर्ता सुगंध बौद्ध महेन्द्र कुमार, सुग्रीव बौद्ध, सुरेश बौद्ध, शंभू प्रसाद ने कहा कि आज 14 अक्टूबर है और यह दिन भारतीय इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है। ठीक 69 साल पहले, 1956 में इसी दिन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़कर अपने 365,000 दलित अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को अपनाया।
यह घटना न केवल उनके जीवन का एक बड़ा मोड़ थी, बल्कि लाखों दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए एक नई उम्मीद की किरण बनी। अंबेडकर का यह कदम हिंदू धर्म की चतुर्वर्ण व्यवस्था के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध का प्रतीक बना, जिसने सदियों से दलितों को सामाजिक और धार्मिक रूप से हाशिए पर रखा था। यह न केवल भारत, बल्कि विश्व इतिहास के सबसे बड़े धर्मांतरणों में से एक था। कहा कि पंचशील में पहला शील प्राणातिपात से विरति यानि जीव-हिंसा से बचना है।
बौद्ध धर्म आंतरिक और बाह्यशांति को बढ़ावा देता है। महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं जिसमें द्वेष को प्रेम से जीता जाता है और धम्मपद शांति की नींव रखती हैं।
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इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम बाबा साहब डा. भीम राव अम्बेडकर जी के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से समई प्रसाद, केपी राठौर, राधेश्याम बौद्ध, विक्रम बौद्ध, राम अवध, तुलसीराम, प्रेम प्रकाश, अनूप कुमार एडवोकेट, महेंद्र कुमार, कपिल,योगेन्द्र राज, अनिल, कैलाश, तुलसीराम, अरविंद कुमार भारती, परमानंद, प्रभु , साहिल, सौरभ, सरवन भास्कर, राजकमल, महेश, राम चेत, बृजेश कुमार, रामशंकर आजाद, मूलचन्द आजाद, उमाशंकर राव, अवनीश अम्बेडकर के साथ ही बड़ी संख्या मंें स्थानीय नागरिक उपस्थित रहे।
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