यूपी के बस्ती जिले में एक ओवर ब्रिज के कितने बाप? बाप रे बाप...
UP के Basti जिले में एक रेलवे फाटक पर ओवर ब्रिज का प्रस्ताव सालों बाद स्वीकृत हुआ. अब जिले के तमाम माननीय इस पर अपने श्रेय का दावा ठोंक रहे हैं.

Basti News: उत्तर प्रदेश स्थित बस्ती में रेलवे (Basti Railway Station) फाटक पर एक ओवर ब्रिज के लिए प्रस्ताव पास हुआ और धन की स्वीकृति क्या हुई... तमाम लोग इसको लेकर दावा करने लगे. क्या पूर्व सांसद, क्या पूर्व विधायक और क्या मौजूदा विधायक, सबने और सबके समर्थकों ने अपने हिसाब से दावे ठोकना शुरू कर दिया. और यह सब तब किया जा रहा है कि जब मांग कुछ और थी, पूरी कुछ और हो रही है.
दरअसल, बस्ती स्थित पुरानी बस्ती में रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रेनों की आवाजाही की वजह से दिन में कई बार जाम लगता है. चूंकि इलाका पुरानी बसावट का है और बाजार का क्षेत्र है इसलिए रास्ते भी उस हिसाब से चौड़े नहीं हैं जितना की होना चाहिए. हालांकि जहां की मांग थी कि वहां ओवर ब्रिज का प्रस्ताव पास नहीं हुआ है. प्रस्ताव पास हुआ है चीनी मिल के पास पूर्वी केबिन वाले समपार फाटक के पास.
क्यों नहीं पुरानी बस्ती में ओवर ब्रिज?
कहृा जा रहा है कि पुरानी बस्ती वाले इलाके में अगर ओवर ब्रिज बनेगा तो कई घरों को तोड़ना पड़ेगा. इससे लोगों में नाराजगी बढ़ सकती है. ऐसे में जाम की स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए चीनी मिल के पास स्थित पूर्वी केबिन के करीब इसलिए ओवर ब्रिज का प्रस्ताव पास हुआ है क्योंकि वहां न तो पुरानी बस्ती जैसी घनी बसावट है और न ही जमीन की कमी. कुछ जमीन यूपी सरकार की है और कुछ रेलवे की. राज्य और केंद्र के समायोजन से ओवर ब्रिज का काम हो जाएगा.
बीते दिनों जब शासन से अनुशंसा मिलने के बाद इस क्रॉसिंग पर ओवर ब्रिज की का प्रस्ताव पास हो गया उसके बाद सोशल मीडिया पर तमाम लोगों ने अलग-अलग दावे किए. जो जिसका समर्थक, उसके नाम की माला जपना शुरू हो गया. किसी ने कहा सबसे पहले चिट्ठी लिखी, किसी ने बताया मुख्यमंत्री से मुलाकात की तो किसी ने दावा किया रेल मंत्री से बैठक हुई थी. इस साल भी बजट में रेल मंत्रालय ने समपार फाटकों को बंद करने के लिए 441.70 करोड़ रुपये आवंटित हुआ था. जिन स्टेशनों के लिए यह बजट आवंटित हुआ है उसमें बस्ती, मुंडेरवा भी शामिल है. अब इस पर भी कल को कोई दावा ठोंक देगा?
किसका दावा कितना सच?
किसका दावा कितना सच यह तो जिसने किया वही जाने लेकिन यह सोचिए कि सालों से जिस ओवर ब्रिज का इंतजार था और 9 साल पहले जिस पर गंभीरता से चर्चा हुई, ऐलान हुआ, अगर इतनी ही तेज रफ्तार से विकास हुआ फिर तो और बाकी कामों में 18-20 साल लग ही जाएगा!
पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी, पूर्व विधायक संजय प्रताप जयसवाल, पूर्व विधायक दयाराम चौधरी, विधायक अजय सिंह, विधायक महेंद्र नाथ यादव, सबसे समर्थकों के अपने-अपने दावे हैं. यह भी सच है कि सबने कहीं न कहीं प्रयास किया लेकिन श्रेय लेने की ऐसी होड़ कि जनता और समर्थक सब कंफ्यूज की किसने वास्तव में क्या किया! क्या यह काफी नहीं है कि सबके प्रयास से जिले में कुछ बेहतर होने को है!
कहीं 2027 चुनाव की आहट तो नहीं?
कुछ राजनीतिक जानकार तो यह भी कह रहे हैं कि साल 2024 में टिकट पाने में पिछड़ गये माननीय, साल 2022 में हार चुके नेता, साल 2027 में अपने लिए राह बनाने की जुगत में हैं ताकि जनता में उनकी इमेज क्लियर रहे और वो विकास पुरुष बने रहें भले विकास ऐलान के लगभग एक दशक बाद हो.
बात तो यहां तक आ गई है कि जिसका विधानसभा क्षेत्र भी नहीं, उन माननीय ने भी दावा ठोंक दिया सिर्फ इसलिए की चिट्ठी लिखी है. अभी माननीयों से पूछ लीजिए कि अपने क्षेत्र में कुल आवंटित धन का कितना खर्च किया तो शायद जवाब न दे पाएं. अब ओवर ब्रिज एक और श्रेय के दावेदार कई! बेहतर तो यही होगा कि श्रेयवादी राजनीति की जगह जनहित की सियासत की जाए. इसके अलावा शहर और जिले में और जो समस्याएं हैं उनका भी निपटारा हो. श्रेय किसका है ये ईश्वर और ईश्वररूपी जनता को पता है.