UP Election 2022: पश्चिमी यूपी में भाजपा को निगल सकता है ‘अजगर’ 

UP VidhanSabha Chunav : भाजपा विधानसभा चुनाव में सत्ता बरकरार रखने के लिए युद्धस्तर पर तैयारियों में जुट गई है.

UP Election 2022: पश्चिमी यूपी में भाजपा को निगल सकता है ‘अजगर’ 
Bjp Ramleela Maidan Narendra Modi

अजय कुमार
लखनऊ. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति लगातार करवट बदल रही है. अभी तक भारतीय किसान यूनियन नये कषि कानून के विरोध में अलख जलाए हुए थे,जिससे बीजेपी को काफी नुकसान होने की अटकले लगाई जा रही थीं. इसकी काट के लिए बीजेपी ने भी 16 अगस्त से वेस्ट यूपी में आशीर्वाद यात्राएं शुरू कर दी हैं. बीजेपी नहीं चाहती है कि नये कषि कानून के विरोध के चलते जाट वोटर भाजपा से नाराज हो जाएं,इसके लिए भाजपा ने पश्चिमी यूपी में अपने सांसदों/विधायकों और नेताओं की फौज उतार दी. भाजपा की नजर जाट समुदाय को मनाने की है,जाट मानेंगे या नहीं यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे लेकिन जिस तरह से मोदी-योगी सरकार जाट नेताओं के सामने दण्डवत हो रही है उससे पश्चिमी यूपी के गुजर नेता नाराज हो गए हैं.

पश्चिमी यूपी में गुजर दूसरा सबसे सशक्त वोट बैंक है. गुजरों के खांटी नेता डा.यशवीर सिंह की राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) में घर वापसी के बीच पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में होने वाली किसान महापंचायत पर योगी सरकार और  भाजपा की पैनी नजर लगी हुयी है. यूपी में विधानसभा चुनाव में यूं तो अभी करीब आठ महीने का समय बाकी हैं लेकिन भाजपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं. अबकी से नये कषि कानून के खिलाफ जाट-गुजरों के एकजुटता ने भी बीजेपी को बेचौन कर रखा है.

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   बात भाजपा की कि जाए तो विधानसभा चुनाव में सत्ता बरकरार रखने के लिए भाजपा युद्धस्तर पर तैयारियों में जुट गई है. खासतौर से किसान बाहुल्य ग्रामीण क्षेत्रों में ‘आशीर्वाद यात्रा’ निकाल रही है. कहलाने वाली किसान जातियां एक बार फिर से भाजपा को किसान विरोधी ठहराते हुए एकजुट होकर पार्टी को सबक सिखाने के लिए कमर कस चुकी हैं. भाजपा छोड़कर रालोद में वापसी करने वाले जेएनयू के प्रोफेसर और अखिल भारतीय खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के चेयर पर्सन रहे डा. यशवीर सिंह गांव गांव जाकर दिन रात एक किए हुए हैं. लंबे समय से दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में आंदोलनरत किसान अब गांव में जमीनी स्तर पर भी संगठित होकर आंदोलन की भूमिका तैयार कर रहे हैं. इसके तहत भारतीय किसान यूनियन के आह्वान पर आगामी पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में बड़ी किसान महापंचायत होने जा रही है. 

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बहरहाल,पश्चिमी उत्तर प्रदेश मंे जाट समाज के साथ ही गुर्जर समुदाय भी लामबंद होना शुरू हो गया है. इसी कड़ी के तहत भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक)से जुड़े गुर्जर नेताओं ने गुर्जर बहुल क्षेत्र अमरोहा बिजनौर एवं मुरादाबाद में किसानों से जनसंपर्क कर पांच सितंबर को भारी तादाद में मुजफ्फरनगर पहुंचने की अपील की है. अब यह तो भविष्य ही तय करेगा कि किसान राजनीति विधानसभा चुनाव में कितनी असरकारक साबित होगी. 

गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट के बाद गुर्जर समाज सबसे प्रभावी भूमिका में है. जहां से गुर्जर समाज के दर्जनों विधायक हुए कई सांसद चुनकर आते हैं लेकिन हमेशा से भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में रहा गुर्जर समाज इस बार उपेक्षा के चलते किसान आंदोलन में सहभागी बन रहा है. इसका उदाहरण गाजीपुर बॉर्डर सहित विभिन्न स्थलों पर किसान आंदोलन को ताकत देने का काम गुजर समाज द्वारा भी किया जा रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति के गुर्जर समाज के कद्दावर नेता रहे बाबू हुकम सिंह और चौधरी यशपाल सिंह के बाद तीसरा सबसे बड़ा राजनीतिक घराना जसाला परिवार का रहा है.

जसाला परिवार से विरेंद्र सिंह छह बार विधायक, सदस्य विधान परिषद व प्रदेश शासन में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. वह भाजपा के मजबूत स्तंभ के रूप में भारतीय किसान यूनियन के गढ़ शामली में जिला पंचायत अध्यक्ष व विभिन्न प्रमुख ब्लाक प्रमुख प्रत्याशियों को जिताने में कामयाब रहे हैं और उन्होंने भाजपा की वहां साख बचाने का बडा काम किया है. लेकिन दूसरी ओर वीरेंद्र सिंह जैसे कद्दावर नेता को भाजपा सरकार में हाशिए पर रखा गया है. उन्हें सांसद राज्यसभा भेजने की उम्मीद गुर्जर समाज पाले हुए था. वह पूरी ना हो सकी है. यहां तक कि वीरेंद्र सिंह जैसे कद्दावर नेता को सदस्य विधान परिषद के रूप में भी नहीं भेजा गया. इसके चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुर्जर समाज में भाजपा के प्रति नाराजगी बढती जा रही हैं.

गूजर समाज की नाराजगी का कारण है कि उत्तर प्रदेश सरकार में जहां कभी कई-कई कैबिनेट मंत्री और राज्यमंत्री गुर्जर समाज से होते थे,वहीं इस समय मात्र एक राज्यमंत्री का होना गुर्जर समाज के गले नहीं उतर रहा है. इसी के चलते गुर्जर समाज सत्तारूढ़ भाजपा की घोर उपेक्षा से आहत होकर किसान आंदोलन में सहभागी बनने जा रहा है. इसकी बानगी गुर्जर समाज के प्रबुद्ध चिंतक व अखिल भारतीय गुर्जर समाज समाज के महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ यशवीर सिंह की राष्ट्रीय लोक दल में वापसी के रूप में देखा जा सकता है. उनके आने से पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं. 

सियासत के जानकार कहते हैं कि यशवीर सिंह के रूप में रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर समाज की एक बड़ी ताकत साथ मिली है. वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव भी पिछले दिनों गुर्जर नेता अतुल प्रधान के आह्वान पर मवाना में आयोजित प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक कोतवाल धन सिंह गुर्जर की मूर्ति के अनावरण के बहाने गुर्जर समाज अपनी ताकत का एहसास करा चुका है. कुल मिलाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट के पश्चात गुर्जर समाज के बीच से भारतीय जनता पार्टी की दिनोंदिन पडती जा ढीली पकड़ पर अंकुश नहीं लगा सके तो चौधरी चरण सिंह के नारे ‘अजगर’ अर्थात अहीर,गुर्जर,जाट,राजपूत का गठजोड़ मुस्लिम वर्ग के साथ मिलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक प्रभावी असर दिखाते हुए भाजपा को निगल नहीं जाए. (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं.)

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