Chhath Puja 2025: छठ पूजा का क्या है मूहुर्त और क्या है पूजा विधि? यहां पाएं पूरी जानकारी एक क्लिक में

Chhath Puja 2025 Muhurt

Chhath Puja 2025: छठ पूजा का क्या है मूहुर्त और क्या है पूजा विधि? यहां पाएं पूरी जानकारी एक क्लिक में
Chhath Puja 2025

छठ पूजा, जिसे सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है, कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाई जाती है. यह पर्व दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाता है और मुख्यतः उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करने से आरोग्य, धन और सुख की प्राप्ति होती है. पिछले कुछ वर्षों में, छठ पूजा को लोकपर्व के रूप में विशेष महत्व मिला है. यही कारण है कि यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.

छठ पूजा और छठी मैया का महत्व
छठ पूजा सूर्य देव को समर्पित है. सूर्य सभी प्राणियों को दिखाई देने वाले देवता हैं, पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं. इस दिन सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की भी पूजा की जाती है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार, छठी मैया या छठी माता संतान की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं.

हिंदू धर्म में, षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है. पुराणों में इन्हें माता कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि को की जाती है. बिहार-झारखंड की स्थानीय भाषा में षष्ठी देवी को छठी मैया कहा जाता है.

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छठ पूजा का पर्व
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला एक लोकपर्व है. यह चार दिवसीय पर्व कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक चलता है.

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नहाय खाय (पहला दिन)
यह छठ पूजा का पहला दिन है. इसका अर्थ है स्नान के बाद घर की सफाई की जाती है और मन को तामसिक प्रवृत्ति से बचाने के लिए शाकाहारी भोजन किया जाता है.

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खरना (दूसरा दिन)
खरना छठ पूजा का दूसरा दिन है. खरना का अर्थ है पूरे दिन का उपवास. इस दिन व्रती जल की एक बूँद भी नहीं पीते. शाम को वे गुड़ की खीर, फल और घी से भरी रोटी खा सकते हैं.

संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
छठ पूजा के तीसरे दिन, कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. शाम के समय, एक बाँस की टोकरी में फल, ठेकुआ और चावल के लड्डू सजाए जाते हैं, जिसके बाद भक्त अपने परिवार के साथ सूर्य को अर्घ्य देते हैं. अर्घ्य के समय, सूर्य देव को जल और दूध अर्पित किया जाता है और प्रसाद से भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है. सूर्य देव की पूजा के बाद, रात में षष्ठी देवी के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है.

उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
छठ पूजा के अंतिम दिन सुबह सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन, सूर्योदय से पहले, भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए नदी तट पर जाते हैं. इसके बाद, छठी मैया से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख-शांति की कामना की जाती है. पूजा के बाद, व्रती शरबत और कच्चा दूध पीते हैं और थोड़ा सा प्रसाद खाकर व्रत तोड़ते हैं, जिसे पारण कहते हैं.

छठ पूजा मुहूर्त
28 अक्टूबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय : शाम 5:39:38
29 अक्टूबर (उषा अर्घ्य) सूर्योदय का समय : सुबह 6:30:35

छठ पूजा विधि
छठ पूजा से पहले सभी सामग्री इकट्ठा करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें:

- 3 बड़ी बाँस की टोकरियाँ, बाँस या पीतल से बने 3 सूप, थाली, दूध और गिलास
- चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंद
- नाशपाती, बड़े नींबू, शहद, पान, साबुत गुड़, करौंदा, कपूर, चंदन और मिठाई
- प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूरी, सूजी का हलवा, चावल के लड्डू लें.

छठ पूजा अर्घ्य विधि
ऊपर दी गई छठ पूजा सामग्री को बाँस की टोकरी में रखें. सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में दीपक जलाएँ. इसके बाद, सभी महिलाएँ हाथों में पारंपरिक सूप लेकर घुटनों तक पानी में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं.

छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
छठ पर्व पर छठी मैया की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है. एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्रथम मनु स्वयंभू के पुत्र राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी. इस कारण वे बहुत दुखी रहते थे. महर्षि कश्यप ने उन्हें यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा के अनुसार, उन्होंने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ किया. इसके बाद रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश शिशु मृत पैदा हुआ. राजा और परिवार के अन्य सदस्य इससे बहुत दुखी हुए. तभी आकाश में एक यान दिखाई दिया, जहाँ माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा ने उनसे प्रार्थना की, तो उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि - मैं भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री, षष्ठी देवी हूँ. मैं संसार की सभी संतानों की रक्षा करती हूँ और सभी निःसंतान माता-पिता को संतान का आशीर्वाद देती हूँ.

इसके बाद देवी ने अपने हाथों से उस मृत बालक को जीवित करने का वरदान दिया. देवी की कृपा से राजा अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा की. ऐसा माना जाता है कि इसी पूजा के बाद से यह पर्व दुनिया भर में मनाया जाने लगा.

छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का पर्व है. यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य देव की पूजा और अर्घ्य दिया जाता है. हिंदू धर्म में सूर्य की पूजा का बहुत महत्व है. वे एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनके हम नियमित दर्शन कर सकते हैं. वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा गया है. सूर्य के प्रकाश में अनेक रोगों का नाश करने की क्षमता है.

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