नज़रिया: लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है कांग्रेस की यह हालत

नज़रिया: लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है कांग्रेस की यह हालत
Rahul Gandhi Sonia Gandhi Priyanka Gandhi Congress Spg Cover 1

आर.के. सिन्हा
निर्विवाद रूप से कांग्रेस का देश के स्वाधीनता आंदोलन में तो शानदार योगदान रहा है . उससे महात्मा गांधी, सरदार पटेल, डा. राजेन्द्र प्रसाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जय प्रकाश नारायण, लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम सरीखे साफ छवि के जननेता नेता जुड़े रहे. देश इन और इन जैसे कांग्रेस के नेताओं का सदैव सम्मान भी करता रहेगा. पर इधर हाल के दौर में कांग्रेस का चौतरफा सिकुड़ना दुखद है. उससे देश यह उम्मीद कर रहा था कि यह पार्टी सशक्त विपक्ष के दायित्व को अंजाम देगी. इसके साथ ही देश हित से जुड़े मसलों पर पार्टी सरकार के साथ खड़ी होगी. पर ये इन सभी मोर्चों पर असफल रही. कभी-कभी लगता है कि इसे सत्ता का सुख भोगना ही पसंद आता है. ये सत्ता से बाहर होते ही बिखरने लगती है.

कांग्रेस जन धड़कन से जुड़े मसलों पर न तो सरकार को घेरती है और न ही जनता के साथ सड़कों पर उतरती है.  अब तो इसमें आपसी कलह-क्लेश इतना बढ़ गया है कि इसके उबरने की कोई उम्मीद भी शेष नहीं रह गई है. अब पंजाब को ही ले लें. ये देश का कृषि प्रधान राज्य होने के साथ-साथ पाकिस्तान की सीमा से लगा भी है. सरहद के उस पार से पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को फैलाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता. इन परिस्थितियों में राज्य की कांग्रेस शासित सरकार से यह अपेक्षा थी कि वह राज्य को विकास के रास्ते पर ले जाएगी और पाकिस्तान के मंसूबों को कभी सफल नहीं होने देगी. पर वहां तो कांग्रेस के अंदर ही जबरदस्त सिर- फुटौवल मची हुई है.

भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए नवजोत सिंह सिद्धू  अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सरकार पर रोज नए-नए आरोप लगाते रहते हैं. जवाब में अमरिंदर सिंह और उनके कुछ मंत्री भी सिद्धू पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरता हो जब मीडिया में सिद्धू के आरोपों संबंधी खबरें न छपती हों. खबरें इस तरह की भी छपती हैं कि सिद्धू और अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस नेताओं क्रमश: राहुल गाँधी तथा प्रियंका गांधी के सामने अपना-अपना  पक्ष रखा. बात यहां पर समाप्त हो जाती तो कोई बात थी . 

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राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका की तरफ से इस तरह की कोई ठोस पहल होती नजर भी नहीं आती, ताकि राज्य में कांग्रेस कायदे से कुछ काम कर ले. इनका सिद्धू के साथ कभी प्रत्यक्ष और कभी परोक्ष रूप से खड़ा होना भी अपने आप में सवाल खड़े करता है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को मालूम है कि पंजाब में अमरिंदर सिंह की सरकार के गठन में उनकी भूमिका लगभग नगण्य ही रही थी. इसलिए वे खुद ही अमरिंदर सिंह का बड़ा कद देखना पसंद नहीं करते. उन्हें अमरिंदर की लोकप्रियता अपने लिए भी खतरा नजर आती है. यही बहुत बड़ी कमी होती है किसी नेता की, कि वह अपने से छोटे नेता से डरने लगे. ये दोनों उस सिद्धू के साथ खड़े हैं, जिस पर अपने बिजली के बिल ना देने के आरोप हैं. हैरानी वाली बात यह है कि एक तरफ सिद्धू महंगी बिजली पर राज्य सरकार को घेर रहे हैं और दूसरी तरफ उन्होंने अपनी ही कोठी का अभी तक 8.67 लाख रुपये का बिजली बिल नहीं भरा है.

देश को नई तथा पुनरुत्थानवादी कांग्रेस की जरूरत है. कांग्रेस को साबित करना होगा कि वह सक्रिय है और सार्थक रूप से काम करने की इच्छुक भी है. उसमें व्यापक पैमाने पर सुधार की जरूरत भी है. कांग्रेस के साथ दिक्कत यही है कि यह जनता से जुड़े मसलों पर संवेदनशील रवैया नहीं अपनाती. कांग्रेस को जल्द-से-जल्द संगठनात्मक चुनाव कराने चाहिए ताकि जनता के सामने यह प्रदर्शित किया जा सके कि पार्टी अभी पूरी तरह निष्क्रिय नहीं हुई है.

पंजाब से पहले सारे देश ने देखा था जब राजस्थान में कांग्रेसी एक-दूसरे से भिड़ रहे थे. वहां पर सचिन पायलट जैसे युवा नेता का कसकर अपमान किया गया. याद रख लें कि आजकल राजस्थान में तूफान से पहले का सन्नाटा है.

सच यह है कि कांग्रेस अपने कर्मों के कारण ही देश की जनता से दूर होती चली गई. वह जिन मसलों को उठाती है, उस पर देश की जनता की अलग राय होती है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते दिनों जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ राज्य के राजनीतिक हालातों पर बैठक की. उस बैठक से पहले ही कांग्रेस कहने लगी कि राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा देना जरूरी है. कांग्रेस  कहने लगी कि वह (कांग्रेस) मानती है कि संविधान के अनुच्छेद 370 की पुनः बहाली हो. कांग्रेस के नेता और राज्य सभा सांसद दिग्विजय सिंह कहने लगे कि प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के बारे में किसी से कोई विचार-विमर्श नहीं किया. फैसला लेने के बाद भी वे इस पर कोई चर्चा करने को तैयार नहीं थे. वे कह रहे थे कि फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के साथ कश्मीर के सभी लोग कह रहे हैं कि हम 370 के बिना नहीं मानेंगे. मोदी जी के साथ बैठक के बाद महबूबा ने कहा था कि भारत सरकार कश्मीर मसले के हल के लिए पाकिस्तान से बात करे. अब दिग्गी राजा महबूबा की मांग पर आपकी राय क्या है? दिग्विजय सिंह का तो दावा और वायदा है कि कांग्रेस सत्ता में लौटी तो आर्टिकल 370 की दोबारा बहाली पर विचार किया जाएगा.  

अगर आप राजधानी में रहते हैं, तो कभी अकबर रोड पर स्थित कांग्रेस मुख्यालय को देखिए. वहां पर सदैव उदासी और सन्नाटा ही पसरा रहता है. मेन के गेट के बाहर दो-चार लोग बतिया रहे होते हैं. कमोबेश यही स्थिति रायसीना रोड पर स्थित युवा कांग्रेस के मुख्यालय में भी देखी जा सकती. मुख्यालय के बगीचे में भरी दोपहरी में कुछ लोग सो रहे होते हैं. इधर भी कोई उत्साह या हलचल नहीं होती. इन दोनों दफ्तरों के अंदर-बाहर का मंजर कांग्रेस की दयनीय हालत को बयान करता है.

 यकीन मानिए कि यह देश के लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटे है कि इतनी पुरानी पार्टी गर्त में मिल रही है. उसमें फिर से जनता के बीच में स्थापित  होने का जज्बा खत्म हो चुका है. सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस क्यों अपनी कब्र खोद रही है. सच यह है कि उसके नेतृत्व की काहिली के कारण देश एक सशक्त विपक्ष से वंचित है जो लोकतंत्र की मूलभूत आवश्यकता है . (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं. यह उनके निजी विचार हैं.)

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