वैक्सीन पर राजनीति बंद होनी चाहिए
राजेश माहेश्वरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अपने नवीनतम संबोधन में कोरोना काल की दुश्वारियों के बारे में तो बताया ही, वहीं उन्होंने देशवासियों के लिए मुफ्त टीकाकरण की घोषणा भी की. असल में देखा जाए तो भारत जैसे विकासशील देश के लिए आपदा के समय दो-दो बेहतरीन वैक्सीन का निर्माण कर लेना किसी चमत्कार से कम नहीं है. 134 करोड़ की आबादी वाले राष्ट्र के सामने चुनौतियों का पहाड़ है, ये खुला तथ्य है. ऐसे में कोरोना जैसी आपदा के चलते देश को जिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा वो बहुत कष्टदायी और दर्दनाक हैं. प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन को लेकर फैलाए गये भ्रम के बारे में भी बात की. इसमें कोई दो राय नहीं है कि चंद राजनीतिक दलों ने अपनी तुच्छ राजनीति के लिए टीके को लेकर भ्रम फैलाया, जिससे टीकाकरण की रफ्तार मंद पड़ी. केन्द्र ने अपने ताजा फैसले में टीकाकरण की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. असल में राज्य टीकाकरण का प्रबंधन ठीक तरह से करने में नाकाम साबित हुए. प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में इस बात को साफ किया.
वैक्सीन की उपलब्धता, क्वालिटी और उसके मुफ्त वितरण की बात तो विपक्ष के सभी दल करते रहे हैं, लेकिन एक सोची समझी रणनीति के तहत विपक्ष के एक भी दल ने कभी टीकों की बर्बादी का सरोकार नहीं जताया है. लेकिन बड़ी निर्लज्जता से राज्यों में गैर भाजपा की सरकारों ने केंद्र सरकार की कोविड को लेकर बनाए नियमों, नीतियों और खासकर वैक्सीन को लेकर सवाल उठाने में कोई परहेज नहीं किया. देश की जनता भी विपक्ष की इस मंशा को समझ रही है कि वो विशुद्ध राजनीति के अलावा कुछ और नहीं कर रहा, लेकिन विपक्ष अपनी चालें चलने से बाज नहीं आ रहा है. अब चूंकि केंद्र ने टीकाकरण की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली है, वहीं मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध करवाने की घोषणा भी कर दी, ऐसे में विपक्ष सरकार को घेरने के नये मुद्दे तलाश रहा है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले साल जब कोरोना ने देश के दस्तक दी उस समय देश में डर ओर निराशा का वातावरण था. लेकिन आपदा के समय देशवासियों के जीवन पर मंडरा रहे खतरों से मुक्ति दिलाने के लिये हमारे देश में जो सकारात्मक परिस्थितियां निर्मित हुईं, उनसे न केवल देशवासियों ने बल्कि दुनिया ने प्रेरणा ली है. निराशा एवं खतरे की इन स्थितियों में देश ने मनोबल बनाये रखा, हर तरीके से महामारी को परास्त करने में हौसलों का परिचय दिया और इसके लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं मोर्चा संभाले रखा, लोगों से दीपक जलवाये और ताली बजवायी. वैक्सीन जल्दी बनकर सामने आये, उसके लिये प्रोत्साहित किया. लेकिन इन संघर्षपूर्ण स्थितियों में विपक्षी राजनीतिक दलों ने कोई उदाहरण प्रस्तुत किया हो, ऐसा दिखाई नहीं देता. बल्कि इन दलों ने और विशेषतः कांग्रेस ने हर मोर्चे पर नकारात्मक राजनीति को ही प्रस्तुत किया. जब वैक्सीन नहीं थी तब वैक्सीन का रोना रोया. और जब वैक्सीन बन गई तो उस पर ही सवाल खड़े कर दिये. कांग्रेस की इस स्तरहीन राजनीति में तमाम दल शामिल होकर जनता को बचाने के उपायों की बजाय सरकार को ही कटघरे में खड़े करते दिखे.
आपको याद होगा कि जब भारत में पोलियो वैक्सीन लगाने का फैसला किया गया था, तब भी धार्मिक आधार पर उसका विरोध किया गया था. देश में पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान 1995 में शुरू किया गया था, लेकिन अब जाकर कहीं भारत से पोलियो खत्म हुआ है. अभियान की सफलता में देरी इसी वजह से लगी, क्योंकि धार्मिक अंधविश्वास के हिमायती मौलवियों ने मुस्लिम समाज से टीकाकरण के विरोध की अपीलें लगातार जारी की थीं. अगर ऐसा नहीं होता, तो देश बहुत पहले पोलियो मुक्त हो गया होता. कोरोना वैक्सीन को लेकर राजनेताओं ने भी बेतुके बयान देकर टीकाकरण की गति को मंथर करने का काम किया, वहीं देश की जनता की जान को खतरे में डालने का कृत्य किया. कोरोना के विस्तार और गहराते संकट के बीच सरकारी तंत्र की सीमाएं हम सभी देख रहे हैं. इसलिए राजनीतिक दलों को चाहिए कि सोशल मीडिया-मीडिया में एक-दूसरे पर दोषारोपण का अपना प्रिय खेल बाद के लिए छोड़ कर फिलहाल जमीन पर उतरें, जनता के बीच जायें. जाहिर है, पीड़ितों को चिकित्सकीय सुविधा राजनीतिक नेता-कार्यकर्ता नहीं दे सकते, पर जरूरी चीजों में मदद का हाथ अवश्य बढ़ा सकते हैं.
विशेषज्ञ कह रहे हैं कि देश में सत्तर प्रतिशत वयस्क आबादी को टीका लगाए बिना कोरोना संकट से मुक्त होकर जीवन सामान्य बनाना असंभव है. देश में टीके की उपलब्धता को देखते हुए यह लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं लगता. सरकार की दलील है कि वह वैश्विक वैक्सीन निर्माताओं के साथ बातचीत करके टीकाकरण अभियान को तेज करने के प्रयासों में लगी हुई है. अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत करके कुछ टीकों की आपूर्ति की बात कही है लेकिन सवा अरब से ज्यादा आबादी वाले देश में इतने टीकों से क्या होगा. यही वजह है कि कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि बजट में टीकों की खरीद के लिये जो 35000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, उसका लाभ देश की वयस्क आबादी को क्यों नहीं मिल पा रहा है?
कोरोना की तीसरी लहर की आशंका ने सभी देशों को अलर्ट कर दिया है. महामारी की प्रत्येक लहर में अलग-अलग आयु वर्ग के लोग चपेट में आए हैं. चूंकि, भारत में अब 18 साल से ऊपर के व्यक्तियों को टीकाकरण जारी है. केंद्र सरकार ने आगामी जुलाई-अगस्त से एक करोड़ लोगों में हर रोज टीकाकरण हो सकेगा, लिहाजा दिसंबर तक देश की अधिकतम आबादी टीकाकृत हो सकेगी. यह खूबसूरत लक्ष्य माना जा सकता है, लेकिन टीकों की बर्बादी, टीकों के कम उत्पादन और आधे-अधूरे ढांचे के कारण अक्तूबर तक 50 लाख लोगों में टीकाकरण का औसत लक्ष्य भी हासिल किया जा सका, तो बड़ी उपलब्धि होगी. फिलहाल रूसी टीके की 30 लाख खुराकों की नई खेप हैदराबाद में आई है. अमरीकी टीकों का आयात अभी तय नहीं है. कोविशील्ड और कोवैक्सीन अपने तय लक्ष्यों से कम उत्पादन कर रहे हैं. हमारा मानना है कि यदि मंथर गति से ही टीकाकरण की निरंतरता बरकरार रहे, तो 2022 के मध्य तक हमारा देश लगभग टीकाकृत हो चुका होगा. इस मुद्दे पर तुच्छ राजनीति जरूर बंद होनी चाहिए. आम आदमी के स्वास्थ्य से जुड़े इस गंभीर मसले पर राजनीति से देश और देशवासियों का नुकसान ही होगा. वक्त का तकाजा है कि दलगत राजनीति से उबर कर देश-समाज पर मंडराते संकट से निपटने की समझदारी और एकजुटता दिखायें. -लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं.