नज़रिया: आपदा में लोगों ने ख़ूब तलाशे अवसर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नया वाक्य भी गढ़ा था-“आपदा में अवसर.”

योगेश मिश्र
कोरोना के पहले राउंड में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश से ताली व थाली बजवायी थी. तब अपने संबोधन में एक नया वाक्य भी उनने गढ़ा था-“आपदा में अवसर.” उन्हें क्या पता था कि यह आपदा में अवसर वाला उनका मुहावरा कोविड के साथ पॉज़िटिव शब्द जुड़ने जैसे ही अपना अर्थ खो बैठेगा.अब ऑप्टीमिस्टिक शब्द ने पाजिटिव की जगह ले ली है. आपदा में अवसर की तलाश सिर्फ़ राजनेताओें व सरकारी हुक्कमरानों में ही नहीं दिखा. बल्कि समाज के हर तबके में यह भावना दिख रही है. हमारे एक साथी आशुतोष त्रिपाठी हैं . वह बता रहे थे कि उनकी महिला मित्र के पिताजी कोविड के शिकार होकर स्वर्ग सिधार गये. उनके केवल दो बेटियाँ ही हैं. दो लड़कों को वे कंधा देने के लिए हज़ार हज़ार रूपये पर लायीं. बहुत से लोग यह काम कर रहे हैं. दिन में पाँच से दस हज़ार तक बन जाते हैं. घाट का डोम पंडित का काम करने लगा है. ओम नम: सुहाय बोलने की उसने फ़ीस बढ़ा दी है. बड़ी बड़ी गाड़ियों में ऑक्सीजन सिलेंडर बेचने और पैसा कमाने का दृश्य आम है. हमारे कई परिचितों ने मंहगे दामों पर ऑक्सीजन सिलिंडर ख़रीदने की हृदय विदारक बात बतायी. रेमडिसीवर इंजेक्शन के ब्लैक होने की बात भी आम रही.
हालाँकि बाद में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड मरीज़ के लिए इस इंजेक्शन की ज़रूरत को ख़ारिज कर दिया. दवाओं, थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर , स्टीमर आदि यंत्रों की कमी व कालाबाज़ारी में भी अवसर लोगों ने नहीं गवाये. बाबा रामदेव ने कोरोना की दवा के नाम पर अपनी कोरोनिल बेच कर ढाई सौ करोड़ रूपये कमाये. दवा के लांचिंग के समय देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भी उनके साथ थे. स्वयंसेवी संस्था ऑक्सफेम के ‘द पीपुल्स वैक्सीन अलायंस’ का कहना है कि कोरोना वैक्सीन से हुए मुनाफे से नौ लोग खरबपति बन चुके हैं. इनकी संपत्ति में 19.3 अरब डॉलर का इजाफा हुआ. आठ मौजूदा खरबपतियों की संपत्ति में कुल 32.2 अरब डॉलर यानी करीब 25 खरब रुपये की वृद्धि हुई. नए खरबपतियों की सूची में टॉप पर अमेरिकी दवा कंपनी मॉडर्ना के स्टीफन बैंसल और जर्मनी की बायोएनटेक के उगुर साहीन का नाम है.तीन अन्य नए खरबपति चीन की वैक्सीन कंपनी कैनसीनो बायोलॉजिक्स के संस्थापक हैं.
आपदा में अवसर का ही नतीजा कहेंगे कि कभी पाइप बनाने की फ़ैक्ट्री चलाने वाले गौतम अड़ानी एशिया के दूसरे नंबर के कुबेर बन बैठे. आपदा में अवसर का सकारात्मक उदाहरण न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिन्दा आर्दर्न का हैं. वह दुनिया के महानतम नेताओं में टॉप पर हैं.फार्च्यून ने लिखा है कि कोरोना महामारी के दौरान जेसिन्दा ने जिस तरह अपना काम किया वह अद्भुत है. उन्होंने न सिर्फ वायरस को कंट्रोल किया बल्कि अपने देश में उसका पूरी तरह खात्मा कर दिया. करीब 50 लाख की आबादी वाले न्यूजीलैंड में 2700 से भी कम केस आये और सिर्फ 26 मौतें हुईं . आपदा में अवसर तलाश कर ही कोविड शील्ड वैक्सीन बनाने वाले आदर पूनावाला व उनके पिता भारत छोड़ ब्रिटेन चले गये. अपनी कंपनी के शेयर भी सौ से अधिक करोड़ के बेच दिये. आपदा में अवसर का नतीजा है कि वैक्सीन बनाने का काम भारत से कोरिया को शिफ़्ट हो रहा है.
सैमसंग बायोलॉजिक्स और सेलट्रियान, प्रोडक्शन सुविधाएं और रिसर्च व डेवलपमेंट सेंटर स्थापित करने के लिए करीब पौने दो खरब रुपये लगा रही हैं. इन कंपनियों का लक्ष्य इस क्षेत्र को बायो मेडिकल प्रोडक्ट्स के लिए विश्व का सबसे बड़ा हब बनाना है. पहले जनता को आरटीपीसीआर टेस्ट की जगह एंटीजन टेस्ट करके एक ओर कोरोना के मरीज़ों की संख्या घटाई गयी. दूसरी ओर यह दावा किया गया कि सरकार ने बहुत बड़ी संख्या में टेस्ट कर दिये हैं. यह तब किया गया जब आम धारणा यह है कि एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट सटीक नहीं होती है. यही नहीं, दूसरी लहर में आरटीपीसीआर टेस्ट पर सवाल उठे क्योंकि बहुत लोगों में कोरोना के कई गंभीर लक्षण होने के बावजूद उनकी आरटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आई. इससे निपटने के लिए जब फेफड़े के सीटी स्कैन की ओर जनता ने रूख किया तो एम्स के निदेशक रनदीप गुलेरिया यह ज्ञान देने लगे कि सीटी कितना खतरनाक है. मत करायें.एक हास्पिटल दूसरे हास्पिटल के कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट मानने को तैयार नहीं है. सब अपना अपना टेस्ट करा रहे है.
2020 में जब कोरोना की वैक्सीनों पर काम शुरू हुआ तब भारत सरकार ने वैक्सीन डेवलपमेंट में पैसा नहीं लगाया. वैक्सीन के लिए एक भी एडवांस आर्डर नहीं दिया. सहयोग के नाम पर सिर्फ आईसीएमआर ने भारत बायोटेक को इनक्टिवेटेड कोरोना वायरस दिया है. देश में प्रियॉरिटी ग्रुप के लोगों का पूरा वैक्सीनेशन भी नहीं हुआ तभी 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए वैक्सीनेशन खोल दिया गया. दूसरी लहर की तबाही झेलने के बाद भी अभी तक वैक्सीन इम्पोर्ट करने के आर्डर नहीं दिए गए.कोरोना की पहली लहर शांत हो रही थी तब अगली लहर के लिए कोई तैयारी नहीं की गई. अस्थायी अस्पताल भी हटा दिये गये. तब जबकि 2021 की शुरुआत में ही ढेरों वैज्ञानिकों ने दूसरी लहर की चेतावनी दी थी .
स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और ब्यूरोक्रेट्स ने जल्दबाजी में बिना किसी वैज्ञानिक आधार के कोरोना पर जीत का एलान कर दिया. सरकार ने जिस तरह पूर्ण अनलॉक किया और सब कुछ नॉर्मल होने का संदेश दिया गया, उससे जनता पूरी तरह लापरवाह हो गई. दूसरी लहर जब सुनामी बन गई तब पता चला कि देश में न तो पर्याप्त ऑक्सीजन है और न रेमेडीसीवीर का स्टॉक. केंद्र ने 2020 में खुले हाथ ऑक्सीजन एक्सपोर्ट किया.और तो और, दूसरी लहर जब चरम पर थी तब आईसीएमआर ने लैब पर ज्यादा दबाव होने का तर्क देते हुए रैपिड एंटीजन टेस्ट ज्यादा करने पर जोर दिया. जबकि यह टेस्ट बहुत विश्वसनीय नहीं है.ग्रामीण इलाकों में कोरोना बीमारों के लिए कोई इंतजाम नहीं किये गए.
दूसरी लहर की चेतावनी के बावजूद कुम्भ का आयोजन करने की इजाजत दी गई. पांच राज्यों में चुनाव कराए गए. प्रधानमंत्री ने जनता को सचेत करने की बजाय खुद बड़ी बड़ी रैलियां कीं.सरकार अपने बनाये कोरोना प्रोटोकॉल को बार बार बदलती रही. 2020 में बनाये गए प्रोटोकॉल अब तक पूरी तरह बदल चुके हैं.कोरोना से जुड़े आर्थिक मोर्चे पर सरकार बिल्कुल फेल रही. अति गरीबों को अनाज बांटने के अलावा अन्य जरूरतमंद लोगों, संस्थानों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों को कोई डायरेक्ट सहायता नहीं दी गई. कोरोना बीमारी, और इससे जुड़े बाकी सभी पहलुओं पर सरकार बिल्कुल ट्रांसपेरेंट नहीं रही. सिर्फ सरकार को बचाने की कवायद रही है.कोरोना से निपटने, लोगों को जानकारी देने में स्वास्थ्य मंत्रालय, आईसीएमआर, नीति आयोग, टास्क फोर्स वगैरह तमाम ग्रुप्स अलग अलग बातें बोलते रहे हैं. जो भी गलतियां हुईं हैं उनको स्वीकारा नहीं गया. अब गलती न हो इसके लिए क्या किया गया है, यह भी नहीं बताया गया. (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं . यह उनके निजी विचार हैं.)