OPINION : Mahatma Gandhi पूरी धरती का स्वाभिमान थे

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) इंसान व इंसानियत के संस्करण थे.
20वी सदी के महान उपन्यासकार जार्ज ऑरवेल ने अपनी रचना गांधी-कुछ विचार में कहा है -“संतो को हमेसा ही तब तक दोषी मानना चाहिए, जब तक वे अपने आप को दोष रहित साबित न कर दे,लेकिन इसके लिए जो परीक्षण अपनाये जाए,वे सभी के लिए सामान्य नहीं होते है.’
गांधी को ले कर सवाल यह है कि गांधी किस हद तक ऐसे संतत्व से एक विन्रम और चेतनशील फकीर के रूप में संचालित थे,जो बिना संत हुए भी चटाई पर बैठ कर प्रार्थना गाते गाते विश्व के सबसे बड़े, तगड़े और ताकतवर साम्राज्य को अपनी आत्मा की ताकत से हिला रहे थे.
गांधी ने साम्राज्य को आत्मा की ताकत से हिलाया, प्रार्थना से हिलाया,सामान्य मनुष्य की तरह जीकर और अपना काम करते हुए बिना संतत्व का बाना पहने,बिना अवतार,पीर,पैगम्बर कहलाये,बिना किसी धर्म मझबको छोटा या बड़ा बताये.
Mahatma Gandhi धरती का स्वाभिमान थे
जिस अमेरिका का नाम ले कर दुनिया के कई मुल्क थर्राते थे,वह स्वयं थर्रा उठा.
पता नहीं शस्त्रों की होड़ और मजहबी नफरतो की दौड़ में शामिल अब भी शस्त्र और संत में फर्क करेगी या नहीं,बन्दगी व् ज़िन्दगी को एक मानेगी या नहीं,सेवा व् साधना को एक समझेगी या नहीं..
गांधी पूरी धरती का स्वाभिमान थे.वे सेवा की साधना थे.वे ईश्वर,देवता,अवतार,संत कुछ नहीं थे.वे तो इंसान व् इंसानियत के संस्करण थे.
उन्हों ने शस्त्र की ताकत को सत्य की ताकत के सामने झुका दिया.गांधी को समझा नहीं गया इसी लिए गांधी को माना नहीं,गांधी को माना गया इसी लिए गांधी को मार डाला गया.
गांधी को मार कर,राजनिति से हमने नीति को मार डाला,धर्म से धर्म के आदर्श की हत्या कर दी.
चरखे से उसका कर्म और हाथों से पैदा होता स्वाभिमान छीन लिया और इंजीनियरींग कालेजो,प्रबंधन संस्थानों,मेडिकल कालेजों,स्कूलों,कालेजो,सब जगह बेकारों की ऐसी भीड़ खड़ी कर दी,जिसके पास काम नहीं, जिसके पास स्वावलंबन नहीं.
इस लिए देश में एक स्वाभिमानी पीढ़ी बनने से वंचित होती जा रही है.
Mahatma Gandhi ने नारी को शकर्मिणी बनाया
गांधी ने नारी को देवी बनाने के बजाय शकर्मिणी बनाया.गांधी ने शिक्षा में सरस्वती पूजन के लिए मूर्ति या फोटो नहीं लगाया बल्कि ज्ञान की सरस्वती का अध्ययन और कर्म से पूजन करना सिखाया.
गांधी गीता, कुरआन,बाइबिल पढ़ते ही नहीं थे बल्कि उनके रास्ते पर चलते भी थे.
गांधी चेतना का चिंतन थे और चिंतन की चिंता थे.वे मानते थे की जिस देश या समाज के पास चिंतन और चेतना नहीं,वह ज्ञान और सेवा का देश या समाज नहीं बन सकता.गांधी में अनेक महान आत्माएं एकाकार होती थी.
उनमे महर्षि अरविन्द का मानस था, राम कृष्ण परमहंस सी भक्ति,विवेकानंद सा देश प्रेम,राम तीर्थ सी मेधा,क्रान्तिकारियो जैसा साहस,इन सभी का समन्वय थे गांधी.
महात्मा गांधी प्रकृति भी थे
इसी लिए गांधी प्रकृति भी थे, पुरुष भी थे,नैतिक भी थे और नेतृत्व में नीतिवान भी.संयम उनकी साधना थी,नियम उनकी नैतिकता थीऔर यम उनका लोक व्यवहार था.
संत का अंत नहीं होता बल्कि संत देहमुक्त हो के अनंत हो जाता है.आज आदमी,आदमी के बीच नफ़रत, जाति जाति के बीच दुश्मनी और घृणा तथा मुल्क मुल्क के बीच आतंक,तनाव और एक दूसरे को मिटा देने की कट्टरता व्याप्त है.
आखिर इतने सारे धर्म,मजहब पालने वाले दुनिया की 6 अरब आबादी के लोगो ने अपने संतो से क्या पाया,क्या सीखा और समझा?
गांधी जी ने सिर्फ राजनितिक लड़ाई लड़ी होती तो वे सिर्फ इतिहास की चीज़ बन कर रह जाते.
गांधी ने अपनी लड़ाई को एक सभ्यता के सांचे में ढाला
गांधी ने अपनी लड़ाई को एक सभ्यता के सांचे में ढाला था.यह पूछने पर कि आप् किस धर्म के अनुयायी है?
गांधी ने कहा-मैं ईश्वर में विश्वास करता हूँ.पहले मैं ईश्वर सत्य है ऐसा कहा करता था लेकिन अब कह रहा हूँ कि सत्य ईश्वर है.ऐसे लोग तो है,जो ईश्वर के अस्तित्व से इंकार करते है किंतु ऐसा कोई नहीं है जो सत्य के अस्तित्व से इंकार करता हो.
इस तरह गांधी,ईश्वर को एक काल विशेष से निकालकर हर युग के सत्य के रूप में स्थापित कर देते है.मैं ऐसे संत महा पुरुष को उनके जन्म जयंती पर नमन करता हूँ.
बैजनाथ मिश्रा.
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