जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा

जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा
Environment1

बैजनाथ मिश्र
सृष्टि के विकास-क्रम में अतीत में यह देखा गया है कि जलवायु में छोटे बदलाव से लेकर बड़े बदलाव तक हुए हैं जैसे अफ्रीका के सहारा क्षेत्र की भू-दृश्यों से भरी झील कुछ ही सदियों में एक अनुपजाऊ मरुस्थल में परिवर्तित हो गई. अब अनेक वैज्ञानिकों को भय है कि वर्तमान में ग्रीन हाउस के निर्माण से उत्पन्न गैसों से भी बड़ी संख्या में परिवर्तन हो सकता है.

अनेक वैज्ञानिकों का यह विश्वास है कि गैसें ग्रहों के तापमान में क्रमिक वृद्धि करके पृथ्वी पर गम्भीर रूप से जीवन को दुर्लभ बनाती है. अन्य विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं अपितु इनका यह मानना है कि पृथ्वी का तापमान सदियों से घटता-बढ़ता रहा है तथा जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालीन प्रभाव को अभी समझने की जरूरत है.

वैश्विक तापन के परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई है.      ध्रुवों की बर्फ तेजी से पिघलने लगी है जिसके कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है. ओजोन परत के क्षरण से पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव बढ़ने लगे हैं. न केवल मानव जीवन बल्कि पशु-पक्षी और वनस्पतियों पर भी प्रदूषित पर्यावरण का प्रभाव पड़ रहा है. कई दुर्लभ प्रजातियाँ नष्ट हो चुकी हैं. पशु-पक्षियों की संख्या घट रही है. बाढ़, सूखा, समुद्री तूफान, चक्रवात, भूकम्प भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी बढ़ी हैं.

वैश्विक तापन का सबसे स्पष्ट और कदाचित सबसे सर्वव्यापी और भयंकर दुष्परिणाम है वायुमंडल का निरन्तर गर्म होते जाना. वर्षों तक गहन अध्ययनों के बाद वैज्ञानिकों ने यह पाया कि पृथ्वी का ताप निश्चय ही बढ़ रहा है. 19वीं शताब्दी के मध्य से लेकर अब तक पृथ्वी के ताप में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो गई है और यदि हालत यही रहे तो हर दशक में पृथ्वी के ताप में 0.2 से 0.5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है और इक्कीसवीं सदी के मध्य तक भूमंडल का ताप 2 से 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा. यह ताप वृद्धि उपधुवीय क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक होगी.

पर्यावरण जैव मण्डल का आधार है, लेकिन औद्योगिक क्रान्ति के बाद से विकास की जो तीव्र प्रक्रिया अपनाई गई है उसमें पर्यावरण के आधारभूत नियमों की अवहेलना की गई जिसका परिणाम पारिस्थितिक असन्तुलन एवं पर्यावरणीय निम्नीकरण के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है. आज विश्व के विकसित देश हों अथवा विकासशील देश, कोई भी पर्यावरण प्रदूषण के कारण उत्पन्न गम्भीर समस्या से अछूता नहीं है.

1970 के दशक में ही यह अनुभव किया गया कि वर्तमान विकास की प्रवृत्ति असन्तुलित है एवं पर्यावरण की प्रतिक्रिया उसे विनाशकारी विकास में परिवर्तित कर सकती है. तब से लेकर वर्तमान वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय निम्नीकरण की समस्या के समाधान हेतु कई योजनाएँ प्रस्तुत की गईं, समाधानमूलक उपायों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ.

बावजूद इसके वास्तविक   उपलब्धियाँ अति न्यून ही रहीं. तो इसका तात्पर्य यह निकाला जाये कि वैश्विक स्तर पर ईमानदार प्रयास नहीं किये गए. साथ ही विभिन्न राष्ट्रों ने राष्ट्रीय आर्थिक विकास को कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण माना एवं पर्यावरणीय असन्तुलन के प्रति उदासीन बने रहे. उन तथ्यों की समीक्षा से पूर्व आवश्यकता है कि संक्षेप में उन समस्याओं पर विचार किया जाये जो पर्यावरणीय प्रदूषण को उत्पन्न कर रही हैं एवं जिनके कारण सम्पूर्ण जैव जगत के साथ समक्ष गम्भीर चुनौती उत्पन्न हो गई है.

वैश्विक तापन के कारण प्रकृति मेें बदलाव आ रहा है. कहीं भारी वर्षा तो कहीं सूखा, कहीं लू तो कहीं ठंड. कहीं बर्फ की चट्टानें टूट रही हैं तो कहीं समुद्री जल स्तर में बढ़ोत्तरी हो रही है. आज जिस गति से ग्लेशियर पिघल रहे हैं इससे भारत और पड़ोसी देशों को खतरा बढ़ सकता है. वैश्विक ताप से फसल-चक्र भी अनियमित हो जाएगा. इससे कृषि उत्पादकता भी प्रभावित होगी. मनुष्यों के साथ-साथ पक्षी भी इस प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं. वैश्विक तापन पक्षियों के दैनिक क्रियाकलाप और जीवन-चक्र को प्रभावित करता है.

वैश्विक तापन में सर्वाधिक योगदान कार्बन डाइऑक्साइड का है. 1880 से पूर्व वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 280 पीपीएम थी, जो आज आईपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार 379 पीपीएम हो गई है. कार्बन डाइऑक्साइड की वार्षिक वृद्धि दर गत वर्षों में (1995-2005) 1.9 पीपीएम वार्षिक है.

आईपीसीसी ने भविष्यवाणी की है कि सन 2100 आते-आते इसके तापमान में 1.1 से 6.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोत्तरी हो सकती है. सदी के अन्त तक समुद्री जलस्तर मेें 18 से 58 सेमी. तक वृद्धि की सम्भावना है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2080 तक 3.20 अरब लोगों को पानी उपलब्ध नहीं होगा. 60 करोड़ लोग भूखे मरेंगे. इससे अल्पविकसित देशों को हानि होगी. अल्पाइन क्षेत्रों और दक्षिणी अमेरिका के अमेजन वन के समाप्त हो जाने की सम्भावना है. प्रशान्त क्षेत्र के कई द्वीप जलमग्न हो जाएंगे . यह तो तय है कि पृथ्वी का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है. पर कितना बढ़ेगा, यह निश्चित रूप से बताना कठिन है. सामान्य परिसंचारी मॉडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी करने पर देखा गया कि तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया पर इसके अन्य प्रभाव भी देखे गए जैसे तापमान बढ़ने के कारण जलवाष्प ज्यादा बनेगी, जो ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न कर आधा डिग्री सेल्सियस तापमान और बढ़ाएगी.

ज्यादा तापमान के कारण बर्फ पिघलेगी, जिससे धूप का परावर्तन कम होगा, अवशोषण ज्यादा होगा. परिणामस्वरूप आधा डिग्री सेल्सियस तापमान और बढ़ जाएगा. ज्यादातर मॉडलों से पता लगा है कि कार्बन डाइऑक्साइड दोगुनी करने पर ऊँचाई पर बादल ज्यादा बनेंगे, पर मध्यम ऊचाई के बादलों में कमी आएगी. परिणामस्वरूप दो डिग्री सेल्सियस तापमान और बढ़ जाएगा.

उल्लेखनीय है कि बादल ग्रीन हाउस प्रभाव को सीधा प्रभावित करते हैं. इस तरह कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी होने पर पृथ्वी की औसत तापमान कुल चार डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा.

आज प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को कम-से-कम करने के साथ पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए दीर्घकालिक यानी सतत विकास की आवश्यकता है. पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनाकर पृथ्वी को बचाया जा सकता है. इसके लिये हर कदम पर ऊर्जा की बचत कर और भूमि एवं जंगलों का संरक्षण करके पर्यावरण के अनुकूल माहौल बना सकते हैं.

पूरी दुनिया को वृक्षारोपण द्वारा पुनः हरा-भरा बनाना होगा और जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी लानी होगी. सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा जैसे प्रदूषण मुक्त ऊर्जा स्रोतों को ज्यादा-से-ज्यादा अपनाना होगा. इन उपायों से निश्चित ही इस धरती को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने में मदद मिल सकती है. इनके अलावा पृथ्वी ग्रह को जलवायु के संकट से बचाने के लिये सभी को प्रयास करने होंगे तभी यह ग्रह सुन्दर और जीवनमय बना रहेगा. इसके लिये हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कुशलता और पूरी दक्षता के साथ करना होगा.

हमें जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाने एवं इस दिशा में नई प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित करना होगा. इस प्रयास में हमें परम्परागत ज्ञान का भी सहारा लेना होगा ताकि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने की दिशा में हमारा प्रयास सफल होने के साथ ही पूरे समाज को जोड़ने वाला हो. इस प्रकार सभी की भागीदारी के द्वारा जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटा जा सकता है.

On

About The Author

Bhartiya Basti Picture

Bhartiya Basti