नज़रिया: शिक्षा प्रणाली में बदलाव और चुनौतियां

नज़रिया: शिक्षा प्रणाली में बदलाव और चुनौतियां
New Education Policy 2020

-डाॅ. राजेश कुमार शर्मा-
21वीं सदी के भारत की जरूरतों को पूरा करने के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली में बदलाव हेतु वर्तमान सरकार द्वारा जिस नई  शिक्षा नीति  को मंजूरी दी गयी है, उसे ही नयी राष्ट्रीय शिक्षा  नीति 2020 (nep 2020) के नाम से जाना जाता है. वैश्विक पारिस्थितिकी एवं ज्ञान के परिदृश्य में पूरा विश्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा हैं, ऐसी स्थिति में बच्चे विविध विषयों के बीच अंतर्संबंधों को समझे, जीवन के सभी पक्षों का एवं क्षमताओं का संतुलित विकास कर सके, इसके लिए भारत की परम्परा और सांस्कृतिक मूल्यों पर जोर दिया गया है. ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय दर्शन में सदैव सर्वोच्च मानवीय लक्ष्य माना गया है,  प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परम्परा को ध्यान में रखकर यह नीति तैयार की गई है. दरअसल ये एक पॉलिसी डाक्यूमेंट है, जिसमें सरकार का शिक्षा को लेकर आने वाले दिनों  में विजन क्या है, इसकी चर्चा है.  जो शिक्षा के क्षेत्र में देश की दशा और दिशा तय करती है.       

नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है जिसमे  वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio GER) को 100  लाने का लक्ष्य रखा गया है. नई शिक्षा नीति के अंतर्गत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा के क्षेत्र पर जीडीपी के 6: हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है. नई शिक्षा नीति की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय का नाम परिवर्तित कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है.

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’स्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान’ -  नई शिक्षा नीति 2020 में 5 : 3 : 3 : 4 डिजाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है. नई शिक्षा नीति में पहले जो 10:2 की पंरपरा थी, अब वो खत्म हो जाएगी. अब उसके स्थान पर  5:3:3:4 का प्राविधान किया जा रहा है. 5:3:3:4  में 5 का मतलब है - तीन साल प्री-स्कूल के और क्लास 1 और 2, उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 3, 4 और 5 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 6, 7 और 8 और आखघ्रि के 4 का मतलब है क्लास 9, 10, 11 और 12

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यानी अब बच्चे 6 साल की जगह 3 साल की उम्र में फॉर्मल स्कूल में जाने लगेंगे. अब तक बच्चे 6 साल में पहली क्लास मे जाते थे.  इस  नई शिक्षा नीति के लागू होने पर भी 6 साल में बच्चा पहली क्लास में ही होगा, लेकिन पहले के 3 साल भी फॉर्मल एजुकेशन वाले ही होंगे. प्ले-स्कूल के शुरुआती साल भी अब स्कूली शिक्षा में जुड़ेंगे. इसका मतलब ये कि अब राइट टू एजुकेशन का विस्तार होगा. पहले 6 साल से 14 साल के बच्चों के लिए आरटीई लागू किया गया था. अब 3 साल से 18 साल के बच्चों के लिए इसे लागू किया गया है.     

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        nep 2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है. साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव भी दिया गया है. इसके अलावा स्कूली शिक्षा में एक और महत्वपूर्ण बात है भाषा के स्तर पर. नई शिक्षा नीति में 3 लैंग्वेज फॉर्मूले की बात की गई है, जिसमें कक्षा पाँच तक मातृ भाषा, लोकल भाषा में पढ़ाई की बात की गई है.  साथ ही ये भी कहा गया है कि जहाँ संभव हो, वहाँ कक्षा 8 तक इसी प्रक्रिया को अपनाया जाए. संस्कृत भाषा के साथ तमिल, तेलुगू और कन्नड़ जैसी भारतीय भाषाओं में पढ़ाई पर भी जोर दिया गया है.  स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी.

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विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें. इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा. कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (प्दजमतदेीपच) की व्यवस्था भी की जाएगी.  शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन होगा तथा समय-समय पर किये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति का कार्य संपन्न होगा. वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा.   

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        छम्च्-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’  को 26:3  (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50  तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा. नई शिक्षा नीति में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखघ्लिे के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से परीक्षा कराने की बात कही गई है. छम्च्-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्जिट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा जैसे-1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद  डिप्लोमा सर्टिफिकेट,  3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक. तीन वर्ष का स्नातक कोर्स सेमेस्टर प्रणाली पर आधारित होगा और प्रत्येक वर्ष में दो सेमेस्टर होंगे. उत्तर प्रदेश राज्य उच्च शिक्षा परिषद् द्वारा निर्मित स्नातक स्तर  के पाठ्यक्रम के अनुसार प्रत्येक वर्षो में हर विद्यार्थी को कुछ आवश्यक रूप से को-कैलिकुलर कोर्स का अध्ययन करना होगा जैसे कि स्नातक प्रथम वर्ष में हेल्थ एंड हाईजीन, द्वितीय वर्ष में सोशल रिस्पांसिबिलिटी एंड डिजिटल अवेर्नेस, तृतीय वर्ष में आपदा प्रबंधन और डाटा विश्लेषण आदि.

ये विश्वविद्यालय पर निर्भर करेगा की कौन से वर्ष में किस तरह के को -कैरिकुलम कोर्स छात्रों को करने होंगे. इस नयी व्यवस्था में विद्याथियों को लगातार तीन वर्ष तक पढते रहने की बाध्यता समाप्त कर दी गयी है. वो अपनी पढाई बीच में छोड़ भी सकते है और फिर आवश्यकता के अनुरूप पुनः शुरू भी कर सकते है. इस नयी व्यवस्था में विद्यार्थियों को और सहूलियत यह दी गयी है कि वे किसी भी फैकल्टी के कम से काम दो विषय स्नातक स्तर पर ले सकते है.  जैसे - इतिहास और समाजशास्त्र के साथ भौतिकी या विज्ञानं वर्ग का कोई भी एक विषय. उसी तरह भौतिकी और रसायन शास्त्र के साथ राजनीतिशास्त्र या कला संवर्ग का कोई भी विषय. विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (.बंकमउपब ठंदा व िब्तमकपज) दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके. नई शिक्षा नीति के तहत एम.फिल. (ड.च्ीपस) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया है.                           

इस प्रकार से स्पष्ट है की नवीन शिक्षा नीति 2020 में उच्च शिक्षा में व्यापक बदलाव करते  हुए इसे विद्यार्थियों के हित  में लाने का प्रयास किया गया है. अगर इसका  क्रियान्वयन सफल तरीके से होता है तो यह नई प्रणाली भारत को विश्व के अग्रणी देशों के समकक्ष ले आएगी. नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत 3 साल से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के अंतर्गत रखा गया है. मेरा मानना है कि 34 वर्षों पश्चात् आई इस नई शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिसका लक्ष्य 2025 तक पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (3-6 वर्ष की आयु सीमा) को सार्वभौमिक बनाना है. मेरी दृष्टि में  स्नातक स्तर की शिक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, थ्री-डी मशीन, डेटा-विश्लेषण, जैवप्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों के समावेशन से अत्याधुनिक क्षेत्रों में भी कुशल पेशेवर तैयार होंगे और युवाओं की रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी.    वैसे तो नीतियों को अच्छा बनना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण तो यह है कि इन्हे कब और कैसे लागू करना है, सबसे बड़ा चैलेंज तो इसका सफल क्रियान्वयन है. प्राथमिक शिक्षा को इस नई पॉलिसी में काफी अहमियत दी गई है.

ये अच्छी बात है. क्योंकि पहली में बच्चा सीधे स्कूल में आता था, तो उस वक्त वो दिमागी तौर पर पढ़ने के लिए तैयार नहीं होता  था.  तीन साल के प्री-स्कूल के बाद अगर अब वो पहली में आएगा, तो मानसिक तौर पर सीखने के लिहाज से पहले के मुकाबले ज्यादा बेहतर  तैयार होगा. मेरी     दृष्टि  में मातृभाषा में पढ़ाना भी अच्छा कदम है. बच्चे की घर की भाषा को स्कूल की भाषा बनाना बहुत लाभदायक होगा लेकिन इसके लिए महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय और शिक्षा विभाग  को  एक साथ आकर काम करने की जरूरत होगी. नयी शिक्षा नीति क्लास रूम से बाहर शिक्षा को ले जाने की पहल है.  नई शिक्षा नीति ने उसे रोजगार से जोड़ा है क्योकि  वोकेशनल एजुकेशन को इस लिहाज से जोड़ा गया है. 

अब तक शिक्षा का मतलब फॉर्मल एजुकेशन से हुआ करता था, लेकिन अब अनौपचारिक  यानी इन-फॉर्मल एजुकेशन को भी शिक्षा के दायरे में लाया गाया है.  कोविड-19 के दौर में जो आर्थिक संकट नजर आ रहा है, उसकी एक वजह है लोगों में स्व-रोजगार की भावना और उसके प्रति सम्मान की कमी.  नई शिक्षा नीति इसी तरह की समस्या को दूर करेगी.  मातृभाषा को पांचवीं कक्षा तक महत्त्व देकर  ना सिर्फ बच्चों की पढ़ाई आसान की गई है अपितु  भारतीय भाषाओं में भी जान फूकने का प्रयास किया गया है क्योंकि  वे औपनिवशिक भाषा अंग्रेजी के दबाव में दम तोड़ रहे हैं.        

   हम मानते है कि  यह एक नयी चुनौती है अतः इसके लिए एक सीढ़ीनुमा रोड मैप भी होना चाहिए. देखा जाये तो नयी शिक्षा नीति एक प्रकार से साँप-सीढ़ी के खेल के समान है, खेलने वालों को साँप का भी अंदाजा होना चाहिए और सीढ़ियों का भी.  इस नई नीति में ऊपर जाने के भी रास्ते हैं और लुढ़क कर नीचे आने के रास्ते भी, संभल कर नहीं खेलने के हारने का खतरा भी होगा, इसके लिए सहारा चाहिए होगा.     

जैसे हर सिक्के के दो पहलु होते है वैसे ही इस नयी शिक्षा नीति के सन्दर्भ में दूसरा पहलु भी है जिसको लेकर शंका व्यक्त की जाती रही है. आलोचकों के अनुसार इस शिक्षा नीति को मूलतरू तीन बिंदुओं से देखने की जरूरत है. पहला- इससे शिक्षा में कॉरपोरेटाइजेशन को बढ़ावा मिलेगा, दूसरा इससे उच्च शिक्षा के संस्थानों में अलग-अलग ‘जातियाँ’ बन जाएँगी, और तीसरा खतरा है अति-केंद्रीकरण का.  उनके मुताबिकघ् मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नीति आयोग ने स्कूलों के लिए परिणाम-आधारित अनुदान देने की नीति लागू करने की बात पहले ही कह दी है. ऐसे में जो स्कूल अच्छे होगें, वो और अच्छे होते चले जाएँगे और खराब स्कूल और अधिक खराब. वैसे यह आलोचना निराधार नहीं है, सरकार को इस दिशा में विशेष ध्यान देना होगा वरना इसका खामियाजा भारत के 70 प्रतिशत आर्थिक रूप से निर्धन, गरीब, दलित आदि वर्ग के लोगो को भुगतना पड़  सकता है. (यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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