नवरात्र के छठवें दिन करें कत्यायनी माता की पूजा-अर्चना, इन मंत्रों का करें जाप
Katyayani Mata ki pooja

कात्यायनी के बारे में
कात्यायनी माँ एक भव्य सिंह पर सवार हैं. उन्हें चार भुजाओं वाली दर्शाया गया है, जिनमें से बाईं दो भुजाओं में कमल और तलवार हैं, और दाईं दो भुजाएँ वरद और अभय मुद्रा में हैं. देवी लाल वस्त्र धारण किए हुए हैं.
कथा
देवी का नाम कात्यायनी इसलिए पड़ा क्योंकि उनका जन्म कात्यायन ऋषि के यहाँ हुआ था. कुछ ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि वे देवी शक्ति का अवतार हैं और उन्हें यह नाम इसलिए मिला क्योंकि ऋषि कात्यायन ने सबसे पहले उनकी पूजा की थी.

जब महिषासुर के अत्याचारों के कारण संसार संकट में था, तब देवी कात्यायनी ने उसका वध किया था. जैसे ही वह राक्षस महिषासुर के सामने पहुंची, वह सभी हथियारों से लैस होकर शेर से उतर गई. राक्षस ने एक बैल का रूप धारण कर लिया और देवी उसकी पीठ पर सवार हो गईं. अपने कोमल पैरों से, उसने उसके सिर को नीचे धकेल दिया और फिर उसकी गर्दन काट दी. इसीलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी (महिषासुर का वध करने वाली) नाम भी मिला है.
ज्योतिषीय पहलू
बृहस्पति ग्रह (बृहस्पति) पर देवी कात्यायनी का शासन है. इनकी पूजा से इस ग्रह के दुष्प्रभाव को शांत करने में मदद मिलती है.
मंत्र
ॐ देवी कात्यायनै नमः॥
प्रार्थना मंत्र:
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना.
कात्यायनी शुभं दद्यद् देवी दानवघातिनी॥
स्तुति:
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्र:
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखरम्.
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थितम् षष्ठम् दुर्गा त्रिनेत्राम्.
वरभीत कारणं शगपधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पाटम्बर पसियां स्मेर्मुखी नानालङकार भूषिताम्.
मंजीर, हार, केयूर, किंकिनी, रत्नकुंडल मंडिताम्॥
पुष्पवदना पल्लवधरां कान्त कपोलाम् तुगम कुचाम्.
कमनीयां लावण्यां त्रिवलिविभूषितोन्नत नाभिम्॥
स्तोत्र:
कंचनाभं वरभयं पद्मधरा मुक्तोज्ज्वलां.
स्मेर्मुखी शिवपत्नी कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
पाटम्बर पसियाना नानालङ्कार भूषिताम्.
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परमब्रह्म परमात्मा.
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
विश्वभर्ती, विश्वभर्ती, विश्वभर्ती, विश्वप्रेमा.
विश्वचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
कं बीजा, कं जपानंदकं बीज जप तोषिते.
कं कं बीज जपदसक्तकं कं संतुता॥
कंकारहर्षिणीकं धनदाधनमासना.
कं बीज जपकारिणीकं बीज तप मनसा॥
कं कारिणी कं मंत्रपूजिताकं बीज धारिणी.
कं किं कुंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥
कवच मंत्र:
कात्यायनौमुख पातु कं स्वाहास्वरूपिणी.
ललाते विजया पातु मालिनी नित्य सुंदरी॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥
इसके साथ ही हम आशा करते हैं कि आप नवरात्रि के छठे दिन का भरपूर आनंद उठाएंगे. कात्यायनी दुर्गा आपको जीवन की सभी अच्छाइयों का आशीर्वाद दें.