कोरोना की तीसरी लहर का चरम बीत गया!
-राजेश माहेश्वरी
पिछले दो साल से कोरोना ने पूरी दुनिया को हिलाकर रखा हुआ है. हमारा देश भी इस महामारी से अछूता नहीं रहा. कोरोना की दूसरी लहर ने देश में जो कोहराम मचाया, उसे याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 130 करोड़ की आबादी वाले देश में सभी नागरिकों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना कोई आसान काम नहीं है. महामारी के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर नागरिकों की मदद में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर ने देशवासियों की चिंता को दोबारा बढ़ा दिया. लेकिन गनीमत है कि कोरोना वायरस की कथित तीसरी लहर का प्रभाव कम होनेे की खबरें प्रकाश में आ रही हैं. रिपोर्ट के अनुसार देश में कोरोना संक्रमण के मामले लगभग 70 फीसदी तक घट गये हैं. बीते दो हफ्तों की बात की जाए तो संक्रमण लगातार कम हुआ है.
सुखद बात यह भी है कि देश के जिन राज्यों में महामारी का विस्तार अब भी जारी था, वह भी संक्रमण का स्तर लगातार कम हो रहा है. आईसीएमआर के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. समीरन पांडा का आकलन है कि फरवरी अंत तक कोरोना संक्रमण नगण्य हो जाएगा. देश भर में कुल संक्रमित मामलों की निर्णायक गिरावट भी मार्च तक अपेक्षित है. यह कुछ आंकड़ों से स्पष्ट हो सकता है. बीती 20 जनवरी को कोरोना के संक्रमित मामले 3,47,063 थे, जो 8 फरवरी को 67,597 तक लुढ़क गए हैं. महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल सरीखे जिन राज्यों में संक्रमित मामले 50,000 रोजाना तक दर्ज किए जा रहे थे, वहां अब आंकड़े बेहद कम हैं. तमाम राज्यों ने कोरोना के घटते मामलों को देखते हुए बंदिशों को खत्म किया जा रहा है. जीवन सामान्य गति की ओर धीरे-धीरे ही सही लेकिन अग्रसर हो रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन और महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य एजेंसियों की स्थापना है कि कोरोना वायरस की मौजूदगी लगातार संक्रमित मामलों और सक्रिय मरीजों की संख्या के आधार पर आंकी जाती है. यदि लगातार 7 दिनों तक संख्या न बढ़े, तो महामारी का ‘चरम’ मान लिया जाता है. भारत में बीती 23 जनवरी को सक्रिय मरीज 22 लाख से अधिक थे. अब 13 लाख से भी कम हो गए हैं और फरवरी अंत तक उनमें भी निरंतर गिरावट के आसार हैं. इसी आधार पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के आकलन सामने आ रहे हैं कि तीसरी लहर का ‘चरम’ गुजर चुका है. अब संक्रमण अधोपतन की तरफ है. संक्रमण के जो आंकड़े बीते शनिवार, 5 फरवरी, को सामने आए थे, वे 5 जनवरी के बाद सबसे कम मामले हैं. जो संक्रमण-दर 30 फीसदी से ऊपर तक चली गई थी, अब वह 10 फीसदी से भी कम है. राजधानी दिल्ली में तो संक्रमण-दर मात्र 2.87 फीसदी दर्ज की गई है.
साफ है कि संक्रमण बहुत नियंत्रण में आ गया है. महामारी के निरंतर पतन का ही परिणाम है कि कई राज्यों में स्कूल-कॉलेज खोल दिए गए हैं. सरकारी और निजी क्षेत्र के दफ्तरों में 100 फीसदी क्षमता के साथ काम शुरू कर दिए गए हैं. रेस्तरां, बार, होटल रात्रि 11 बजे तक खुल सकेंगे. यानी एक बार फिर आर्थिक गतिविधियां आजाद हुई हैं. देश में सबसे पहले ‘चरम’ मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु और कोलकाता सरीखे महानगरों में आया. फिर छोटे शहरों में मरीजों की संख्या कम हुई और अब ग्रामीण इलाकों में भी 80 फीसदी संक्रमण समाप्त हो चुका है. कोरोना टीकाकरण के संदर्भ में भी बड़ी सफलताएं हासिल हुई हैं.
यह टीके का ही प्रभाव रहा है कि इस बार मरीज कम आए और अस्पतालों में भगदड़ नहीं मची. कोरोना के मरीज ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं मरे. सड़कों पर लावारिस दृश्य देखने को नहीं मिले. देश की करीब 96 फीसदी आबादी टीके की एक खुराक ले चुकी है और 77 फीसदी से अधिक आबादी को दोनों खुराकें दी जा चुकी हैं. हालांकि यह विशेषज्ञ चिकित्सक ही तय करेंगे कि भारत ‘हर्ड इम्युनिटी’ की स्थिति में कब होगा और उसके फायदे क्या होंगे? लेकिन 140 करोड़ की आबादी के देश में टीकाकरण की यह अद्भुत सफलता है. किशोर बच्चों में टीकाकरण और बुजुर्गों में बूस्टर डोज के अभियान लगातार प्रतिमान स्थापित कर रहे हैं. एक पहलू जरूर चिंताजनक रहा है कि मौतें लगातार दर्ज की जाती रही हैं. भारत विश्व में ऐसा तीसरा देश है, जहां 5 लाख से ज्यादा मौतें दर्ज की जा चुकी हैं. कोरोना महामारी की शुरू होने की तारीख तो हम जानते हैं लेकिन ये महामारी कब खत्म होगी ये कोई विशेषज्ञ नहीं बता सकता, इसके अलावा कोरोना वायरस के वैरिएंट्स भी आ रहे हैं, इसकी चौथी लहर भी आ सकती है. विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि इन सब से बढ़कर कोरोना की जगह कोई दूसरी महामारी भी आ सकती है.
महामारियों की बात की जाए तो देश में वर्ष 1918 में मुंबई में महामारी फैली थी. तब यहां फैले इन्फ्ल्युएंजा फ्लू ने करीब दो करोड़ लोगों की जान ली थी. इन्फ्ल्युएंजा फ्लू को पहले बंबई इन्फ्ल्युएंजा के नाम से जाना गया और फिर बाद में इसे आम तौर पर बंबई बुखार कहा जाने लगा. इस महामारी के बाद साल 1921 में जब जनगणना हुई तो कुल लोगों की संख्या उस आंकड़े से भी कम रही, जो आंकड़ा साल 1911 की जनगणना में निकलकर सामने आया था जबकि इससे पहले हर 10 साल में होने वाली जनगणना में यह आंकड़ा करीब 2 करोड़ के हिसाब से बढ़ रहा था. सेंसस इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1901 की जनगणना में 23 करोड़ 86 लाख 96 हजार 327 जनसंख्या थी. इसके बाद 1911 की जनगणना में यह आंकड़ा करीब 2 करोड़ बढ़ा और जनसंख्या 25 करोड़ 20 लाख 93 हजार 390 हो गई. लेकिन, फिर भारत ने 1918 में इन्फ्ल्युएंजा फ्लू का दंश झेला. जिसके बाद 1921 में हुई जनगणना में 1911 के आंकड़े से भी कम जनसंख्या रिकॉर्ड की गई. 1921 में भारत की जनसंख्या सिर्फ 25 करोड़ 13 लाख 21 हजार 213 रह गई. कहा जाता है कि पहले विश्व युद्ध के बाद बंबई बंदरगाह पर लौटे ब्रिटिश इंडिया के सैनिक इन्फ्ल्युएंजा फ्लू लेकर आए थे. यह सैनिक मई 1918 में यहां लौटे थे.
पिछले दो सालों में देश ने जो कुछ देखा है उसके मद्देनजर देश में एम्स जैसे बड़े चिकित्सा संस्थान, मेडिकल कॉलेज, बड़े चिकित्सा रिसर्च केंद्रों की संख्या बहुत कम है. जो है वहां भी मरीजों का दबाव इतना अधिक रहता है कि और अधिक मरीजों को भर्ती करने की स्थिति में नहीं रहते हैं. ऐसी स्थिति में सरकार को हर जिले में बड़े चिकित्सा संस्थान भी बनवाने चाहिए ताकि लोगों को अपने जिले में ही समुचित उपचार मिल सके. लोगों को उपचार के लिये महानगरों की तरफ नहीं जाना पड़े. अभी भी समय है सरकार को लोकल लेवल पर स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया करवानी चाहिएं. देश के जिन राज्यों में जहां भी मेडिकल कॉलेज स्वीकृत है उनका निर्माण कार्य तुरंत प्रारम्भ करवाना चाहिए. केंद्र व राज्य सरकारें अपने पिछले बजट में शामिल विकास योजनाओं में कटौती कर स्वास्थ्य संबंधित योजनाओं पर ही अधिकांश पैसा खर्च करें ताकि आने वाले समय में देश इससे भी बड़ी महामारी का मुकाबला करने में खुद को सक्षम बना पाए. लोगों को भी अपने नेताओं से पुल, सड़क, भवन बनवाने के स्थान पर सबसे पहले अस्पताल बनवाने की मांग करनी होगी. तभी आये दिन विभिन्न प्रकार की बिमारियों से होने वाली अकाल मौतों को रोका जा सकेगा. सरकार को भी अपने विकास का एजेंडा बदल कर उसमें स्वास्थ्य को सबसे उपर रखना होगा. जब तक कोरोना का समूल नाश नहीं हो जाता तब तक सावधानी और सर्तकता बरतने में ही भलाई है.
-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं.