यूपी में किसानों ने तहसील में जलाया गन्ना, नहीं हो रही मूल्य में बढ़ोतरी
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भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसान की हालत देखकर देश के विकास संबंधी दावे अब बेमानी लगते है, सरकारों के द्वारा किसानों पर जितना ध्यान दिया गया उसका 10 प्रतिशत भी लाभ किसानों को नही मिला, हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान हर दल ने अपने-अपने घोषणापत्र में किसानों के लिए ढेरों सारे वादे किये लेकिन जमीनी हकीकत यही है की किसान अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए हर दिन प्राकृत के साथ ही साथ सिस्टम से लड़ रहा है, अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहा है।
कृषि प्रधान देश में आर्थिक तंगी से जूझ रहे किसान
पेट भरने वाले अन्नदाता के सामने रोजी रोटी का संकट
आपको बताते चले कि एक अनुमान के अनुसार अगले 20 वर्ष में भारत की आबादी लगभग एक अरब साठ करोड़ हो जाएग, ऐसे में सभी को भोजन उपलब्ध कराना देश के सामने एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि कृषि क्षेत्र और किसान जिस संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, आने वाले समय में खेती करने वाला कोई नहीं रह जायेगा। बुधवार को भाकियू चढूनी के जिलाध्यक्ष रंजीत सिंह की अगुवाई में गन्ना मूल्य में बढ़ोत्तरी न होने पर किसानों ने तहसील में धरना दिया। इसके बाद नाराज किसानों ने गन्ने की होली जलाकर विरोध जताया। जिलाध्यक्ष ने बताया पिछले 2 साल से गन्ना मूल्य बढ़ोत्तरी न होने से किसानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। लगातार रासायनिक उर्वरक, डीजल के दाम बढ़ने के बावजूद गन्ना मूल्य नही बढ़ाया जा रहा है। यूरिया में भी 5 किलो वजन कम कर दिया गया है। उन्होंने दाम बढ़ाकर 14 दिन के अंदर भुगतान करने की मांग की है। इसके अलावा मथुरा जनपद की तहसील महावन में तैनात एसडीएम पर किसानों के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया है। प्रदेश आवाहन पर मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन तहसीलदार हबीब उर रहमान अंसारी को सौंपा है। उन्होंने कहा दाखिल खारिज, खसरा मूल, निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र के नाम पर भी उत्पीड़न हो रहा है। गोवंशीय पशु खेतों, सड़कों व गांव में घूम कर नुकसान पहुंचा रहे हैं। 15 दिन के अंदर एसडीएम का स्थानांतरण और गन्ना मूल्य बढ़ोतरी न होने पर 17 मार्च को यूपी पढ़ें सभी जिला मुख्यालय पर आंदोलन होगा। उन्होंने 450 रुपए प्रति कुंतल गन्ना मूल्य करने की मांग की है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय बागबानी मिशन जैसी कई योजनाएं चल रही हैं, लेकिन सही तरीके से क्रियान्वयन न होने की वजह से किसानों को उनका जितना लाभ मिलना चाहिए उतना नहीं मिल पाया। विडंबना है कि सरकार द्वारा संचालित कई योजनाओं के बारे में तो किसानों को पता तक नहीं है। यानी कागज पर योजनाएं तो हैं, लेकिन किसानों की पहुंच से कोषों दूर हैं।