Basti MLC Election 2022: तंत्र और धनतंत्र के बीच हो रहा है बस्ती में MLC चुनाव
UP MLC Election 2022: - सुभाष तंत्र, सन्तोष यादव सन्नी धनतंत्र के भरोसेे - सपा कार्यकर्ता मायूस, भाजपाई मगन
-भारतीय बस्ती संवाददाता-बस्ती. विधान परिषद चुनाव को सत्ता का चुनाव कहा जाता है. सत्ता के भरोसे ऐसे लोग भी चुनाव जीत जाते हैं जिनका जनता, विकास से कोई सरोकार नहीं रहता है. पद पाकर छः सालों तक सत्ता का रसास्वादन करने वाले ऐसे माननीय अपने वोटरों तक को नहीं पहचानते है.
इस बार भाजपा से सुभाष यदुवंश और समाजवादी पार्टी से सन्तोष यादव सन्नी मैदान में आमने-सामने चुनाव लड़ रहे है. सन्तोष यादव सन्नी मौजूदा विधान परिषद सदस्य है. इस बार भी पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया है. भाजपा से लड़ रहे सुभाष यदुवंश के पास संगठन में काम करने का अनुभव है. इसके पूर्व वह भारतीय जनता युवा मोर्च के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस बार के चुनाव में सुभाष यदुवंश का पलड़ा सत्ताधारी उम्मीदवार की वजह से भारी तो लग रहा है, मगर जिसके बूते वोट मिलता है. वां अब तक उन्होंने वोटरों को दर्शन नहीं कराया है. सिर्फ सत्ता और तंत्र के भरोसे ये चुनाव उनके लिए कितना मुफिद साबित होगा ये वक्त बताएगा. मगर जिस तरह से उनके दरवाजे पर वोटरों की भीड़ खुद चलकर जा रही है. इससे उनके पाले में गेंद जाते हुए दिख रही है.
समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सन्तोष यादव सन्नी के धनतंत्र के भरोसे चुनाव मैदान में उतरे है. बस्ती समेत सिद्धार्थ नगर के वोटरों को अब तक उनका दर्शन तक नहीं मिल सका है. ऐसे में उनका सिर्फ धन ही सहारा दिख रहा है. सपा कार्यकर्ताओं में उत्साह का अभाव चुनाव में रोचकता पैदा नहीं कर पा रहा है. जिससे उनके पक्ष में हवा चलती नहीं दिख रही है.
जबकि इसके उलट विधान सभा चुनाव में कार्यकर्ताओं के उत्साह के भरोसे सपा जिले में 4 सीटें और पूरे मण्डल में 6 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. अंदरखाने सपा कार्यकर्ता इसे सत्ता का चुनाव मानकर उत्साहविहिन चुनाव लड़ रहे है. इसका अर्थ ये मानकर चला जा रहा है की पार्टी बिन लड़े ही अपनी हार मानकर चल रही है.
भाजपा और सपा के बीच चल रहे इस चुनावी जंग में वोटरों की परेशानी देखते ही बन रही है. विधान परिषद चुनाव के वोटरों की नजर प्रत्याशियों के थैली पर टिकी हुई है. जबकि अभी तक दोनों वोटरों ने अपने थैलियों का मुंह नहीं खोला है. भाजपाई रणनीतिकारों की मानें तो भाजपा उम्मीदवार सुभाष यदुवंश चुनाव जीत रहे है. ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है की भाजपा प्रत्याशी सिर्फ तंत्र के भरोसे चुनाव लड़ने पर आमादा है. धनतंत्र का नाम उनकी डिक्शनरी से नदारद दिख रहा है.
सपा उम्मीदवार सन्तोष यादव सन्नी चुनाव तो लड़ रहे हैं मगर क्षेत्र से उनके गायब रहने की आदत उनके राह में कांटें बिछा रही है. वोटरों को अपने तरफ खींचने के लिए जरूरी धन अब तक उन्होंने नहीं निकाला है. जिससे वोटर अब तक भ्रमित हैं. खैर इस चुनाव में सबसे बुरी हालत वोटर की है. जिसे अब तक सहानुभूति के दो शब्द तक उम्मीदवारों से नसीब नहीं हुए है.