Basti Election News: क्या नाखुश कार्यकर्ता बनेंगे टिकटार्थियों के राह में रोड़ा?
- भाजपा, सपा, कांग्रेस में सबसे ज्यादा हलचल - सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप तेज - बसपा कार्यकर्ता मिशन मोड में
-भारतीय बस्ती संवाददाता-
बस्ती. भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस द्वारा अपने उम्मीदवारों का नाम सार्वजनिक किये जाने के बाद से असंतुष्ट कार्यकर्ताओं का दर्द सामने आने लगा है. भाजपा ने रूधौली विधानसभा को छोड़कर सभी चारों सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. बस्ती सदर से दयाराम चौधरी, कप्तानगंज से सीए सीपी शुक्ल, महादेवा से रवि सोनकर व हर्रैया से अजय सिंह को मैदान में फिर से मौका दिया है.
कांग्रेस ने बस्ती सदर से देवेन्द्र श्रीवास्तव, कप्तानगंज से अम्बिका सिंह, हर्रैया से लबोनी सिंह व रूधौली सीट से बसंत चौधरी पर दांव लगाया है. पुराने कांग्रेसियों को फिर से तरजीह दिये जाने से नाराज युवाओं और टिकट के लिए लाइन में खड़े लोगों में असतोष उत्पन्न हो गया है. पार्टी ने अभी सुरक्षित सीट महादेवा से प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है. ऐसे में कांग्रेस द्वारा अपने असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को मनाकर उनका सहयोग लना चुनौती भरा काम होगा.
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भाजपा द्वारा मौजूदा विधायकों को फिर से मौका दिये जाने से हर सीट पर प्रत्याशियों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है. सबसे ज्यादा मुखर विरोध पार्टी को कप्तानगंज और सदर में झेलना पड़ रहा है. महादेवा में लोगों को अपने पाले में करना विधायक रवि सोनकर को भारी पड़ रहा है. वहीं हर्रैया विधायक अजय सिंह का रास्ता कांटों भरा दिख रहा है. उन्हें विपक्ष से कम अपने पार्टी के असंतुष्टों से ज्यादा संघर्ष करना पड़ेगा. कप्तानगंज में मौजूदा विधायक को फिर से टिकट दिये जाने से नाराज तमाम युवाओं ने त्यागपत्र दे दिया है. स्थानीय दिग्गजों में भी मौजूदा विधायक को लेकर असंतोष है. दबी जुबान से लोग कह रहे है की अगर पार्टी ने समय रहते कोई निर्णय नहीं लिया तो चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ेगा.
सपा के रास्ते भी इस चुनाव में आसान नहीं दिख रहे है. पार्टी ने अभी तक सिर्फ कप्तानगंज में अतुल चौधरी को टिकट दिया है. बाकी के चार सीटों पर दावेदारों में से सिर्फ चार को ही टिकट मिलेगा. जिन्हें टिकट नहीं मिलेगा वो चुनाव में टिकट पाये लोगों का अंदरखाने विरोध भी करेंगे. असंतुष्ट कार्यकर्ता और व्यक्तियों से जुड़े लोग दूसरे दलों के प्रत्याशियों को वोट देंगे. ऐसे में सपा को बदले परिस्थितियों में बदली रणनीति पर काम करना पड़ेगा.
असंतोष के मामले में बसपा आज भी पुराने ढर्रे पर कायम है. पार्टी आलाकमान द्वारा जिसे पार्टी प्रभारी घोषित कर दिया जाता है. उसके लिए पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता जिताने के लिए लग जाते है. ऐसे में बसपा को कमजोर समझना बहुत बड़ी भूल होगी. बसपा पिछले विधानसभा चुनाव मे तीन सीटों पर दो नम्बरों पर और दो सीटों पर तीसरे स्थान पर थी. बसपा के वोटरों में भाजपा, सपा, कांग्रेस कितना सेंध लगा पाते है, ये भविष्य के गर्भ में है. मगर जिस तरह से टिकट बंटवारे के बाद असंतोष उपजा हुआ है. उसे दूर कर पाना टेढ़ी खीर है. अभी मतदान में एक महीने का समय है. कार्यकर्ताओं से लेकर जनता जनार्दन को समझा पाना राजनीतिक दलों के लिए चुनौती भरा काम है.