Basti Vidhansabha Chunav 2022: सियासी तापमान के बीच टिकट मांगने वालों की बढ़ी धड़कनें
UP Election 2022 - टिकट मांगने वालों का बढ़ा ब्लडप्रेशर - टिकट किसे मिलेगा, अभी तक कुछ नहीं मालूम - दलों ने समय से चुनाव कराने की भरी हामी
-भारतीय बस्ती संवाददाता-
बस्ती. यूपी के सियासत का तापमान जिस तरह से बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे टिकट मांगने वालों का भी बीपी हाई होता जा रहा है. दिन-ब-दिन बढ़ रहे खर्चों के बीच टिकट मिलने में असमंजस दावेदारों को भरी ठंड में पसीना छुड़ा रहे है. बढ़े सियासी तापमान के बीच चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों की राय के बाद समय से चुनाव कराने की हामी भर दी है. ऐसे में चुनावी मैदान में कूदे सभी दलों में टिकट मांगने वालों को हर तरफ सब्जबाग ही दिख रहा है. हर टिकटार्थी बस खुद को ही टिकट के लिए योग्य बता रहा है. खुद को ही टिकट मिलने का आश्वासन देते हुए वो अपने समर्थकों से कहते फिर रहे है की इस बार उन्हें ही टिकट मिलेगा. जबकि अन्दरखाने वो खुद टिकट कटने के डर से जूझ रहे है.
सत्ताधारी पार्टी भाजपा से टिकट मांगने वालों की लम्बी कतार है. पांचों विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में डेरा जमाए घूम रहे है. पूरे कार्यकाल में अब तक जो काम नहीं हो पाया उसे कराने पर जोर दिया जा रहा है. जहां लोग असंतुष्ट दिख रहे हैं उन्हें शब्दबाणों से संतुष्ट किया जा रहा है. लम्बी फेहरिस्त में टिकट की चाह रखने वाले टिकटार्थी हिम्मत न छोड़ते हुए मैदान में डटे हुए है.
मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का भी यही हाल है. वहां भी टिकट मांगने वालों की भीड़ देखी जा रही है. हर विधानसभा में चार से पांच दावेदार दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में किसे टिकट मिलेगा ये अभी रहस्य बना हुआ है. जातिवाद के मकड़जाल में उलझे यूपी की राजनीति में जनता के हितों की सोचने वाले नेताओं को भुला दिया जाता रहा है. जिससे अक्सर ऐसे नेता चुन लिये जाते हैं जो विकास कार्यों के बूते नहीं सिर्फ जाति के बूते चुनाव जीत कर रहनुमाई करने लगते है.
बसपा पांचों सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है. जातियों के खांचे में सामन्जस्य बैठाते हुए सदर सीट से कुर्मी बिरादरी, हर्रैया से क्षत्रिय, कप्तानगंज से मुस्लिम, रूधौली से ब्राह्मण और महादेवा विधानसभा से दलित प्रत्याशियों को उतारा है. बसपा के प्रत्याशी उतारने की तेजी से अन्य दलों में बेचैनी बढ़ने लगी है. भाजपा और सपा दोनों अभी टिकट बांटने में देरी करेंगी. जिससे पार्टी को अन्तर्कलह से बचाया जा सके. अब तक के हालातों पर गौर करें तो इस बार भी चुनाव विकास नहीं जातियों के दम पर लड़े जाएंगे.