Basti Politics: बस्ती की राजनीति में दल, दिल और नियत बदलने के नाम रहा साल 2021
-भारतीय बस्ती संवाददाता-
बस्ती. साल 2021 राजनीति में नेताओं के दल, दिल और नीयत बदलने के नाम रहा. पंचायत चुनावों की सुगबुगाहट के बीच नेताओं ने जमकर पैंतरेबाजी की. कथित अपने भी अपनों को ठगने से नहीं चूके. जिला पंचायत से लेकर ब्लाक प्रमुख चुनाव में सत्ताधारी भाजपा ने जमकर रंग दिखाया. टिकट की चाह में दिन-रात एक किये लोगों को जब निराशा हाथ लगी तो विरोध करने में भी नहीं चूके.
ब्लाक प्रमुख चुनाव में भाजपा का सबसे ज्यादा गौर, परसरामपुर, बनकटी, बहादुरपुर, दुबौलिया, रूधौली में विरोध हुआ. भाजपा के टिकट पर खड़े होने वाले टिकटार्थियों के रास्ते में विरोधियों ने जमकर कांटे बिछाये. इसके बावजूद पंचायती हथकंडों के बूते भाजपा 14 में से 12 ब्लाकों पर कब्जा जमाने में सफल रही. दो ब्लाकों में दुबौलिया सपा और रूधौली ब्लाक पर अठदमा परिवार का कब्जा बरकरार रहा.
ब्लाक प्रमुख चुनाव में टिकट न मिलने से खार खाए परसरामपुर के त्रयम्बक नाथ पाठक और गौर से महेश सिंह ने फिर से सपा का दामन थाम लिया. ब्लाकों पर ब्लाक प्रमुख जब तक कुछ समझ पाते तब तक बहादुरपुर ब्लाक प्रमुख रामकुमार सपा जिलाध्यक्ष के खेमे में चले गये. अचानक कलेक्टर के दफ्तर में आकर अपना कामधाम देखने की लिखित जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी जिलाध्यक्ष महेन्द्रनाथ यादव को देकर कहीं चले गये. तमाम खोजबीन के बावजूद अभी तक बहादुरपुर ब्लाक प्रमुख का पता नहीं चल सका है. जिससे उन पर दांव लगाये तमाम लोग हैरान-परेशान होकर घूम रहे है.
कुछ दिनों से सक्रिय राजनीति से किनारा कस चुका राणा परिवार भाजपा में दिखने लगा. पहले राणा दिनेश प्रताप सिंह फिर राणा कृष्ण किंकर सिंह अपने समर्थकों के साथ विधिवत भाजपा में शामिल हो गये. उनके भाजपा में शामिल होने से राजनीतिक समीकरणों में फेरबदल होना तय माना जा रहा है.
जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भी रह-रह कर ग्रह- नक्षत्र घूमने लगते है. तमाम विरोधों के बाद किसी तरह अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे संजय चौधरी को हाल ही में कुछ सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा. तमाम जतन के बाद सदस्य मानें तब जाकर मामला कुछ शांत हुआ. पूरे साल अंतर्विरोध से जूझती रही. संगठन, सांसद और विधायकों में आपस में ठनी रही. वहीं कार्यकर्ता बड़ों की लड़ाई में परेशान देखे गये. टिकट लेने-देने की बात हो या कटने की, गणेश परिक्रमा के चलते संगठन माननीयों के लिए खास हो गया. भाजपाई अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते देखे गये तो सपाई खेमा नई ऊर्जा के साथ मैदान में लगा रहा. कांग्रेस को भी अपने ही लोगों के चलते असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा. अध्यक्ष अंकुर वर्मा के कड़ी चेतावनी के बाद स्थितियां कुछ हद तक हाथ में आयीं.
बसपा अपने पुराने पैटर्न पर चलती नजर अयी. सबसे ज्यादा राजनीतिक नुकसान बसपा को ही उठाना पड़ा. उसके नेता दूसरे दलों में जाते रहे और बसपा असहाय दिखी. वर्ष के अंत में बसपा के लिए परिस्थितियां अनुकूूल हुईं. अपने कार्यकर्ताओं और वोटरों को सहेजने के चलते बसपा ने सभी सीटों पर उम्मीदवारों का एलान कर दिया है. हर्रैया विधानसभा सीट से राजकिशोर सिंह, कप्तानगंज से जहीर अहमद जिम्मी, सदर से डा आलोक रंजन, रूधौली से अशोक मिश्रा, महादेवा से लक्ष्मीचन्द्र खरवार को उतार कर टिकट बंटवारे में मैदान मार लिया है. देखना दिलचस्प होगा की आने वाले विधानसभा चुनाव में अन्य दल बसपा के सामने क्या रूख अपनाते है.