OPINION: पारदर्शी बने टोल वसूली
निर्मल रानी
केवल तीन दशक पहले की देश की सड़कों यहाँ तक कि राष्ट्रीय राजमार्गों तक की स्थिति को यदि हम याद करें तो हमें जगह जगह सड़कों में पड़े गड्ढे, उन सड़कों में बरसातों में कीचड़ पानी आदि दिखाई देता है. चैड़ी,काली, चमचमाती हुई चार व छः लेन की सड़कें तो केवल फिल्मों में ही नजर आती थीं. वह भी विदेशों में की गयी शूटिंग में. तीन दशक पूर्व तक जगह जगह दुर्घटनाओं के मंजर दिखाई देते थे. जाहिर है लगभग दो सौ वर्ष तक अंग्रेजों द्वारा जी भर कर लूटा गया भारतवर्, आजादी के बाद आर्थिक व तकनीकी रूप से कमजोर था और धीरे धीरे आत्मनिर्भर हो रहा था. दुर्भाग्यवश भारत को चीन व पाकिस्तान जैसे पड़ोसी मिले जिन्हें भारत की प्रगति व आत्मनिर्भरता रास नहीं आती थी. लिहाजा आजादी के मात्र तीन दशक के भीतर ही भारत को अपने इन्हीं पड़ोसियों से युद्ध का सामना भी करना पड़ा. ऐसे में देश के विकास के आधारभूत ढांचे पर इसका प्रभाव पड़ना ही था.
बहरहाल तीन दशक पूर्व जब वैश्वीकरण का दौर शुरू हुआ,पूरी दुनिया ने एक दूसरे से सहयोग व एक दूसरे की बाजार व्यवस्था का हिस्सा बनना शुरू किया तभी भारत सहित कई विकासशील देशों में भी परिवर्तन का दौर आना शुरू हुआ. अब वह दौर समाप्त हो गया कि यदि किसी देश के पास पैसे नहीं तो वह सड़कें नहीं बना सकता. अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अनेक प्रगतिशील व जनहितकारी नीतियां व योजनायें बनीं. इन्हीं में सड़क निर्माण से जुड़ी एक नीति थी ठव्ज् अर्थात ठनपसज -वचमतंजम ंदक जतंदेमित . इस नीति के तहत देश की हजारों सड़कें,राष्ट्रीय राजमार्ग बड़े बड़े पुल व फ्लाई ओवर बनाये गये और अभी भी बनाये जा रहे हैं. इसमें कोई निर्माण कंपनी सरकारी स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा के बाद किसी सड़क अथवा अन्य निर्माण परियोजना का टेंडर प्राप्त करती है. उसके बाद वह कंपनी निर्माण परियोजना को पूरा (ठनपसज ) कर किसी दूसरी मार्ग संचालन कंपनी के हवाले कर देती है. वह कंपनी उस परियोजना को संचालित ;व्चमतंजमद्ध कर उसपर आये खर्च की ब्याज व मुनाफा सहित वसूली आम लोगों से टोल टैक्स के रूप में करती है. और जब वह कंपनी अपनी वसूली पूरी कर लेती है तब वह परियोजना सरकार को हस्तांतरित (ज्तंदेमित) कर देती है. इसी व्यवस्था के तहत देश के अनेक एक्सप्रेस वे के निर्माण भी किये गये हैं. इनपर एक स्थान से दूसरे स्थान तक अथवा किलोमीटर के हिसाब से वाहन चालकों से वसूली की जाती है.
टोल वसूली की व्यवस्था को देरी मुक्त करने के उद्देश्य से अति आधुनिक थ्ंेजंह व्यवस्था भी पिछले कुछ वर्षों से शुरू की जा चुकी है. कहीं कहीं तो फास्ट टैग न होने पर वाहनों से दोगुना शुल्क वसूला जाता है. परन्तु इस टोल वसूली के तौर तरीकों तथा टोल शुल्क की कीमतों को लेकर वाहन चालकों में एक संदेह की स्थिति हमेशा बनी रहती है. किसी टोल पर कुछ शुल्क वसूला जाता है तो किसी पर कुछ . कोई टोल किसी पुरानी जगह से हटाकर किसी दूसरी नई जगह पर लगा दिया जाता है तो कभी किसी टोल का शुल्क अचानक बढ़ा दिया जाता है. टोल वसूली की पूरी व्यवस्था कंप्यूटरीकृत होने के कारण जाहिर है परियोजना संचालित करने वाली कंपनी को इस बात की पल पल जानकारी मिलती है कि कब किस क्षण किस टोल प्लाजा पर कितने पैसों की वसूली की जा चुकी है. परन्तु टोल का भुगतान करने वाले करोड़ों लोगों को इस बात की कतई जानकारी नहीं हो पाती कि किस टोल बैरियर पर कुल कितनी वसूली की जानी है,कितनी वसूली की जा चुकी है और अब कितनी वसूली बकाया है.
पिछले दिनों चले किसान आंदोलन में एक वर्ष तक देश के सैकड़ों टोल किसानों ने निः शुल्क करवा दिये थे. इस दौरान टोल वसूली के पक्षधरों द्वारा कई बार टोल वसूली रुकने पर चिंता भी जताई गयी. बार बार यह बताने का प्रयास किया गया कि टोल वसूली स्थगित होने की वजह से कितना नुकसान हो रहा है. परन्तु टोल वसूली को लेकर जनता के मन में जो चिंता,सवाल,शंकायें हैं उनपर सरकार का ध्यान कभी नहीं गया. किसान आंदोलन के दौरान ही संसद में स्वयं प्रधानमंत्री ने किसानों की मांगों पर नहीं टोल वसूली बाधित होने व मोबाईल टावर्स को कथित तौर पर नुकसान पहुंचाये जाने पर चिंता जाहिर की थी.
आधुनिक तकनीक व वसूली के कंप्यूटरीकृत तरीके के चलते आज यह पूरी तरह संभव है कि प्रत्येक टोल की शुल्क वसूली को पूरी तरह पारदर्शी बनाया जाये. प्रत्येक टोल पर बड़े स्क्रीन लगाये जाने चाहिये और उन्हें टोल वसूली कंप्यूटर्स से जोड़ देना चाहिये. इसके स्क्रीन पर इस बात की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिये कि अमुक टोल वसूली वाली परियोजना की लागत क्या है? इस टोल पर कुल कितनी रकम वसूल की जानी है. अब तक कितनी वसूली की जा चुकी है और अब कितनी वसूली बकाया है. टोल वसूली का स्क्रीन डिस्प्ले का यह पारदर्शी तरीका जहां आम लोगों में सरकार व टोल वसूली कंपनियों के प्रति विश्वास पैदा करेगा वहीं जनता को यह विश्वास भी हो सकेगा कि टोल प्लाजा पर उन्हें लूटा व ठगा नहीं जा रहा है. जब तक टोल वसूली व्यवस्था पूरी तरह पारदर्शी नहीं होगी तब तक आम लोगों में इस बात का संदेह बना रहेगा कि टोल के नाम पर उन्हें ठगा व लूटा जा रहा है और सरकार व टोल वसूली करने वाली कंपनियों के बीच कोई न कोई साठगांठ जरूर है. (यह लेखक के निजी विचार हैं.)