OPINION: मशीनीकरण छीन रहा गांव के गरीब किसानों का हक

OPINION: मशीनीकरण छीन रहा गांव के गरीब किसानों का हक
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आधुनिकता और मशीनीकरण (Modernism and mechanization) के चलते एक तरफ हमारा जीवन अधिक से अधिक सुख सुविधा का आदती हो गया है.
वहीं मशीनीकरण के चलते लाखों और करोड़ों की संख्या में खाद्यान्न बिस्कुट नमकीन केक पीजा बर्गर और अब नमकीन परेठा जैसी वस्तुओं के उत्पादन और शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों की दुकानों पर पैकिंग किए हुए अनेक खाद्य वस्तुएं मिल रही हैं.
बढ़ती आबादी और बढ़ती जरूरतों के लिहाज से अच्छी बात है कि आम आदमी तक उसकी जरूरत की वस्तुएं मिल जाती हैं कितुं  उसका एक बहुत ही दुखद पहलू खाद्यान्न वस्तुओं की उत्पादन तिथि से तीन माह छा माह और एक वर्ष की एक्सपायरी डेट समाप्त हो जाने के बाद बाजार में बिका करती है और इसका उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ रहा है.

यह है Modernism and mechanization का परिणाम!

 बाजारों में एक्सपायरी खाद्य वस्तुओं के भरमार का दूसरा पहलू भी है एक तो ऑनलाइन द्वारा अन्य वस्तुओं के साथ खाद्य बस्तुओं में भी ऑनलाइन की गहरी होती पैठ के चलते  छोटी छोटी वस्तुओं का ऑनलाइन मिलना छोटे व्यवसायियों के लिए अब श्राप हो गया है.
अगर छोटे व्यवसायियों को बचाना है तो ऑनलाइन पांच हजार से अधिक के उत्पाद  पर होना चाहिए ताकि छोटे व्यवसायियों भी  जीवन यापन कर सकें यदि इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो करोड़ो छोटे व्यवसाई बेरोजगार हो जाएंगे.
बड़े महानगरों में छोटा छोटा व्यवसाय करके अपना और अन्य प्रदेशों से रोजगार की तलाश में आने वाले सौ दो सौ लोगों की जीविका चलाने वाले छोटे व्यवसायियों के कारोबार लगभग ठप की स्थिति में पहुंच गए हैं.
उनके द्वारा तैयार किए गए माल को बड़े व्यवसाई उचित दाम देना नहीं चाहते क्योंकि जीएसटी (GST) की कानूनी अड़चनों तथा मशीनीकरण और विदेशों से आयातित कम दाम के उत्पादों की अपेक्षा कारीगरों द्वारा तैयार किए गए सामान की लागत अधिक होने के कारण कंपटीशन की दौड़ में ग्रामीण अंचल से गए श्रमिकों को उनके पारिश्रमिक का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है .
इन्हीं परेशानियों के चलते बहुत से लघु उधोग करने वाले व्यवसायियों को अपना कारोबार ठप  करना पड़ा जिसके चलते करोड़ों श्रमिक जो देश के विभिन्न प्रदेशों से बड़े शहर रोजी रोटी के लिए अपना घर बार बीवी बच्चों को अकेला छोड़कर अच्छा पैसा कमा कर अपने परिवार को अच्छी शिक्षा दीक्षा और सुख सुविधा  देने के लिए बड़े शहर गया था किन्तु  बड़े शहरों के टूटते कुटीर उद्योगों के कारण खाली हाथ घर वापस आना पड़ा पढ़ रहा है.

Modernism and mechanization  का शिकार गांव?

हमारे ग्रामीण अंचलों के रोजगार की स्थिति किसी से छिपा नहीं है जो गरीब व्यक्त किसी संपन्न व्यक्ति से किराए का पैसा लेकर शहर जाता है और खाली हाथ  लौटना पड़ता है उसे उधार के पैसे लौटाने में मूलधन के साथ शुकराना भी देना पड़ता है चाहे इसके  पीछे उसे  अपनी संचित संपत्ति का त्याग  करना पड़े
दिन प्रति दिन गांव के खासकर मजदूर वर्ग की स्थिति खराब होती जा रही है.
गरीबों और मजदूरों के उत्थान के लिए सरकार द्वारा नरेगा मजदूरी की योजना पर जमकर लूट करके गरीबों के हक ऊपर डाका डालने का काम अधिकांश गांव में हो रहा है .
खासकर भ्रष्ट प्रधानों द्वारा कुछ जगहों पर मजदूरी ना करने वाले लोगों का नाम डालकर उनके नाम से पैसा खारिज करके उसका कुछ भाग देकर पैसा हजम कर लिया जाता है.
जिसके चलते जरूरतमंद मजदूर ना तो काम पाते हैं और ना ही उचित पैसा क्यों की अगर किसी मजदूर का नाम नरेगा में डालकर बिना काम के भुगतान होता है तो उस मजदूर को बारह सौ की जगह एक दो सौ  पर ही संतोष करना पड़ता है.

भ्रष्टाचार के रंग में रंगा हुआ हमारा सिस्टम

यह स्थिति एक गांव शहर या जिले की नहीं है सच यह है कि आज भी भ्रष्टाचार के रंग में रंगा हुआ हमारा सिस्टम क्योंकि एक पुरानी कहावत वर्तमान भ्रष्टाचार पर इंगित है कि ‘ जो छिनरा वह डोली के संग ” यही कारण है कि भ्रष्टाचार की शिकायतें होती है लाखों में लेकिन कार्रवाई शायद सैकड़ों पर ही हो पाती है क्योंकि  “जो छिनरा ——————-
हालांकि भाजपा (bjp) की मोदी सरकार (Modi sarkaar) ने प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) और स्वच्छता मिशन के तहत आवास और शौचालय गरीबों तक पहुंचाने का ऐतिहासिक कार्य किया है.
इस बात की जितनी सराहना की जाए कम है किंतु यह अलग बात है की कुछ गरीबों को आवास पाने में दस से बीस हजार का चढ़ावा चढ़ाना पड़ा फिर भी एक लाख  का सहारा गरीब पा गए आवास बनाने में और कुछ ऐसे भी ब्लॉकों का पता चला है जहां बिना सुविधा शुल्क के सरकार की योजना का लाभ गरीबों को मिला.
मनरेगा में भ्रष्टाचार रोकने के लिए वृक्षारोपण और पुराने जल स्रोतों का जीर्णोद्धार करने पर लोगों को मजदूरी भी मिलेगा और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सफलता भी तथा मनरेगा द्वारा कराए गए कार्य भी जमीन पर दिखाई पड़ेंगे.
मनोज सिंह. लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं.
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