वक्फ संपत्तियों का सर्वे: एक सुर में बोल रहे अखिलेश-ओवैसी, ये है असली वजह?
अजय कुमार, लखनऊ
पुरानी नहीं है जब योगी सरकार ने गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वे का आदेश दिया था. मदरसों के सर्वे का ऐलान हुआ तो तमाम विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया,लेकिन इस विरोध की धार तब कुंद हो गई, जब दारूल उलूम देवबंद सहित तमाम बड़े संस्थानों ने योगी सरकार के सर्वे के फैसले का समर्थन कर दिया. अभी ये मामला ठंडा हो ही रहा था कि योगी सरकार के एक अन्य फैसले पर अब पार्टियों ने निशाना साधना शुरू कर दिया है. दरअसल, सरकार ने प्रदेश में बंजर, ऊसर आदि सार्वजनिक संपत्तियों को वक्फ के तौर पर दर्ज करने के 1989 के शासनादेश को रद्द कर दिया है. सरकार ने इसी के साथ यूपी में वक्फ की संपत्तियों का सर्वे शुरू कर दिया है, ये सर्वे भी 8 अक्टूबर तक पूरा हो जाएगा.
अब इस वक्फ संपत्तियों के सर्वे को लेकर भी सियासत तेज हो गई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव साफ तौर पर मदरसा सर्वे और वक्फ सर्वे का विरोध कर रहे हैं. अखिलेश यादव का साफ कहना है कि हम सर्वे के खिलाफ हैं, सर्वे नहीं होना चाहिए. सरकार को केवल हिंदू-मुस्लिम करना है. जो लोग दावा करते हैं वन ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी की, ये बताएं वन ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी क्या मदरसों में सर्वे होने से हो जाएगी?
लेकिन मदरसों के सवे पर मुखर एआईएमआईएम के रुख में इस बार थोड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. वह मदरसा सर्वे की तरह वक्फ सर्वे का मुखर विरोध नहीं कर रही है लेकिन योगी सरकार की मंशा पर सवाल जरूर खड़ा कर रही है.
मुस्लिमों से जुड़े हर मसले पर अपनी आवाज उठाने और सरकार को घेरने वाले AIMIM के अध्यक्ष व हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने योगी सरकार के इस फैसले पर बड़ा सवाल उठाया है. उन्होंने पूछा है कि सिर्फ वक्फ बोर्ड का ही किसलिये, आखिर मंदिर और मठों की संपत्तियों का भी सर्वे क्यों नहीं कराया जाता? उन्हें बनाने के लिए किसी सार्वजनिक संपत्ति पर क्या आज तक कोई अवैध कब्जा नहीं हुआ? उनके मुताबिक दरअसल, ये मुसलमानों को डराने-दबाने के साथ ही उन्हें ये अहसास दिलाने की कोशिश की जा रही है कि वे इस देश में दोयम दर्जे के नागरिक हैं, जो कि संविधान की मूल आत्मा को खत्म करने की तरह है. दरअसल,योगी सरकार ने एक झटके में 33 साल पुराने एक कानून को खत्म करके वक्फ बोर्ड के पर कतर दिए हैं,जिसके सहारे बोर्ड जमीन कब्जाने का खुला खेल खेला करता था. पहले मदरसों का सर्वे और अब वक्फ बोर्ड पर शिकंजा, जिसको लेकर मुस्लिम वोटों के सौदागार खूब हो हल्ला मचा रहे हैं. विपक्ष योगी सरकार पर मुस्लिमों को परेशान करने का आरोप लगा रहा है.
राज्य वक्फ बोर्ड अक्सर अपने काले कारनामों के कारण विवाद में अक्सर सुर्खियां बटोरते रहे हैं. वक्फ बोर्ड की स्थापना जिन उद्ेश्यों के लिए की गई थी वह सोच नेपथ्य में चली गई हैं. इसकी जगह वक्फ बोर्ड जमीन कब्जाने की एक इकाई बन कर रह गया है,लेकिन वोट बैंक की सियासत के चलते इसके काले कारनामों को हमेशा अनदेखा ही किया जाता रहा,बल्कि इनके फलने-फूलने के लिए कई और रास्ते भी खोल दिए गए.
खासकर कांग्रेस ने वक्फ बोर्ड पर कुछ ज्यादा ही मेहरबानी दिखाई,जिसके चलते 1989 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार जिसके मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी हुआ करते थे, ने कानून और संविधान को ठेंगा दिखाते हुए 07 अप्रैल 1989 को एक आदेश जारी किया था,जिसमें कहा गया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ (मसलन कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह) के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए. इसके बाद उसका सीमांकन किया जाए. तिवारी सरकार के इस छोटे से आदेश ने वक्फ बोर्ड को असीम शक्तियां दे दीं. वक्फ बोर्ड की सम्पति दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ने लगी. वक्फ बोर्ड के महत्वपूर्ण पदों पर नेता और दबंग लोग आसीन होने लगे. बड़ी-बड़ी जमीन कब्जा कर बंदरबांट का खेल शुरू हो गया.
इस खेल का खुलासा इस लिए कभी नहीं हो पाता था क्योंकि एक तो ’इन पर’ सरकारें मेहरबान रहती थीं दूसरे तुष्टिकरण की सियासत के चलते भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर तमाम राजनैतिक दल भी चुप्पी साधे रहते है. वक्फ बोर्ड में कुंडली मारे बैठे लोगों का धर्म-कर्म से कोई नाता नहीं रह गया, इनका सारा ध्यान ऐसी जमीनों को हथियाने पर लगा रहता है जिसको लेकर कहीं कोई विवाद चल रहा हो या फिर या फिर ऐसी किसी जमीन का कोई वैध वारिश नहीं हो. इसके अलावा वक्फ बोर्ड जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है. जिसके चलते अवैध मजारों, नई-नई मस्जिदों की भी बाढ़ सी आ रही है. इन अवैध मजारों आदि की आड़ में वक्फ बोर्ड मजारों के आसपास की जमीनों पर कब्जा कर लेता है. चूंकि 1995 का वक्फ एक्ट कहता है कि अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताए कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है. 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन यह तय कैसे होगा कि संपत्ति निजी है?
इसको लेकर कानून में बिल्कुल भी स्पष्टता नहीं है. अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है, सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है. कौन नहीं जानता है कि कई परिवारों के पास पुस्तैनी जमीन के पुख्ता कागज नहीं होतेहै. वक्फ बोर्ड इसी का फायदा उठाता है क्योंकि उसे कब्जा जमाने के लिए कोई कागज नहीं देना है. इसी के चलते वक्फ बोर्ड की सम्पति में लगातार बेतहाशा वृद्धि होती जा रही है.
बात पूरे प्रदेश की छोड़कर की जाए तो राजधानी लखनऊ की ही कि जाए तो पुराने लखनऊ में जहां सैकड़ों वर्ष पुराने मकान हैं,वहां वक्फ बोर्ड का जमीन हथियाने का धंधा खूब फलफूल रहा है.वक्फ बोर्ड को अपनी दावेदारी साबित करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं करना पड़ता है, वह एक बैनर या बोर्ड लगाकर किसी भी सम्पति को अपना बता देता है. ऐसा ही नजारा कुछ समय से लखनऊ मंे ऐशबाग पुल के आसपास देखने को मिल रहा, जहां एक कब्रिस्तान के आसपास के बने मकानों-दुकानों को वक्फ बोर्ड ने अपना बताते हुए उन मकानों की दीवारों पर पेटिंग करा दी की यह सम्पति वक्फ बोर्ड की है. इसी तरह से ऐशबाग में शनि मंदिर के सामने की कुछ दुकानों के ऊपर भी वक्फ बोर्ड ने अपना बैनर टांग दिया है,जिसमें साफ-साफ लिखा है कि यह सम्पति वक्फ बोर्ड की है.
दरअसल, होता यह है कि वक्फ बोर्ड किसी सम्पति पर अपनी दावेदारी तो करता है,लेकिन वहां रहने वालों से मकान या दुकाने खाली कराने को लेकर किसी तरह से परेशान नहीं करता है. इस लिए वहां रहने वाले लोग भी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं,लेकिन कुछ वर्षो के बाद वक्फ बोर्ड की गतिविधियां तब शुरू होती हैं जब वहां रहने वालों के लिए इंसाफ की राह काफी कठिन हो जाती है.
यह सब बातें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास भी पहुंच रही थीं. वह वक्फ बोर्ड के क्रियाकलाप से संतुष्ट नहीं थे. योगी सरकार को उस कानून के बारे में भी पता था जिसके तहत 1989 में यूपी की कांग्रेस सरकार ने कानून पास किया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ (मसलन कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह) के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए. इसके बाद उसका सीमांकन किया जाए. इस कानून की योगी सरकार द्वारा समीक्षा के बाद सरकार ने करीब 33 वर्ष पुराने कांग्रेस काल के उस काले कानून को खत्म कर दिया है जिसके तहत तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार ने तुष्टिकरण की सियासत के चलते उत्तर प्रदेश के वक्फ बोर्ड को असीम शक्तियां मिल गई थीं. इतना ही नही सरकार द्वारा वक्फ की प्रॉपर्टी की जांच का फरमान जारी करते हुए वक्फ की सामान्य संपत्तियों की जांच और सीमांकन कराने का आदेश भी दे दिया है. इन संपत्तियों में बंजर, ऊसर, भीटा जैसी जमीनें हैं. योगी सरकार ने राजस्व विभाग के साल 1989 के शासनादेश को रद्द कर जांच की रिपोर्ट एक महीने में सभी जिलों से मांगी है. बता दें कि वक्फ की संपत्तियों पर अवैध कब्जे की खबरें कई बार आ चुकी हैं. यूपी सरकार में उप सचिव शकील अहमद सिद्दीकी ने सभी जिलों के कमिश्नर और डीएम को वक्फ संपत्तियों की जांच के लिए चिट्ठी लिखी है.इस चिट्ठी में कहा गया है कि वक्फ एक्ट 1995 और यूपी मुस्लिम वक्फ एक्ट 1960 में संपत्ति की रजिस्ट्री कराने के प्रावधान में नियमों की अनदेखी हुई है.
वक्फ संपत्तियों को ढंग से राजस्व अभिलेख में दर्ज कराने के लिए 1989 में आदेश भी जारी हुआ था. इसके तहत पाया गया कि वक्फ की संपत्तियां ज्यादातर बंजर, ऊसर और भीटा में दर्ज हैं. इन जमीनों को सही तरीके से राजस्व अभिलेखों में दर्ज कराने और सीमांकन की जरूरत है. सरकार के निर्देश में कहा गया है कि ग्राम सभाओं और नगर निकायों के तहत सार्वजनिक संपत्तियां हैं. इनका जनहित में इस्तेमाल होता है. इन जमीनों का 1989 के आदेश के तहत प्रबंधन और स्वरूप बदलना कानून के खिलाफ है.गैर वक्फ संपत्तियों को वक्फ में दर्ज कराने के कारण 1989 का आदेश रद्द किया गया है. बता दें कि बीते कुछ दिनों से वक्फ की संपत्तियों के संबंध में विवाद भी शुरू हो गया है. वक्फ एक्ट को रद्द करने की अर्जी भी सुप्रीम कोर्ट में दी गई है. देशभर में वक्फ बोर्डों के पास सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन है. वक्फ बोर्डों के पास 854509 संपत्तियां हैं. ये संपत्तियां 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर हैं.
बताते चलें 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के साथ भारत के बंटवारे से पाकिस्तान नया देश बना. तब जो मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए, उनकी जमीनों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दी गई थी. उसी समय 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते में तय हुआ था कि विस्थापित होने वालों का भारत और पाकिस्तान में अपनी-अपनी संपत्तियों पर अधिकार बना रहेगा. वो अपनी संपत्तियां बेच सकेंगे. हालांकि, पाकिस्तान में नेहरू-लियाकत समझौते के अन्य प्रावधानों का जो हश्र हुआ, वही हश्र इसका भी हुआ.
हिन्दुस्तान में तो वोट बैंक की सियासत के चलते वक्फ बोर्ड खूब फलाफूला वहीं पाकिस्तान में हिंदुओं की छोड़ी जमीनें, उनके मकानों अन्य संपत्तियों पर वहां की सरकार या स्थानीय लोगों का कब्जा हो गया. उसी समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यहां से पाकिस्तान गए मुसलमानों की संपत्तियों को कोई हाथ नहीं लगाएगा. जो मालिकों द्वारा साथ ले जाने, बेच दिए जाने के बाद जो संपत्तियां बच गई हैं, उन्हें वक्फ की सपत्ति घोषित कर दिया गया. एनिमी प्रॉपर्टी अपवाद थी, उस पर सरकार का अधिकार हुआ. इसके बाद 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ. यहीं से भारत के इस्लामीकरण का एजेंडा शुरू हुआ.दुनिया के किसी इस्लामी देश में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है. यह सिर्फ भारत में है जो इस्लामी नहीं, धर्मनिरपेक्ष देश है.
वक्फ बोर्ड पर सरकारें कैसे मेहरबान रहती थीं इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्ष 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय देखने को मिला जब केन्द्र सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं. वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी. वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा. दरअसल, वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है. वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं. इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन की लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ.
बड़ी बात है कि अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते. आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी. वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते. तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं. इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं. उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं. हालांकि, राज्य की सरकार किस दल की है, इस पर निर्भर करता है कि ट्राइब्यूनल में कौन लोग होंगे. संभव है कि ट्राइब्यूनल में भी सभी के सभी मुस्लिम ही हो जाएं. वैसे भी अक्सर सरकारों की कोशिश यही होती है कि ट्राइब्यूनल का गठन ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों के साथ ही हो. वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है. (यह लेखक के निजी विचार हैं.)