स्थापना दिवस विशेष: ‘‘भारतीय बस्ती’’ के अपनों के नाम जन विश्वास की पाती

इस पथ का उददेष्य नहीं है, श्रांत भवन में टिक रहना

स्थापना दिवस विशेष: ‘‘भारतीय बस्ती’’ के अपनों के नाम जन विश्वास की पाती
भारतीय बस्ती के मुख्य संपादक दिनेश चंद्र पांडेय (स्थापना दिवस 2021 की फाइल फोटो)

 -दिनेश चन्द्र पाण्डेय-’’इस पथ का उद्देश्य नही है, श्रांत भवन में टिक रहना किन्तु पहुंचना उस सीमा तक जिसके आगे राह नहीं’’

बाबू जय शंकर प्रसाद की इन्हीं पंक्तियों को आदर्श मान कर ‘भारतीय बस्ती’ दैनिक का प्रकाशन 44 साल पहले आरम्भ किया गया था. जो आज ‘बस्ती’ और राम जी की नगरी    ‘अयोध्या’ से प्रकाशित हो रहा है. बस्ती जैसे पिछड़े कहे जाने वाले बस्ती के लोगो ने ‘भारतीय बस्ती’ के प्रति सदा बड़ा दिल दिखाया. आम जनमानस ने इतना विश्वास दिया कि कठिनाइयां कभी हरा नहीं सकीं. यही हाल     अयोध्या के लोगो का रहा. बिना पूंजी के आम जनमानस के भरोसे ‘भारतीय बस्ती’ अपने प्रकाशन के 45 वें वर्श में प्रवेश करने जा रहा हैं. हमारे साथियांे ने इसे अखबार नहीं अपने मानस का द्वार समझा और लगे रहे इस लम्बी यात्रा को जीवंत बनाये रखने में. वेडेल फिलिप्स के इस विचार को सदा आत्मशात किया और उनका यह ध्येय वाक्य ‘‘भारतीय बस्ती’’ के सम्पादकीय पृश्ठ पर प्रकाशित कर उसे पूरा करने का संकल्प लेते है. ‘‘हम समाचार पत्र प्रकाशित करते हैं तो इस बात की परवाह नही करते कि कौन      धर्म का नियामक है और कानून का निर्माता.’’ 

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‘‘भय काहू को देत ना,ना भय मानत आन’’. ना डरे ना डराया. चलते रहे  आम आदमी के विश्वास के सहारे अपने लक्श्य की ओर. हमे पता है कि पत्रकारिता अनन्त प्रक्रिया का हिस्सा है. हम नित्य अपनी मंजिल की ओर आगे बढने का प्रयास करते रहते है. ‘‘मंजिल मिले,मिले, ना मिले इसका गम नहीं मंजिल की जुस्तजू में मेरा कारवां तो है.’’

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   जन कवि बाल सोम गौतम की ये पंक्तियां ं मंत्र की तरह जपते रहते हैं. ‘‘ सीधा साधा सच्चा लिख,जो भी लिख पर पक्का लिख,मत लिख इनके उनके जैसा केवल अपने जैसा लिख.’’

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 ‘भारतीय बस्ती’ ने अपना रास्ता स्वयं बनाया और चलते जा रहे हैं उसी रास्ते पर.    बस्ती के पहले दैनिक ‘ग्रामदूत’ के सम्पादक बाबू गिरिजेश बहादुर सिंह राठौर ने धर्मशाला के कमरे से एक ताव कागज और एक पेंसिल की पंूजी लेकर ग्रामदूत दैनिक का प्रकाशन किया. इस संकल्प ने  हमारे लिये मार्गदर्शन का काम किया और बल देकर चेताया कि पूंजी  के बिना भी दैनिक अखबार का प्रकाशन किया जा सकता है. अपने पथ पर चलते गये और जन विश्वास की पूंजी                     के सहरे बढ़ते जा रहे है आगे ही आगे. आज जब देश का कोई हिन्दी दैनिक सौ साल की यात्रा भी पूरी नही कर पाया. वाराणसी के ‘आज’ ने जोड़ बटोर कर सौ साल पूरा किया तब बस्ती जैसे पिछडे कहे जाने वाले स्थान से दैनिक के प्रकाशन की आधी शदी की विश्वसनीय यात्रा को हम नही आम आदमी आंक रहा है. इसे ही हम रोज प्रति का अपना मंजिल समझ कर पत्रकारिता को शिरोधार्य किये हुए हैं और आगे चलते ही रहेंगे. वैसे अखबार का जिसने एक अंक भी प्रकाशित किया वह हमारे लिये प्रेरणा का स्रोत हैं.

प्रदीप और उनके साथियों के क्रियाशील नेतृत्व में ‘भारतीय बस्ती’ प्रकाशन समूह के अखबार,वेबसाइट, ‘‘आवाज भारती’’ नेटवर्क का नया स्वरुप जन विश्वास के भरोसे अग्रसर है. आप का प्यार, दुलार और  विश्वास ही हमारा सम्बल है. अब दूसरी तीसरी पीढ़ी और उनके साथियों ने जन विश्वास के भरोसे आगे कदम बढ़ाया है. कहना ही पड़ता है.

‘‘क्या दिया नहीं जन विश्वास ने हमें,क्या लिखा नहीं मेरे नाम से,हम फिदा हैं तेरे दुलार पर,कि जग लिख दिया हमरे नाम पर.’’ और अब पैंतालिसवंे वर्श के लिये यही कहना है-

‘‘ऐ जनम साथियों, ऐ करम साथियांे. लो संभालो तू अपने ये साजो गजल. मेरे नगमांे ंको अब नीद आने लगी’’. फिर भी अंतिम सांस तक ‘‘भारतीय बस्ती’’ के लिये ही जीना है. हार नहीं मानूंगा. काल के कपाल पर लिख्ूंागा, मिटाऊंगा,आप को सुनाऊंगा, आप को दिखाऊंगा, ‘‘भारतीय बस्ती’’ पढाऊंगा.   -मुख्य सम्पादक

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